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कांग्रेस और भाजपा के लिए सुजानगढ़ सीट साख का सवाल...आरएलपी की एंट्री बिगाड़ सकती है समीकरण

राजस्थान की 3 सीटों राजसमंद, सहाड़ा और सुजानगढ़ पर हो रहे उपचुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिल रहा है. सुजानगढ़ में राजनीतिक बयानबाजी के बीच दोनों पार्टियों के नेता जीत के लिए अपना पूरा जोर लगाते दिख रहे हैं. लेकिन हनुमान बेनीवाल की रालोपा यहां दोनों दलों का चुनावी समीकरण बिगाड़ सकती है. ऐसे में यहां मुकाबला रोचक होने वाला है. पढ़ें पूरी खबर

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Published : Apr 13, 2021, 9:06 PM IST

कांग्रेस और भाजपा ने लगाया जोर, आरएलपी बिगाड़ सकती है समीकरण, By-election for Sujangarh seat,  Congress and BJP put emphasis, matter of Credit question for BJP and Congres
सुजानगढ़ सीट पर उपचुनाव की जंग

सुजानगढ़ (चूरू). प्रदेश में 3 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. राजसमन्द, सहाड़ा और सुजानगढ़ तीनों ही सीटों पर जीत को लेकर कांग्रेस और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. हर हाल में कांग्रेस और भाजपा इन सीटों पर कब्जा जमाना चाहती है. चुरू के सुजानगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ने लगी. सुजानगढ़ में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आने वक्त ही बताएगा लेकिन दोनों ही दल अपने स्तर पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

सुजानगढ़ सीट पर उपचुनाव की जंग

सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस हर हाल में इस सीट पर अपना कब्जा जमाना चाहती है क्योंकि कांग्रेस के ही सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ नेता दिवंगत मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के चलते यह सीट खाली हुई थी. ऐसे में पार्टी चाहती है कि उपचुनाव में जीत हासिल कर अपनी सीटों की संख्या कम न होने दे. वहीं दूसरी ओर भाजपा भी उपचुनाव में सरकार विरोधी माहौल तैयार कर इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए जोर लगाए है, ताकि ढाई साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जमीन तैयार कर सके. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने मतदाताओं तक अपनी पहुंच बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

कांग्रेस और भाजपा ने लगाया जोर, आरएलपी बिगाड़ सकती है समीकरण, By-election for Sujangarh seat,  Congress and BJP put emphasis, matter of Credit question for BJP and Congres
खास-खास

पढ़ें: By Election Special : सहाड़ा सीट पर किस ओर जाएंगे जाट मतदाता, तीनों प्रमुख दलों के मुखिया की प्रतिष्ठा दांव पर

इलेक्शन मैनेजमेंट में कांग्रेस भारी

जानकारों की माने तो इलेक्शन मैनेजमेंट के तौर पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस यहां थोड़ी भारी नजर आती है, कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही यहां तैयारी शुरू कर दी और जिले के प्रभारी मंत्री और प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी को यहां पूरी तरह से कैंप करवा दिया. राजपूत मतदाताओं तक सीधी पैठ बनाने और भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के उद्देश्य से कांग्रेस ने भंवरसिंह भाटी को सुजानगढ़ चुनाव संचालन का जिम्मा भी दे दिया. वहीं भाजपा में स्थानीय नेता और खुद प्रत्याशी खेमाराम ही चुनाव को मैनेज करते हुए नजर आ रहे हैं.

कांग्रेस नेताओें ने लगाया जोर

हालांकि सियासी जानकारों का कहना है कि राजनीतिक अनुभव के मामले में कांग्रेस के मनोज मेघवाल के मुकाबले भाजपा के खेमाराम भारी हैं. चुरू के सुजानगढ़ विधानसभा सीट बीकानेर और नागौर जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करती है. ऐसे में कांग्रेस ने सीमावर्ती जिलों के नेताओं को यहां की जिम्मेदारी दी है. हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के बड़े नेता सुजानगढ़ का दौरा कर चुके हैं लेकिन भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के नेताओं का दौरा यहां ज्यादा देखने को मिला है. किसान सम्मेलन के बहाने और इसके बाद नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी अजय माकन और सचिन पायलट भी यहां दो बार दौरा कर चुके हैं जबकि प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ कई मंत्री मतदाताओं तक अपनी सरकार की योजनाओं का प्रचार कर वोट मांगते नजर आए हैं.

पढ़ें: SPECIAL : उपचुनाव के सियासी मुद्दे : भाजपा के तरकश में कानून व्यवस्था, कांग्रेस के पास महंगाई और किसान आंदोलन के हथियार

भाजपा नेता भी कर रहे दौरे

वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह, अर्जुन मेघवाल, अनुराग ठाकुर, कैलाश चौधरी, राजेंद्र राठौड़ जैसे नेता भी सुजानगढ़ में दौरा कर पार्टी प्रत्याशी के लिए सभाएं कर चुके हैं, लेकिन इन सबके बीच एक सबसे महत्वपूर्ण बात जो चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकती, वह है नागौर सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल की सक्रियता.

रालोपा प्रमुख बेनीवाल बढ़ाएं दोनों दलों का संघर्ष

सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा ने प्रदेश की तीनों सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. सुजानगढ़ का नागौर जिले से नजदीक होना रालोपा के लिए थोड़ा अनुकूल है. रालोपा के नेता कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ वंशवाद और परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए मतदाताओं से बदलाव की मांग कर रहे हैं. पार्टी कार्यकर्ता नरेंद्र गुर्जर कहते हैं कि पिछले दो दशक से सुजानगढ़ की राजनीति दो परिवारों के बीच रह गई है. ऐसे में हम परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ बदलाव को लेकर लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं. कहते हैं कि भाजपा 2014 के बाद जैसे हर चुनाव में मोदी के चेहरे और नाम को भुना रही थी, वैसा ही कमोबेश सुजानगढ़ के उपचुनाव में भी देखने को मिल रहा है.

पढ़ें: SPECIAL : उपचुनाव में दिग्गजों की साख दांव पर...अजय माकन, अशोक गहलोत, डोटासरा और पायलट की होगी परीक्षा

भाजपा कार्यकर्ता भवानी पाईवाल कहते हैं कि प्रदेश सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में जो एक भी वादे पूरे नहीं हुए बल्कि जनता को ठगा गया. हम यह सारे मुद्दे जनता के पास लेकर जा रहे हैं. कांग्रेस के ब्लॉक पदाधिकारी प्रदीप तोदी कहते हैं कि सुजानगढ़ के विकास में मास्टर भंवरलाल का जो योगदान है, वह किसी से छिपा नहीं है और इसी को लेकर वे जनता के बीच जा रहे हैं. मास्टर भंवरलाल के साथ सुजानगढ़ के लोगों का एक नाता रहा है और अब उनके पुत्र के साथ लोगों का जुड़ाव दिख रहा है.

क्या कांग्रेस का सहानुभूति का कार्ड चलेगा?

हालांकि इन सबके बीच कांग्रेस पूरे चुनाव प्रचार को मास्टर भंवरलाल के इर्द-गिर्द करती हुई नजर आ रही है और यही कारण है कि चुनाव प्रचार की पूरी सामग्री में प्रत्याशी मनोज मेघवाल के साथ मास्टर भंवरलाल की फोटो भी नजर आती है. कांग्रेस यहां सहानुभूति का कार्ड खेलकर मतदाताओं तक पहुंचना चाह रही है. हालांकि भाजपा सहानुभूति के कार्ड पर पलटवार करते हुए मतदाताओं तक मोदी सरकार के कामकाज और दोनों प्रत्याशियों के राजनीतिक अनुभव की बात भी करती है.

पूर्व शिक्षा मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता वासुदेव देवनानी कहते हैं कि कांग्रेस का सहानुभूति कार्ड यहां नहीं चल सकता. उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रत्याशी का सुजानगढ़ के विकास में कोई योगदान नहीं है और वे जयपुर ही रहते थे और अब टिकट मिलने पर सुजानगढ़ में आए हैं. जबकि भाजपा के प्रत्याशी खेमाराम का लंबे अरसे सुजानगढ़ से जुड़ाव है. वहीं भाजपा के दावे को खारिज करते हुए प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी कहते हैं कि मास्टर भंवरलाल सुजानगढ़ के लाडले थे और जनता से उनका जुड़ाव रहा है और लोगों की पसंद के आधार पर ही पार्टी ने मनोज जी को यहां से उतारा है.

रालोपा की त्रिकोणीय संघर्ष की कोशिश

कांग्रेस और भाजपा जहां एक दूसरे को पटखनी देने की कोशिश में लगी हुई है, वहीं बेनीवाल की पार्टी रालोपा ने सीताराम नायक को यहां से मैदान में उतारा है. जातिगत समीकरण के साथ ही लंबे चौड़े ग्रामीण क्षेत्र की विधानसभा सीट पर बेनीवाल की पार्टी उपचुनाव के मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष बनाने में जुटी है और युवा फौज के सहारे बेनीवाल और उनके समर्थक गांवों में इस मुहिम में जुटे हुए हैं. हालांकि बताया जा रहा है कि बेनीवाल भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ अपने भाषणों में बोलते रहे हैं और दोनों ही पार्टियों के लिए रालोपा प्रत्याशी का मैदान में होना नुकसानदेह हो सकता है.

चुनाव में विकास मुद्दा ही नहीं

वैसे तो पानी-बिजली के साथ कई मुद्दे चुनाव में मूलभूत समस्याओं को लेकर होते हैं. सुजानगढ़ शहर में ट्रैफिक की समस्या के साथ ही बरसाती पानी की निकासी को लेकर भी लोगों में रोष है लेकिन पिछले सालों में दोनों ही पार्टियों ने इस मुद्दे पर काम किया हो ऐसा नजर नहीं आता. भाजपा जहां क्षेत्र के विकास को लेकर मुद्दा बना रही है तो प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर भी निशाना साध रही है. दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेश में खुद की सरकार होने का हवाला देते हुए क्षेत्र के विकास में ज्यादा योगदान देने की बात कह रही है. इसके अलावा रालोपा और कांग्रेस दोनों ही कृषि कानून को लेकर भाजपा को घेर रही है, हालांकि किसी कानूनी मुद्दे पर हनुमान बेनीवाल राज्य का साथ छोड़ चुके हैं ऐसे में रालोपा के समर्थक किसानों के हितैषी के रूप में वोट मांग रहे हैं.

पढ़ें: SPECIAL : कोरोना के साये में उपचुनाव प्रचार...सोशल मीडिया को भाजपा ने बनाया हथियार

दूसरी बार नहीं जीता कोई

सुजानगढ़ सीट पर मतदाताओं का अलग ही मिजाज अब तक देखने को मिला है. संभवत यह प्रदेश की पहली ऐसी सीट होगी जहां से लगातार दो बार कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. पिछले चार चुनाव में लगातार कांग्रेस के मास्टर भंवरलाल मेघवाल और भाजपा के खेमाराम के बीच टक्कर रही, लेकिन दोनों ही दो-दो के मुकाबले में बराबर रहे और लगातार नहीं जीत पाए. कमोबेश यही हालात इससे पहले के 11 चुनावों में भी देखने को मिले.

1951 से 2018 तक के कुल 15 चुनावों की स्थिति की बात करें तो लगातार दूसरी बार कोई भी प्रत्याशी यहां से चुनाव नहीं जीत पाया. ऐसे में जब कांग्रेस ने मास्टर भंवरलाल के पुत्र मनोज को मैदान में उतारा तो एक बार फिर मास्टर भंवरलाल के सामने चार बार मुकाबला कर चुके खेमाराम को भाजपा ने टिकट दे दिया. शायद खेमाराम और भाजपा इसी आशा में हैं कि अब तक 15 चुनावों के परिणाम जैसा ही परिणाम आए. हालांकि मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के चलते हो रहे चुनाव में उनके पुत्र को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है लेकिन वे भी पिता के नाम पर ही चुनाव लड़ रहे हैं.

जातीय समीकरण

करीब पौने तीन लाख मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जाट मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं, तो वहीं दूसरे नंबर पर अनुसूचित जाति के मतदाता चुनाव परिणाम पर सीधा असर डालते हुए नजर आते हैं. जबकि ब्राह्मण, राजपूत और अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुझान भी मतदान के परिणाम को बदलने की स्थिति में है.

सुजानगढ़ (चूरू). प्रदेश में 3 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. राजसमन्द, सहाड़ा और सुजानगढ़ तीनों ही सीटों पर जीत को लेकर कांग्रेस और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. हर हाल में कांग्रेस और भाजपा इन सीटों पर कब्जा जमाना चाहती है. चुरू के सुजानगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ने लगी. सुजानगढ़ में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आने वक्त ही बताएगा लेकिन दोनों ही दल अपने स्तर पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

सुजानगढ़ सीट पर उपचुनाव की जंग

सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस हर हाल में इस सीट पर अपना कब्जा जमाना चाहती है क्योंकि कांग्रेस के ही सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ नेता दिवंगत मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के चलते यह सीट खाली हुई थी. ऐसे में पार्टी चाहती है कि उपचुनाव में जीत हासिल कर अपनी सीटों की संख्या कम न होने दे. वहीं दूसरी ओर भाजपा भी उपचुनाव में सरकार विरोधी माहौल तैयार कर इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए जोर लगाए है, ताकि ढाई साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जमीन तैयार कर सके. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने मतदाताओं तक अपनी पहुंच बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

कांग्रेस और भाजपा ने लगाया जोर, आरएलपी बिगाड़ सकती है समीकरण, By-election for Sujangarh seat,  Congress and BJP put emphasis, matter of Credit question for BJP and Congres
खास-खास

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इलेक्शन मैनेजमेंट में कांग्रेस भारी

जानकारों की माने तो इलेक्शन मैनेजमेंट के तौर पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस यहां थोड़ी भारी नजर आती है, कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही यहां तैयारी शुरू कर दी और जिले के प्रभारी मंत्री और प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी को यहां पूरी तरह से कैंप करवा दिया. राजपूत मतदाताओं तक सीधी पैठ बनाने और भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के उद्देश्य से कांग्रेस ने भंवरसिंह भाटी को सुजानगढ़ चुनाव संचालन का जिम्मा भी दे दिया. वहीं भाजपा में स्थानीय नेता और खुद प्रत्याशी खेमाराम ही चुनाव को मैनेज करते हुए नजर आ रहे हैं.

कांग्रेस नेताओें ने लगाया जोर

हालांकि सियासी जानकारों का कहना है कि राजनीतिक अनुभव के मामले में कांग्रेस के मनोज मेघवाल के मुकाबले भाजपा के खेमाराम भारी हैं. चुरू के सुजानगढ़ विधानसभा सीट बीकानेर और नागौर जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करती है. ऐसे में कांग्रेस ने सीमावर्ती जिलों के नेताओं को यहां की जिम्मेदारी दी है. हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के बड़े नेता सुजानगढ़ का दौरा कर चुके हैं लेकिन भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के नेताओं का दौरा यहां ज्यादा देखने को मिला है. किसान सम्मेलन के बहाने और इसके बाद नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी अजय माकन और सचिन पायलट भी यहां दो बार दौरा कर चुके हैं जबकि प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ कई मंत्री मतदाताओं तक अपनी सरकार की योजनाओं का प्रचार कर वोट मांगते नजर आए हैं.

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भाजपा नेता भी कर रहे दौरे

वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह, अर्जुन मेघवाल, अनुराग ठाकुर, कैलाश चौधरी, राजेंद्र राठौड़ जैसे नेता भी सुजानगढ़ में दौरा कर पार्टी प्रत्याशी के लिए सभाएं कर चुके हैं, लेकिन इन सबके बीच एक सबसे महत्वपूर्ण बात जो चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकती, वह है नागौर सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल की सक्रियता.

रालोपा प्रमुख बेनीवाल बढ़ाएं दोनों दलों का संघर्ष

सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा ने प्रदेश की तीनों सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. सुजानगढ़ का नागौर जिले से नजदीक होना रालोपा के लिए थोड़ा अनुकूल है. रालोपा के नेता कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ वंशवाद और परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए मतदाताओं से बदलाव की मांग कर रहे हैं. पार्टी कार्यकर्ता नरेंद्र गुर्जर कहते हैं कि पिछले दो दशक से सुजानगढ़ की राजनीति दो परिवारों के बीच रह गई है. ऐसे में हम परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ बदलाव को लेकर लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं. कहते हैं कि भाजपा 2014 के बाद जैसे हर चुनाव में मोदी के चेहरे और नाम को भुना रही थी, वैसा ही कमोबेश सुजानगढ़ के उपचुनाव में भी देखने को मिल रहा है.

पढ़ें: SPECIAL : उपचुनाव में दिग्गजों की साख दांव पर...अजय माकन, अशोक गहलोत, डोटासरा और पायलट की होगी परीक्षा

भाजपा कार्यकर्ता भवानी पाईवाल कहते हैं कि प्रदेश सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में जो एक भी वादे पूरे नहीं हुए बल्कि जनता को ठगा गया. हम यह सारे मुद्दे जनता के पास लेकर जा रहे हैं. कांग्रेस के ब्लॉक पदाधिकारी प्रदीप तोदी कहते हैं कि सुजानगढ़ के विकास में मास्टर भंवरलाल का जो योगदान है, वह किसी से छिपा नहीं है और इसी को लेकर वे जनता के बीच जा रहे हैं. मास्टर भंवरलाल के साथ सुजानगढ़ के लोगों का एक नाता रहा है और अब उनके पुत्र के साथ लोगों का जुड़ाव दिख रहा है.

क्या कांग्रेस का सहानुभूति का कार्ड चलेगा?

हालांकि इन सबके बीच कांग्रेस पूरे चुनाव प्रचार को मास्टर भंवरलाल के इर्द-गिर्द करती हुई नजर आ रही है और यही कारण है कि चुनाव प्रचार की पूरी सामग्री में प्रत्याशी मनोज मेघवाल के साथ मास्टर भंवरलाल की फोटो भी नजर आती है. कांग्रेस यहां सहानुभूति का कार्ड खेलकर मतदाताओं तक पहुंचना चाह रही है. हालांकि भाजपा सहानुभूति के कार्ड पर पलटवार करते हुए मतदाताओं तक मोदी सरकार के कामकाज और दोनों प्रत्याशियों के राजनीतिक अनुभव की बात भी करती है.

पूर्व शिक्षा मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता वासुदेव देवनानी कहते हैं कि कांग्रेस का सहानुभूति कार्ड यहां नहीं चल सकता. उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रत्याशी का सुजानगढ़ के विकास में कोई योगदान नहीं है और वे जयपुर ही रहते थे और अब टिकट मिलने पर सुजानगढ़ में आए हैं. जबकि भाजपा के प्रत्याशी खेमाराम का लंबे अरसे सुजानगढ़ से जुड़ाव है. वहीं भाजपा के दावे को खारिज करते हुए प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी कहते हैं कि मास्टर भंवरलाल सुजानगढ़ के लाडले थे और जनता से उनका जुड़ाव रहा है और लोगों की पसंद के आधार पर ही पार्टी ने मनोज जी को यहां से उतारा है.

रालोपा की त्रिकोणीय संघर्ष की कोशिश

कांग्रेस और भाजपा जहां एक दूसरे को पटखनी देने की कोशिश में लगी हुई है, वहीं बेनीवाल की पार्टी रालोपा ने सीताराम नायक को यहां से मैदान में उतारा है. जातिगत समीकरण के साथ ही लंबे चौड़े ग्रामीण क्षेत्र की विधानसभा सीट पर बेनीवाल की पार्टी उपचुनाव के मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष बनाने में जुटी है और युवा फौज के सहारे बेनीवाल और उनके समर्थक गांवों में इस मुहिम में जुटे हुए हैं. हालांकि बताया जा रहा है कि बेनीवाल भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ अपने भाषणों में बोलते रहे हैं और दोनों ही पार्टियों के लिए रालोपा प्रत्याशी का मैदान में होना नुकसानदेह हो सकता है.

चुनाव में विकास मुद्दा ही नहीं

वैसे तो पानी-बिजली के साथ कई मुद्दे चुनाव में मूलभूत समस्याओं को लेकर होते हैं. सुजानगढ़ शहर में ट्रैफिक की समस्या के साथ ही बरसाती पानी की निकासी को लेकर भी लोगों में रोष है लेकिन पिछले सालों में दोनों ही पार्टियों ने इस मुद्दे पर काम किया हो ऐसा नजर नहीं आता. भाजपा जहां क्षेत्र के विकास को लेकर मुद्दा बना रही है तो प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर भी निशाना साध रही है. दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेश में खुद की सरकार होने का हवाला देते हुए क्षेत्र के विकास में ज्यादा योगदान देने की बात कह रही है. इसके अलावा रालोपा और कांग्रेस दोनों ही कृषि कानून को लेकर भाजपा को घेर रही है, हालांकि किसी कानूनी मुद्दे पर हनुमान बेनीवाल राज्य का साथ छोड़ चुके हैं ऐसे में रालोपा के समर्थक किसानों के हितैषी के रूप में वोट मांग रहे हैं.

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दूसरी बार नहीं जीता कोई

सुजानगढ़ सीट पर मतदाताओं का अलग ही मिजाज अब तक देखने को मिला है. संभवत यह प्रदेश की पहली ऐसी सीट होगी जहां से लगातार दो बार कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. पिछले चार चुनाव में लगातार कांग्रेस के मास्टर भंवरलाल मेघवाल और भाजपा के खेमाराम के बीच टक्कर रही, लेकिन दोनों ही दो-दो के मुकाबले में बराबर रहे और लगातार नहीं जीत पाए. कमोबेश यही हालात इससे पहले के 11 चुनावों में भी देखने को मिले.

1951 से 2018 तक के कुल 15 चुनावों की स्थिति की बात करें तो लगातार दूसरी बार कोई भी प्रत्याशी यहां से चुनाव नहीं जीत पाया. ऐसे में जब कांग्रेस ने मास्टर भंवरलाल के पुत्र मनोज को मैदान में उतारा तो एक बार फिर मास्टर भंवरलाल के सामने चार बार मुकाबला कर चुके खेमाराम को भाजपा ने टिकट दे दिया. शायद खेमाराम और भाजपा इसी आशा में हैं कि अब तक 15 चुनावों के परिणाम जैसा ही परिणाम आए. हालांकि मास्टर भंवर लाल मेघवाल के निधन के चलते हो रहे चुनाव में उनके पुत्र को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है लेकिन वे भी पिता के नाम पर ही चुनाव लड़ रहे हैं.

जातीय समीकरण

करीब पौने तीन लाख मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में जाट मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं, तो वहीं दूसरे नंबर पर अनुसूचित जाति के मतदाता चुनाव परिणाम पर सीधा असर डालते हुए नजर आते हैं. जबकि ब्राह्मण, राजपूत और अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुझान भी मतदान के परिणाम को बदलने की स्थिति में है.

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