मेहंदीपुर बालाजी (दौसा). दौसा के बालाजी मंदिर के सामने स्थित सीताराम मंदिर में भगवान शिव को खुश करने के लिए महंत किशोरपुरी महाराज के सानिध्य में पंचमी शुक्रवार से बंद मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पार्थेश्वर भगवान की पूजा प्रारम्भ हो गई है. यह विशेष पूजा महंत कई दशक से कराते आ रहे हैं. वहीं, पार्थेश्वर पूजा का श्रावण मास में विशेष महत्व बताया गया है.
सीताराम मंदिर में पार्थेश्वर पूजा में लगे मूर्तिकारों ने बताया कि पार्थेश्वर पूजा का विशेष महत्व है. इस पूजा को कराने वाले व्यक्ति को विशेष पुण्य-लाभ मिलता है. पार्थेश्वर पूजा कराने वाले व्यक्ति को एक कल्प वृक्ष के फल देने का बराबर लाभ होता है. भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान शिव के मिट्टी के शिवलिंग बना कर पार्थेश्वर पूजा कराई थी. इसे चिंतामणी के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान शिव की सबसे बड़ी पूजा बताई गई है.
पढ़ेंः रेलवे का साल 2024 तक माल यातायात दोगुना करने का लक्ष्य, बिजनेस डेवलमेंट यूनिट की होगी अहम भूमिका
मूर्तिकार ने बताया कि यह पूजा 25 दिन रक्षा बंधन तक चलेगी, जिसके तहत प्रतिदिन भगवान शिव के सवा लाख शिवलिंग बनाए जाते हैं. जिनकी पंडित विधि-विधान से पूजा अर्चन कर बहते पानी में विसर्जित कर देते हैं. यह पूजा विश्व शांति और मानव कल्याण के लिए किया जा रहा है. इस साल कोरोना के महा संकट से देश और विश्व को मुक्ति पाने के लिए भी भगवान पार्थेश्वर से विशेष प्रार्थना भी की जाएगी.
महंत ने बताया महत्व...
महंत किशोरपुरी महाराज ने पार्थिव शिवलिंग का महत्व बताते हुए कहा कि चंद्रमा को राजा दक्ष के श्राप से क्षय रोग हो गया था. मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने पार्थिव शिवलिंग बना कर शिव भगवान की आराधना कर मुक्ति पाई थी. पार्वती माता ने भी शिव को पाने के लिए पूरे श्रावण मास पार्थिव शिवलिंग बना कर आराधना कर भगवान को प्राप्त किया, तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर माता पार्वती को वरदान दिया था कि कलयुग में जो भी श्रावण मास में पार्थिव शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना करेगा, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होकर अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष को प्राप्त करेगा.