चूरू. भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे कठिन जंग यानी कारगिल का युद्ध, जिसे हम 26 जुलाई को 'विजय दिवस' के रूप में मनाते हैं. इस जंग में हमारे वीर सैनिकों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य के दम पर ना केवल विजय प्राप्त की, बल्कि दुनिया में अपनी बहादुरी का परचम भी लहराया.
कारगिल युद्ध की इस विजय ने साबित कर दिया था कि भारत मां की रक्षा के लिए इसके वीर सपूत अपने लहू से देश की धरती को सींच सकते हैं, लेकिन देश की अखंडता और संप्रभुता पर आंच नहीं सहन कर सकते. यह युद्ध दुश्मन की कायरता और हिंदुस्तान के रणबांकुरों के शौर्य की कुछ ऐसी ही दास्तां है.
प्रदेश के 52 और जिले के सात सैनिकों ने अपनी आहुति दी थी. कारगिल के इस युद्ध में जिले के 7 जवान शहीद हुए थे, जिनमें एक चूरू के निकटवर्ती दूधवाखारा गांव के शहीद सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़ भी शामिल थे. सुमेर सिंह 2 राज रेफ बटालियन में थे, जिनकी 18 वर्ष की उम्र में पहली पोस्टिंग दिल्ली में लगी थी और कारगिल युद्ध मे 13 जून को मातृभूमि की रक्षा करते करते वीरगति को प्राप्त हो गए थे. जिनके नाम से दूधवाखारा गांव में आज भी एक सरकारी स्कूल है. गांव में ही उनका एक मंदिर भी है और पार्क का भी नाम उनके नाम से रखा गया है.
15 अगस्त को हुआ था जन्म...
15 अगस्त 1955 को चूरू के दुधवाखारा में डूंगर सिंह राठौड़ के घर जन्मे सुमेर सिंह ने गांव की ही स्कूल में उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की. पढ़ाई के साथ-साथ उनकी खेलकूद में भी रूचि थी. 1971 में जब भारत-पाक युद्ध चल रहा था तब रेडियो पर वीर जवानों के किस्से सुनकर इन्होंने भी देश सेवा के लिए सेना में जाने की ठान ली. 26 अप्रैल 1975 में सुमेर सिंह 2 राजपुताना राइफल में भर्ती हुए.
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दुश्मनों को चटाई थी धूल...
मई 1999 में करगिल में ऑपरेशन विजय अभियान शुरू हुआ. उस वक्त सुमेर सिंह की पोस्टिंग करगिल में थी. करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारत की चौकियों पर कब्जा कर लिया था. इनमें एक चौकी तेलोलिंग पहाड़ी पर स्थित थी. बर्फ के रेगिस्तान में 15 हजार फीट उंचाई पर स्थित तेलोलिंग पहाड़ी पर पहुंचना और फिर दुश्मनों से लोहा लेना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन मातृभूमि की रक्षा का जज्बा लिये जमाव बिन्दू में भी वीर जवानों ने दुश्मनों को धूल चटा दी.
करगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 करीब 4 बजे अचानक घात लगाए बैठे घुसपैठियों ने छुपकर मशीनगन से फायरिंग शुरू कर दी. इसी दौरान दुश्मनों की तरफ से आया मशीनगन ब्रस्ट फायर इस योद्धा के शरीर को आर पार कर गया और वे घायल हो गए. घायल होने के बावजूद 2 राजरिफ का यह जाबांज योद्धा तेलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा फहराकर शहीद हो गया. इनके साथी नायक दिगेन्द्र सिंह ने दुश्मनों को करारा जवाब देते हुए उनके नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया. 17 जून 1999 को शहीद सुमेरसिंह के पैतृक गांव दुधवाखारा में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. ऐसे शहीदों को शत शत नमन.
ड्यूटी पर ही तय कर दी थी बेटे की शादी...
शहीद सूबेदार के बेटे नरेंद्र सिंह बताते हैं 'जब वह दो साल के थे तब ही उनकी शादी उनके पिता ने बचपन में तय कर दी थी और तो और शहीद सूबेदार सुमेर सिंह की पुत्रवधू भी एक सैनिक की बेटी हैं. शहीद सूबेदार सुमेर सिंह के पुत्र नरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पिता ड्यूटी के दौरान अपने दोस्त हवलदार भरत सिंह शेखावत से चर्चा कर रहे थे. तब सूबेदार सुमेर सिंह ने अपने दोस्त से कहा मेरे लड़का है और तेरे लड़की है, क्यों ना दोनों की दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल लें. तब उनके दोस्त ने तुरंत उनकी बात को माना और बचपन में तय हुई दोनों की शादी तब हुई, जब सूबेदार सुमेर सिंह कारगिल युद्ध मे शहीद हो गए.
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रिटायर्ड सेना मेडल कैप्टन मदन सिंह शेखावत बताते हैं कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने धोखा देकर हमारे इलाके में कब्जा किया था. कारगिल युद्ध में 18 ग्रेनेडियर,17 जाट और 2nd राज रेफ ने हिस्सा लिया था. इन तीनों रेजीमेंट में राजस्थान के 60 प्रतिशत जवान थे. जिन्होंने बहादुरी के दम पर इस युद्ध को लड़ा था और विजय प्राप्त की थी.
करीब 2 महीने चले इस संघर्ष में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों को हमारा इलाका वापस ले उन्हें खदेड़ा था और उनको वापस अपने इलाके में भेजने में कामयाब रहे थे.
दो महीनों से भी ज्यादा समय चले इस युद्ध में जिले के 7 बहादुर वीर जवान मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे.
- सूबेदार सुमेर सिंह राठौड़, दूधवाखारा
- सतवीर सिंह शेखावत, रामपुरा बेरी तहसील राजगढ़
- महेंद्र सिंह गोदारा, सुरतपुरा,तहसील राजगढ़
- बजरंग लाल सूलखाणीया, तहसील राजगढ़
- शीशराम नोरंगपुरा: विनोद कुमार कटेवा, हरपालु
- राजकुमार पूनिया, भेसलि