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दौसाः नवजातों को जीवनदान देने वाली मशीन ही बनीं उनके लिए सबसे बड़ा खतरा!

दौसा जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे ही हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अस्पताल में नवजात गहन चिकित्सा इकाई में 20 में से 17 रेडिएंट वार्मर खराब पड़े हैं. पढ़ें विस्तृत खबर....

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नवजातों की जान के साथ खिलवाड़
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Published : Feb 27, 2020, 12:57 PM IST

दौसाः दौसा जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे ही हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अस्पताल में नवजात गहन चिकित्सा इकाई में लगे 20 में से 17 रेडिएंट वार्मर खराब पड़े हैं. हैरानी की बात तो ये है कि इन्हें कंडम तक घोषित किया जा चुका है, बावजूद इसके इन्हें काम में लिया जा रहा है.

पिछले दिनों कोटा में हुई नवजात बच्चों की मौत के बाद राज्य सरकार की ओर से बच्चों की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के दावे किए गए थे. लेकिन, दौसा जिला अस्पताल में हालात कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं.

नवजातों की जान के साथ खिलवाड़

यहां पर नवजात गहन चिकित्सा इकाई में 20 रेडिएंट वार्मर हैं, इनमें से 17 खराब हो चुके हैं. कोटा मामले के बाद नवजात बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए दौसा जिला अस्पताल प्रशासन द्वारा भी खराब पड़े वार्मर्स के लिए डिमांड सरकार तक भिजवाई गई थी. काफी दिनों बाद भी अभी तक अस्पताल में वार्मर उपलब्ध नहीं हो सके हैं.

ऐसे में अब दौसा जिला अस्पताल में नवजात बच्चों को रखने की समुचित व्यवस्था नहीं है. इस अस्पताल में केवल तीन ही वार्मर ठीक से काम कर रहे हैं. ऐसे में अन्य बच्चों को जयपुर रैफर करना पड़ता है, जिससे उनकी जान पर खतरा बना रहता है.

यह भी पढ़ेंः कब टूटेंगी अंधविश्वास की बेड़ियां...मानसिक रोग से पीड़ित बच्चों को छोड़ दिया भोपा के सहारे...

दौसा जिला अस्पताल में कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे सांसद जसकोर मीणा से भी अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों ने खराब पड़े वार्मर की बात कही थी. तब सांसद ने जल्द वार्मर उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था. लेकिन ये वादा भी खोखला ही निकला.

जिले के सबसे बड़े राजकीय अस्पताल के हालात ये हैं कि बच्चों को जीवनदान देने वाली मशीन ही उनके लिए सबसे बड़ा संकट बन चुकी है. इन मशीनों को काम में लेने का मतलब है, शिशुओं की जान का जुआ खेलना.

दौसाः दौसा जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे ही हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अस्पताल में नवजात गहन चिकित्सा इकाई में लगे 20 में से 17 रेडिएंट वार्मर खराब पड़े हैं. हैरानी की बात तो ये है कि इन्हें कंडम तक घोषित किया जा चुका है, बावजूद इसके इन्हें काम में लिया जा रहा है.

पिछले दिनों कोटा में हुई नवजात बच्चों की मौत के बाद राज्य सरकार की ओर से बच्चों की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के दावे किए गए थे. लेकिन, दौसा जिला अस्पताल में हालात कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं.

नवजातों की जान के साथ खिलवाड़

यहां पर नवजात गहन चिकित्सा इकाई में 20 रेडिएंट वार्मर हैं, इनमें से 17 खराब हो चुके हैं. कोटा मामले के बाद नवजात बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए दौसा जिला अस्पताल प्रशासन द्वारा भी खराब पड़े वार्मर्स के लिए डिमांड सरकार तक भिजवाई गई थी. काफी दिनों बाद भी अभी तक अस्पताल में वार्मर उपलब्ध नहीं हो सके हैं.

ऐसे में अब दौसा जिला अस्पताल में नवजात बच्चों को रखने की समुचित व्यवस्था नहीं है. इस अस्पताल में केवल तीन ही वार्मर ठीक से काम कर रहे हैं. ऐसे में अन्य बच्चों को जयपुर रैफर करना पड़ता है, जिससे उनकी जान पर खतरा बना रहता है.

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दौसा जिला अस्पताल में कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे सांसद जसकोर मीणा से भी अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों ने खराब पड़े वार्मर की बात कही थी. तब सांसद ने जल्द वार्मर उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था. लेकिन ये वादा भी खोखला ही निकला.

जिले के सबसे बड़े राजकीय अस्पताल के हालात ये हैं कि बच्चों को जीवनदान देने वाली मशीन ही उनके लिए सबसे बड़ा संकट बन चुकी है. इन मशीनों को काम में लेने का मतलब है, शिशुओं की जान का जुआ खेलना.

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