दौसा. नगर निकाय के चुनाव की घोषणा होते ही चुनावी सरगर्मी तेज हो गई हैं. एक-एक वार्ड से दर्जनों लोग अपना भाग्य आजमा रहे हैं. एक तरफ जहां भाजपा को दौसा नगर परिषद में अपना किला बचाना है तो दूसरी ओर सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को इस किले को ध्वस्त कर विधानभा चुनाव का इतिहास दोहराना है. ऐसे में दोनों ही पार्टियों कांग्रेस हो या भाजपा नगर परिषद के 55 वार्डों में अपना दम दिखाने में जुट गई है. इसके लिए दोनों दलों ने टिकट वितरण के लिए अपनी कमेटियां बना लीं हैं. अपनी पार्टी के पार्षदों को जीत दिला कर नगर परिषद चेयरमैन की कुर्सी पर बिठाने के लिए रणनीति तैयार कर ली गई है.
नगर परिषद चुनाव को लेकर दौसा कांग्रेस से विधायक मुरारी लाल मीणा का कहना है कि हम प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार की ओर से करवाए गए विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच जाएंगे और जनता ने जिस प्रकार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को 51 हजार मतों से जिता कर बीजेपी के 35 वर्ष पुराने गढ़ को ध्वस्त किया है उसी प्रकार नगर परिषद में भी भाजपा के गढ़ को निस्तेनाबूत कर देगी.
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अपने किले को बचाने के लिए बीजेपी ने भी पूरा दमखम लगा रखा है. भारतीय जनता पार्टी के जिलाअध्यक्ष डॉ. रतन तिवारी का कहना है कि केंद्र सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी ने जो विकास के कार्य करवाए हैं उसे जनता बखूबी जानती है. ऐसे में केंद्र सरकार के विकास कार्यों और प्रदेश सरकार की विफलता को हम जनता के सामने लेकर जाएंगे व वर्षों पुराने भाजपा के मजबूत किले को बचाते हुए दौसा शहर में भाजपा की सरकार बनाएंगे.
एक-दो बार ही बना पूर्णकालिक चेयरमैन
दौसा नगर परिषद चुनाव को लेकर आरपीएससी के पूर्व चेयरमैन व राजनीतिक विश्लेषक विनोद बिहारी शर्मा का कहना है कि दौसा नगर परिषद चुनाव हमेशा से रोचक रहा है. करीब 30-35 वर्षों से भी अधिक समय से यहां पर एक-दो बार के अलावा कोई भी चेयरमैन पूर्णकालिक नहीं बना. हर बार उठापटक, अविश्वास प्रस्ताव और क्रॉस वोटिंग के चलते पूरे 5 वर्ष ऐसे ही निकल जाते हैं. ऐसे में दोनों ही पार्टियों पर निर्भर करता है कि वह किस तरह के व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाकर चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारती है.
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उन्होंने कहा कि स्थानीय चुनाव होने के नाते यहां पर पार्टी के मुद्दे कम महत्व रखते हैं. बल्कि उसमें कई अन्य फैक्टर उसमें जुड़ जाते हैं जैसे जातिवाद, प्रत्याशी की स्वच्छ छवि, प्रत्याशी का वार्ड से जुड़ाव आदि. इन मुद्दों पर ही लोग अपना पार्षद चुनना पसंद करते हैं. राजनीतिक विश्लेषक विनोद बिहारी शर्मा का कहना है कि इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी के जीतने की संभावना प्रबल है.
गौरतलब है कि लंबे समय से चले आ रहे चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव या क्रॉस वोटिंग सहित नगर परिषद चेयरमैन की उठापटक हर बार नगर परिषद चेयरमैन बदलने की प्रक्रिया के चलते लोगों को हॉर्स ट्रेडिंग का पता चल गया, जिसके चलते इस बार पार्षद प्रत्याशियों की तादाद भी बढ़ गई. ऐसे में अगर पार्षद प्रत्याशियों का अनुमान लगाया जाए तो जिला मुख्यालय के 55 वार्ड में तकरीबन हर वार्ड से 1 दर्जन से अधिक प्रत्याशी मैदान में हैं. ऐसे में 55 वार्ड में वर्तमान हालात में तकरीबन 700 से अधिक पार्षद प्रत्याशी मैदान में हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां चुनाव को लेकर पूरा जोर लगा रही हैं.