फलोदी : जिले में खीचन गांव में हर साल प्रवास पर आने वाले साइबेरियन पक्षी इस बार काफी घूम कर लंबा रास्ता तय करके आए हैं. माना जा रहा है इसकी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध हो सकता है. दशकों से नेपाल के रास्ते खीचन पहुंचने वाली इस बर्ड (कुरजां) ने इस बार पाकिस्तान के रास्ते से जैसलमेर से होकर भारत की सीमाओं में प्रवेश किया है. जानकारों की मानें तो रशिया यूक्रेन के बीच चल रही युद्ध का असर अब साइबेरियन बर्ड के आने के रास्ते पर भी नजर आने लगा है. इसका खुलासा एक साढ़े सात महीने के मेल साइबेरियन बर्ड के पैर में लगी रिंग से हुआ, जिसमें सारी जानकारी दर्ज की गई है.
रिंग से पता चला आने का मार्ग : खीचन में हर साल सितंबर में डोमिसाइल क्रेन आने लगते हैं, जो मार्च तक रहते हैं. यहां प्रवासी पक्षियों के सरंक्षण अभियान से जुड़े सेवाराम माली ने बताया कि 24 नवंबर को ऑस्ट्रेलियन टूरिस्ट के साथ कुरजां देख रहे थे. इस दौरान हजारों की संख्या में एक क्रेन के पैर में रिंग नजर आई थी. यह रिंग जुलाई में साइबेरिया के टाइवा में एलिना और उसकी टीम ने लगाई थी, जब यह क्रेन तीन माह का था. आज यह साढ़े सात माह का है. इसे सुकपाक कहा जाता है, जिसकी जानकारी पक्षी विशेषज्ञ दाऊलाल बोहरा को दी गई. उन्होंने रशिया, कजाकिस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के रास्ते जैसलमेर सीमा से भारत की सीमा में प्रवेश करना बताया, जिसकी दूरी 3676 किमी है. ये प्रवासी पक्षी द्वारा तय किया गया अब तक सबसे लंबा मार्ग है. इससे पहले 2800 किमी की दूरी तय होती थी.
हजारों की संख्या में आती है कुरजां : फलोदी के खीचन में लंबे समय से प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला जारी है. माना जा रहा है कि सुकपाक ने अपने दल के साथ अपनी यात्रा के दौरान विभिन्न कठिनाइयों का सामना किया होगा. रास्ते में मौसम में बदलाव, भोजन की तलाश और शिकारियों से बचाव करते हुए यहां तक पहुंचते हैं. कमोबेश इसी तरह से प्रदेश में भरतपुर के घना अभ्यारण में भी मंगोलिया से होते हुए साइबेरियन बर्ड आते हैं, लेकिन इसकी संख्या खीचन से कम होती है.
राजस्थान में बने कुरजां पर लोक गीत : कुरजां एक खूबसूरत पक्षी है जो सर्दियों में साइबेरिया से ब्लैक समुद्र से लेकर मंगोलिया तक फैले प्रदेश से हिमालय की ऊंचाइयों को पार करता हुआ हमारे देश में आता रहा है. मैदानों और तालाबों के करीब गुजरने के बाद वापस अपने मूल देश में लौट जाते हैं. सफर के दौरान यह पांच से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता है. कुरजां यहां के परिवेश में इतना घुल मिल गया है कि इस पर कई लोकगीत बन चुके हैं. इनमें कुरजां ए म्हारो भंवर मिला दे. इसमें एक पत्नी-पति वियोग में इन पक्षियों से पति को मिलाने का आग्रह करती है. खीचन में ब्रीडिंग के बाद यह पक्षी अपने बच्चे बड़े करने के बाद यहां से निकलते हैं.