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विशेष: 50 डिग्री की भट्टी में...एक बूंद के लिए तड़पती जिंदगी...पलायन के बीच...सरकारी कागजों में बहती 40 लीटर की नदी

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ॥ कई साल पहले रहिम दास जी की कही हुई ये पंक्तियां आज भी सार्थक होती दिख रही है. दरअसल, अपनी इस विशेष रिपोर्ट में हम आपको धौलपुर के बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के सर मथुरा उपखंड के गांवों की तस्वीर दिखा रहे हैं, जो पानी की समस्या की वजह से ही वीरान हो गए हैं.

राजस्थान के धौलपुर में पानी की समस्या पर विशेष रिपोर्ट
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Published : Jun 6, 2019, 8:03 PM IST

Updated : Jun 7, 2019, 11:41 AM IST

धौलपुर. राजस्थान में पानी की समस्या की हर खबर हम आपके सामने अक्सर रखते हैं. इन खबरों में आपको लोग कभी पानी के लिए प्रदर्शन करते, कभी दूर-दराज से पानी भरते, तो कभी बड़ी मुश्किल से पानी सहेजते दिखते हैं. इस तरह लोग बूंद-बूंद पानी के लिए हर मुमकिन कोशिश करते दिखते हैं. आप हमारी इस विशेष रिपोर्ट में धौलपुर के बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के सर मथुरा उपखंड के गांवों की तस्वीर देख सकते हैं, जो पानी की समस्या की वजह से ही वीरान हो गए हैं.

राजस्थान के धौलपुर में पानी की समस्या पर विशेष रिपोर्ट

चलिये अब आपको दिखाते हैं जल के लिए पलायन की हकीकत, जो ना सिर्फ सरकारी दावों की धुंधली तस्वीर पेश करती है. बल्कि विश्व पर्यावरण दिवस पर आने वाले जल संकट को लेकर हमें एक चेतावनी भी देती है. इस रिपोर्ट को आप तक पहुंचाने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने 48 डिग्री तापमान के बीच धौलपुर जिले की बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के उपखंड सर मथुरा के उन वीरान गांवों का दौरा किया, जहां के लोग भीषण गर्मी के बीच पानी के लिए पशुओं के साथ अपने घर छोड़कर पलायन कर गए. यहां करीब डेढ़ दर्जन ऐसे गांव है, जहां हर साल गर्मी की दस्तक के साथ ही गांव वालों को मवेशियों के और खुद के जीवन को बचाने के लिए किसी और स्थान पर पनाह लेनी पड़ती है. ईटीवी भारत ने इस ग्राउंड रिपोर्ट में उस हर सरकारी दावे की सच्चाई को परखा जो सुशासन की बात करता है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है.

धौलपुर जिले का डांग क्षेत्र किसी दौर में बहती चंबल, बीहड़ और कुख्यात दस्यु के लिए जाना जाता था. इस बार यह इलाका चर्चा में है क्योंकि यहां मवेशियों के लिए जल स्रोत सूख गए हैं बल्कि इंसानों को भी पीने के लिए साफ पानी नसीब नहीं होता. ईटीवी भारत की टीम ने बसेड़ी विधानसभा की मदनपुरा पंचायत के एक गांव का रुख किया, जहां सड़क के नाम पर पथरीली पगडंडी है. दिन में नाम मात्र की बिजली अपूर्ति है. ऐसे हालत के चलते सालों तक सरकारी कारिंदों की यहां पहुंच नहीं होती है.

उजाड़ और वीरान से दिखने वाले इस पहाड़ी क्षेत्र में दूर-दूर तक पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है. कहने के लिए गांव में एक सरकारी नल लगा है, पर इसमें भी आखिरी बार 3 महीने पहले पानी आया था. ऐसे में गांव के एक दो परिवारों को छोड़कर सभी घरों से लोग पलायन कर गए. गांव के एक बुजुर्ग और बच्चे से जब ईटीवी की टीम ने बात की तो तस्वीर हालात की सच्चाई को बयान करने लगी.

मदनपुर पंचायत के सूने घरों की पड़ताल के दौरान कुछ महिलाएं दूर से पानी लेकर आती हुई दिखाई पड़ी. इन महिलाओं का कहना था कि करीब 5 किलोमीटर तक चलने के बाद एक मंदिर के नजदीक बने पोखर से वह पानी लेकर आती है. 45 से 50 डिग्री पारी के बीच इस पथरीली जमीन पर ना सिर्फ यह महिलाएं बल्कि घर के छोटे बच्चे भी चल कर पानी लाते हैं ताकि जिंदगी की गुजर बसर हो सके. पानी के चलते यहां के कई बच्चों की तालीम भी पूरी नहीं हो पाती. अगर आप पानी को देखेंगे तो किसी भी लिहाज से यह पीने के लायक नहीं कहा जाएगा, क्योंकि इसमें काली मिट्टी और फ्लोराइड की इतनी मात्रा है की एक सेहतमंद जिंदगी को इस पानी की बदौलत कभी भी बीमारी की आगोश में भेजा जा सकता है. जनप्रतिनिधियों को वोट देते वक्त इन मुद्दों के सवाल पर क्षेत्रवासियों का कहना है कि हमें सिर्फ वादों की उम्मीद का एक पिटारा मिलता है.

मदनपुर पंचायत के इस गांव के बाद हम पहुंचे चंदनपुर गांव में, जहां 40 घरों की बस्ती में महज दो लोग मौजूद थे. इनमें से एक पूर्व कुख्यात दस्यु रामराज्य और उसका एक नजदीकी रिश्तेदार था. उनके मुताबिक बाकी लोगों के पलायन के बाद बंद घरों की हिफाजत के लिए यह लोग गांव में थे. पानी के लिए इनको भी जद्दोजहद करनी होती है पर शुक्र है कि गांव मुख्य सड़क के किनारे बसा है. इसलिए पीने का पानी का इंतजाम किसी तरह हो जाता है. अगर बस्ती पर गौर करें तो लगेगा मानो किसी अभिशाप के चलते कभी गुलजार रहने वाली वाले आंगन में सन्नाटा पसरा रहता है. इन लोगों के मुताबिक खुद के पानी का तो शायद इंतजाम हो भी जाए, पर इनकी आजीविका के मूल साधन पशुपालन का क्या होगा.

हैरत की बात यह है इस इलाके से राजस्थान की एकमात्र सदाबहार नदी चंबल 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर बहती है, लेकिन पीने का पानी 50 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर मौजूद पार्वती बांध से आता है. इसका प्रेशर पहाड़ी के आसपास मौजूद डांग के इन गांवों तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देता है, ऐसे में गांव की प्यास बुझाने के लिए वादों इरादों की पोर्टल पोटली छोटी पड़ जाती है.

हालात ऐसे है कि रहीम दास का दोहा याद आज जाता है. रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए ना ऊबरे, मोती, मानुष, चून।। अर्से पहले रहिम दास जी की कही हुई बात आज भी सार्थक है. ईटीवी भारत की टीम ने पेयजल के लिए पलायन करते ग्रामीणों की तस्वीर दिखाकर सरकार और प्रशासन को सच्चाई का आईना दिखाने का प्रयास किया है.

धौलपुर. राजस्थान में पानी की समस्या की हर खबर हम आपके सामने अक्सर रखते हैं. इन खबरों में आपको लोग कभी पानी के लिए प्रदर्शन करते, कभी दूर-दराज से पानी भरते, तो कभी बड़ी मुश्किल से पानी सहेजते दिखते हैं. इस तरह लोग बूंद-बूंद पानी के लिए हर मुमकिन कोशिश करते दिखते हैं. आप हमारी इस विशेष रिपोर्ट में धौलपुर के बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के सर मथुरा उपखंड के गांवों की तस्वीर देख सकते हैं, जो पानी की समस्या की वजह से ही वीरान हो गए हैं.

राजस्थान के धौलपुर में पानी की समस्या पर विशेष रिपोर्ट

चलिये अब आपको दिखाते हैं जल के लिए पलायन की हकीकत, जो ना सिर्फ सरकारी दावों की धुंधली तस्वीर पेश करती है. बल्कि विश्व पर्यावरण दिवस पर आने वाले जल संकट को लेकर हमें एक चेतावनी भी देती है. इस रिपोर्ट को आप तक पहुंचाने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने 48 डिग्री तापमान के बीच धौलपुर जिले की बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के उपखंड सर मथुरा के उन वीरान गांवों का दौरा किया, जहां के लोग भीषण गर्मी के बीच पानी के लिए पशुओं के साथ अपने घर छोड़कर पलायन कर गए. यहां करीब डेढ़ दर्जन ऐसे गांव है, जहां हर साल गर्मी की दस्तक के साथ ही गांव वालों को मवेशियों के और खुद के जीवन को बचाने के लिए किसी और स्थान पर पनाह लेनी पड़ती है. ईटीवी भारत ने इस ग्राउंड रिपोर्ट में उस हर सरकारी दावे की सच्चाई को परखा जो सुशासन की बात करता है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है.

धौलपुर जिले का डांग क्षेत्र किसी दौर में बहती चंबल, बीहड़ और कुख्यात दस्यु के लिए जाना जाता था. इस बार यह इलाका चर्चा में है क्योंकि यहां मवेशियों के लिए जल स्रोत सूख गए हैं बल्कि इंसानों को भी पीने के लिए साफ पानी नसीब नहीं होता. ईटीवी भारत की टीम ने बसेड़ी विधानसभा की मदनपुरा पंचायत के एक गांव का रुख किया, जहां सड़क के नाम पर पथरीली पगडंडी है. दिन में नाम मात्र की बिजली अपूर्ति है. ऐसे हालत के चलते सालों तक सरकारी कारिंदों की यहां पहुंच नहीं होती है.

उजाड़ और वीरान से दिखने वाले इस पहाड़ी क्षेत्र में दूर-दूर तक पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है. कहने के लिए गांव में एक सरकारी नल लगा है, पर इसमें भी आखिरी बार 3 महीने पहले पानी आया था. ऐसे में गांव के एक दो परिवारों को छोड़कर सभी घरों से लोग पलायन कर गए. गांव के एक बुजुर्ग और बच्चे से जब ईटीवी की टीम ने बात की तो तस्वीर हालात की सच्चाई को बयान करने लगी.

मदनपुर पंचायत के सूने घरों की पड़ताल के दौरान कुछ महिलाएं दूर से पानी लेकर आती हुई दिखाई पड़ी. इन महिलाओं का कहना था कि करीब 5 किलोमीटर तक चलने के बाद एक मंदिर के नजदीक बने पोखर से वह पानी लेकर आती है. 45 से 50 डिग्री पारी के बीच इस पथरीली जमीन पर ना सिर्फ यह महिलाएं बल्कि घर के छोटे बच्चे भी चल कर पानी लाते हैं ताकि जिंदगी की गुजर बसर हो सके. पानी के चलते यहां के कई बच्चों की तालीम भी पूरी नहीं हो पाती. अगर आप पानी को देखेंगे तो किसी भी लिहाज से यह पीने के लायक नहीं कहा जाएगा, क्योंकि इसमें काली मिट्टी और फ्लोराइड की इतनी मात्रा है की एक सेहतमंद जिंदगी को इस पानी की बदौलत कभी भी बीमारी की आगोश में भेजा जा सकता है. जनप्रतिनिधियों को वोट देते वक्त इन मुद्दों के सवाल पर क्षेत्रवासियों का कहना है कि हमें सिर्फ वादों की उम्मीद का एक पिटारा मिलता है.

मदनपुर पंचायत के इस गांव के बाद हम पहुंचे चंदनपुर गांव में, जहां 40 घरों की बस्ती में महज दो लोग मौजूद थे. इनमें से एक पूर्व कुख्यात दस्यु रामराज्य और उसका एक नजदीकी रिश्तेदार था. उनके मुताबिक बाकी लोगों के पलायन के बाद बंद घरों की हिफाजत के लिए यह लोग गांव में थे. पानी के लिए इनको भी जद्दोजहद करनी होती है पर शुक्र है कि गांव मुख्य सड़क के किनारे बसा है. इसलिए पीने का पानी का इंतजाम किसी तरह हो जाता है. अगर बस्ती पर गौर करें तो लगेगा मानो किसी अभिशाप के चलते कभी गुलजार रहने वाली वाले आंगन में सन्नाटा पसरा रहता है. इन लोगों के मुताबिक खुद के पानी का तो शायद इंतजाम हो भी जाए, पर इनकी आजीविका के मूल साधन पशुपालन का क्या होगा.

हैरत की बात यह है इस इलाके से राजस्थान की एकमात्र सदाबहार नदी चंबल 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर बहती है, लेकिन पीने का पानी 50 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर मौजूद पार्वती बांध से आता है. इसका प्रेशर पहाड़ी के आसपास मौजूद डांग के इन गांवों तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देता है, ऐसे में गांव की प्यास बुझाने के लिए वादों इरादों की पोर्टल पोटली छोटी पड़ जाती है.

हालात ऐसे है कि रहीम दास का दोहा याद आज जाता है. रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए ना ऊबरे, मोती, मानुष, चून।। अर्से पहले रहिम दास जी की कही हुई बात आज भी सार्थक है. ईटीवी भारत की टीम ने पेयजल के लिए पलायन करते ग्रामीणों की तस्वीर दिखाकर सरकार और प्रशासन को सच्चाई का आईना दिखाने का प्रयास किया है.

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sandeep


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Last Updated : Jun 7, 2019, 11:41 AM IST
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