चूरू. रविवार को गोपाष्टमी मनाई जा रही है. इस मौके पर आपको बताते हैं कि चूरू जिले में एक ऐसी गौशाला है, जहां मंत्री से लेकर संतरी तक हाजरी लगाने आते हैं. चूरू की ये गौशाला बिना किसी सरकारी अनुदान या सहयोग के संचालित हो रही है. इसके बावजूद इस गोशाला का संचालन बड़े ही सुंदर ढंग से किया जा रहा है. चूरू की इस गौशाला को हम गौवंश का अस्पताल भी कह सकते हैं.
यहां अधिकतर गौवंश किसी ना किसी बीमारी या अन्य किसी रोग से ग्रसित है. चूरू की इस गौशाला में लगभग हर नस्ल के गौवंश भी आपको देखने को मिल सकते हैं. गौशाला की सबसे पुरानी गाय गंगा है, जो नेत्रहीन है. इसकी हर रोज पूजा की जाती है. वहीं, गोशाला में इस खास गाय के लिए खास जगह भी है. यहां इसका आशीर्वाद लेने सैकड़ों लोग आते हैं.
मंत्री भी आते हैं गंगा का आशीर्वाद लेने
वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे और वर्तमान में विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ चुनाव के वक्त और चुनाव में जीत के बाद गौशाला में गंगा से आशीर्वाद लेने आते हैं. गौशाला समिति से जुड़े लोगों ने बताया कि राठौड़ अपने जन्मदिन पर भी यहां आते हैं. साथ ही सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले और निजी दफ्तरों में काम करने वाले कई लोग भी यहां गंगा का आशीर्वाद लेने आते हैं.
गौशाला संचालन की कहानी है दिलचस्प
इस गौशाला को शुरू करने की कहानी दिलचस्प है. गौशाला समिति के अध्यक्ष और इससे जुड़े लोगों ने बताया कि सड़कों पर अक्सर घायल और बीमार गोवंश देखने के बाद मन में एक पीड़ा होती थी. उन घायल और बीमार गौवंश का उपचार तो कर देते थे, लेकिन सड़कों पर घूमने वाले उन बेसहारा गौवंश को किसी का सहारा नहीं था. कूड़े-कचरे में मुंह मारकर पेट भरने के अलावा इन गौवंश के पास कोई और रास्ता भी नहीं था. इसके बाद कुछ लोगों की टीम ने मिलकर शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर बेसहारा गौवंश के रहने, खाने और पीने की व्यवस्था की. देखते ही देखते शहर के लोगों का साथ मिलने लगा. सेठ-साहूकार भी आगे आए तो गौशाला के भी दिन फिरे. युवाओं की मेहनत का नतीजा ये रहा कि हनुमानगढ़ी गौशाला ने 5 साल में करीब 7 हजार बीमार और दिव्यांग गौवंश का उपचार कर उन्हें स्वस्थ कर दिया गया.
आईसीयू और ऑपरेशन भी की व्यवस्था
गौशाला समिति के अध्यक्ष किशोर सैनी ने बताया कि 5 साल पहले शुरू की गई इस गौशाला में फिलहाल 273 गोवंश हैं, जिनका उपचार किया जा रहा है. गंभीर गौवंश के लिए आईसीयू भी बना हुआ है. बीमार गौवंश का या प्लस्टिक की थैलियां खाने से बीमार हुए गोवंश का ऑपरेशन भी किया जाता है.
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की गई हाइड्रोलिक पिकअप की व्यवस्था
गौशाला समिति से जुड़े लोगों ने बताया कि शुरू में बेसहारा गौवंश को यहां तक लाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. कई बार रात के अंधेरे में बीमार गौवंश को एंबुलेंस में डालने के लिए लोग नहीं मिलते थे. इसके बाद एक बार सोशल मीडिया पर एक वीडियो देखा, जिसमें हाइड्रोलिक मशीन से गौवंश को ले जाते दिखाया गया. इसके बाद गौशाला में भी ऐसी ही मशीन मंगवाई गई. अब केवल दो व्यक्ति भी बीमार गोवंश को आसानी से एंबुलेंस में डालकर गौशाला तक लेकर आ सकते हैं. इससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है.
एक रोटी-एक रुपये अभियान
गौशाला समिति से जुड़े सदस्यों ने बताया कि सेवा कार्य से आमजन को जोड़ने के लिए एक रोटी-एक रुपये अभियान शुरू किया गया, जिसके तहत शहर में तीन रिक्शा भी लगाए गए हैं, जो शहर के गली मोहल्लों में जाते हैं और शहर के प्रत्येक घर से एक रुपये के साथ ही एक रोटी एकत्रित कर गौशाला तक पहुंचाते हैं.