धौलपुर. नीति आयोग की रैंकिंग में राजस्थान का धौलपुर जिला बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नंबर वन पर रह चुका है. राजस्थान सरकार भी वैश्विक महामारी के दौर में भी आमजन को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने की बात कह रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. ग्रामीण इलाकों में चलने वाली कई सीएचसी और पीएचसी में लोगों को अव्यवस्था झेलनी पड़ रही है.
ताजा मामला जिले के सैंपऊ उपखंड के सरकारी अस्पताल का है. जहां अस्पताल के गेट के पास एक प्रसूता प्रसव पीड़ा से कराहती रही, लेकिन अस्पताल के अंदर बैठे कार्मिकों ने उसकी आवाज तक नहीं सुनी. प्रसूता की हालत इतनी बिगड़ी की आसपास खड़ी महिलाओं ने स्थिति को देखते हुए उसको अस्पताल परिसर में खुली जगह पर ही लेटा दिया और फिर चादर से ढक कर उसकी डिलीवरी करवा दी.
डिलीवरी के बाद भी प्रसूता को अस्पताल के अंदर ले जाने के लिए जब कोई स्टाफ नहीं आया और न ही कोई स्ट्रेचर लेकर पहुंचा तो महिलाएं ही प्रसूता को किसी तरह उठाकर अस्पताल के अंदर ले गईं और उसे बेड पर लिटाया. सैंपऊ के सरकारी अस्पताल पर शर्मसार कर देने वाली इस घटना को जिसने भी देखा वह अस्पताल में लगे स्टाफ के साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को ही कोस रहा था.
सैपऊ के सरकारी अस्पताल में प्रसव कराने के लिए आई गर्भवती महिला लक्ष्मी ने प्रसव पीड़ा से कराहते हुए अस्पताल परिसर में ही एक बालिका को जन्म दे दिया. प्रसूता के दर्द को सुनकर आसपास की महिलाओं और परिजन महिलाओं ने चादर लगाकर उसकी डिलीवरी करवाई.
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प्रसव के बाद महिला को परिसर से वार्ड तक ले जाने के लिए न तो चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी आया और न ही किसी कंपाउंडर ने स्ट्रेचर या व्हीलचेयर ले जाने की जहमत उठाई. ऐसी स्थिति में प्रसूता के परिजन और महिलाओं ने ने उसे उठाकर वार्ड में भर्ती कराया.