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Devendra Jhajharia Got Emotional : जैवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया को मिलेगा पद्म भूषण, बोले- मेरे लिए भावुक पल...जीवन में खेल के आगे कुछ नहीं सोचा

केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. इसके तहत तीन पैरालंपिक मेडल जीतने वाले भारत के जैवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया को पद्म भूषण देने की घोषणा की गई है. इस पुरस्कार की घोषणा होने के बाद देवेंद्र ने कहा कि मेरे लिए यह (Devendra Jhajharia Got Emotional) भावुक कर देने वाला पल है.

Devendra Jhajharia Got Emotional
जैवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया को मिलेगा पद्म भूषण
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Published : Jan 25, 2022, 10:48 PM IST

चूरू. तीन पैरालिंपिक मेडल जीतने वाले भारत के जैवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया को पद्म भूषण पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से जारी सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों की घोषणा के तहत देवेंद्र को खेल के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए पद्म भूषण दिया जाएगा. यह पुरस्कार पाने वाले झाझड़िया देश के पहले पैरा खिलाड़ी होंगे. झाझड़िया राजस्थान के पहले (Padma Awards for Rajasthan Players) खिलाड़ी हैं, जिन्हें यह अवार्ड दिया जा रहा है. घोषणा के बाद देवेंद्र झाझड़िया के प्रशंसकों में जश्न का माहौल है.

पिछले वर्ष टोक्यो पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले (Tokyo Paralympics 2021 Silver Medalist Jhanjharia) देवेंद्र झाझड़िया एथेंस 2004 व रियो 2016 के पैरा ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. देवेंद्र को पद्म भूषण दिए जाने की खबर के साथ ही जिले की राजगढ़ तहसील में स्थित उनके गांव झाझड़ियों की ढाणी सहित पूरे जिले में हर्ष की लहर दौड़ गई. उनके चाहने वालों में जश्न का माहौल बन गया. झाझड़ियों की ढाणी में यह खबर मिलते ही उनके चाचा, भाइयों एवं गांववालों ने पटाखे फोड़े तथा एक दूसरे को लड्डू खिलाकर खुशी का इजहार किया. महिलाओं ने मंगलगीत गाए और लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी.

क्या बोले जैवलिन स्टार....

देवेंद्र बोले- जीवन में खेल के अलावा कुछ नहीं सोचा...

पद्म भूषण पुरस्कार की घोषणा पर भावुक देवेंद्र ने प्रतिक्रिया देते हुए इसका श्रेय अपने माता-पिता, गुरुजनों, कोच और प्रशंसकों को दिया है. उन्होंने कहा कि जीवन में उन्होंने खेल के अलावा कुछ नहीं सोचा, बस खेल को दिया है. इसके लिए बहुत सारी चीजों को छोड़ना (Devendra Jhajharia Got Emotional) पड़ा है तो छोड़ा है. ऐसे में खेल ने हमेशा उन्हें सम्मानित महसूस करवाया है.

पढ़ें : मेडलमैन देवेंद्र झाझड़िया : आसान नहीं था टोक्यो का सफर...जोहड़ पर लकड़ी के भाले से किया करते थे अभ्यास

देवेंद्र ने कहा कि आज भी बेहद अच्छा लग रहा है और मेरे लिए यह बहुत भावुक कर देने वाला पल है. झाझड़िया ने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि मुझे भारत सरकार नें पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की है. इस अवार्ड के साथ मेरी जिम्मेदारी देश के प्रति और बढ़ जाएगी. देश के पैरा स्पोर्ट्स को एक बल मिलेगा. मैं प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद देना (Devendra Jhajharia Thanks PM Modi) चाहूंगा कि पैरा स्पोर्ट्स को देश में एक नया आयाम और पहचान देने के लिए पहल की है.

जीता था देश के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण...

एथेंस पैरा ओलंपिक 2004 में स्वर्ण पदक जीतकर किसी भी एकल स्पर्धा में भारत के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले देवेंद्र को 2004 व 2016 में पैरा ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद विभिन्न अवार्ड व पुरस्कार मिल चुके हैं. भारत सरकार की ओर से खेल उपलब्धियों के लिए देवेंद्र को खेल जगत का सर्वोच्च राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया. इससे पूर्व उन्हें पद्मश्री पुरस्कार, स्पेशल स्पोर्ट्स अवार्ड 2004, अर्जुन अवार्ड 2005, राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार 2005, मेवाड़ फाउंडेशन के प्रतिष्ठित अरावली सम्मान 2009 सहित अनेक इनाम मिल चुके हैं. वे खेलों से जुड़ी विभिन्न समितियों के सदस्य रह चुके हैं.

साधारण किसान दंपती की संतान हैं देवेंद्र...

साधारण किसान दंपती राम सिंह और जीवणी देवी के यहां 10 जून 1981 को जन्में देवेंद्र की जिंदगी में एकबारगी अंधेरा-सा छा गया. जब एक विद्युत हादसे ने उनका हाथ छीन लिया. खुशहाल जिंदगी के सुनहरे स्वप्न देखने की उम्र में बालक देवेंद्र के लिए यह हादसा किसी बड़े गम से कम नहीं था. दूसरा कोई होता तो इस दुनिया की दया, सहानुभूति तथा किसी सहायता के इंतजार और उपेक्षाओं के बीच अपनी जिंदगी के दिन काटता.

पढ़ें : टोक्यो पैरालंपिक में 'म्हारो राजस्थान', 3 खिलाड़ियों ने जीते मेडल

लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था और उसके बचे हुए दूसरे हाथ में उस संकल्प की शक्ति देखने लायक थी. देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उल्टा कुदरत के इस अन्याय को ही अपना संबल मानकर हाथ में भाला थाम लिया और वर्ष 2004 में एथेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर करिश्मा कर दिखाया.

लकड़ी के भाले से हुई शुरुआत...

सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया. गांव के जोहड़ में एकलव्य की तरह लक्ष्य को समर्पित देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया. विधिवत शुरुआत हुई 1995 में स्कूली प्रतियोगिता से. कॉलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जैवलिन थ्रो और शॉट पुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जैवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

बुसान से हुई थी ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत...

देवेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ. वर्ष 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जैवलिन थ्रो, शॉट पुट और ट्रिपल जंप तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले. देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया जब उन्होंने 2004 के एथेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता.

पढ़ें : घर पहुंचा चैंपियन: गृह जिले में Paralympian झाझड़िया का भव्य स्वागत...राजनीति में Entry पर बोले ये!

इन खेलों में देवेंद्र की ओर से 62.15 मीटर दूर तक भाला फेंक कर बनाया गया विश्व रिकॉर्ड स्वयं देवेंद्र ने ही रियो में 63.97 मीटर भाला फेंककर तोड़ा. बाद में देवेंद्र ने वर्ष 2006 में मलेशिया पैरा एशियन गेम में स्वर्ण पदक जीता, वर्ष 2007 में ताईवान में अयोजित पैरा वर्ल्ड गेम में स्वर्ण पदक जीता और वर्ष 2013 में लियोन (फ्रांस) में हुई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला.

अनुशासन व समर्पण से मिली सफलता...

अपनी मां जीवणी देवी और डॉ. एपीजे कलाम को आदर्श मानने वाले देवेंद्र कहते हैं कि मैंने अपने आपको सदैव एक अनुशासन में रखा है. जल्दी सोना और जल्दी उठना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है. हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करता हूं. इससे मेरा एनर्जी लेवल हमेशा बना रहता है. देवेंद्र ने कहा कि पॉजिटिविटी आपके दिमाग को और शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है और बहुत ताकत देती है.

उम्र कितनी भी हो, कितने भी मेडल हों, कितने भी रिकॉर्ड तोड़े हों, जब भी एक मेडल लेकर आता हूं तो आकर सोचता हूं कि वह कौनसा बिंदू है, जहां और काम करने की जरूरत है. नई चीजों, तकनीक को समझने का प्रयास करता हूं. कभी खुद को महसूस नहीं होने देता कि चालीस का हो गया हूं. उम्र बस एक आंकड़ा है. एनर्जी उन शुभ चिंतकों से भी मिलती है जो मेरे हर मेडल पर वाहवाही करते हैं, मेरा हौसला बढ़ाते हैं.

चूरू. तीन पैरालिंपिक मेडल जीतने वाले भारत के जैवलिन स्टार देवेंद्र झाझड़िया को पद्म भूषण पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है. मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से जारी सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों की घोषणा के तहत देवेंद्र को खेल के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए पद्म भूषण दिया जाएगा. यह पुरस्कार पाने वाले झाझड़िया देश के पहले पैरा खिलाड़ी होंगे. झाझड़िया राजस्थान के पहले (Padma Awards for Rajasthan Players) खिलाड़ी हैं, जिन्हें यह अवार्ड दिया जा रहा है. घोषणा के बाद देवेंद्र झाझड़िया के प्रशंसकों में जश्न का माहौल है.

पिछले वर्ष टोक्यो पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले (Tokyo Paralympics 2021 Silver Medalist Jhanjharia) देवेंद्र झाझड़िया एथेंस 2004 व रियो 2016 के पैरा ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. देवेंद्र को पद्म भूषण दिए जाने की खबर के साथ ही जिले की राजगढ़ तहसील में स्थित उनके गांव झाझड़ियों की ढाणी सहित पूरे जिले में हर्ष की लहर दौड़ गई. उनके चाहने वालों में जश्न का माहौल बन गया. झाझड़ियों की ढाणी में यह खबर मिलते ही उनके चाचा, भाइयों एवं गांववालों ने पटाखे फोड़े तथा एक दूसरे को लड्डू खिलाकर खुशी का इजहार किया. महिलाओं ने मंगलगीत गाए और लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी.

क्या बोले जैवलिन स्टार....

देवेंद्र बोले- जीवन में खेल के अलावा कुछ नहीं सोचा...

पद्म भूषण पुरस्कार की घोषणा पर भावुक देवेंद्र ने प्रतिक्रिया देते हुए इसका श्रेय अपने माता-पिता, गुरुजनों, कोच और प्रशंसकों को दिया है. उन्होंने कहा कि जीवन में उन्होंने खेल के अलावा कुछ नहीं सोचा, बस खेल को दिया है. इसके लिए बहुत सारी चीजों को छोड़ना (Devendra Jhajharia Got Emotional) पड़ा है तो छोड़ा है. ऐसे में खेल ने हमेशा उन्हें सम्मानित महसूस करवाया है.

पढ़ें : मेडलमैन देवेंद्र झाझड़िया : आसान नहीं था टोक्यो का सफर...जोहड़ पर लकड़ी के भाले से किया करते थे अभ्यास

देवेंद्र ने कहा कि आज भी बेहद अच्छा लग रहा है और मेरे लिए यह बहुत भावुक कर देने वाला पल है. झाझड़िया ने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि मुझे भारत सरकार नें पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की है. इस अवार्ड के साथ मेरी जिम्मेदारी देश के प्रति और बढ़ जाएगी. देश के पैरा स्पोर्ट्स को एक बल मिलेगा. मैं प्रधानमंत्री मोदी जी को धन्यवाद देना (Devendra Jhajharia Thanks PM Modi) चाहूंगा कि पैरा स्पोर्ट्स को देश में एक नया आयाम और पहचान देने के लिए पहल की है.

जीता था देश के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण...

एथेंस पैरा ओलंपिक 2004 में स्वर्ण पदक जीतकर किसी भी एकल स्पर्धा में भारत के लिए पहला पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले देवेंद्र को 2004 व 2016 में पैरा ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद विभिन्न अवार्ड व पुरस्कार मिल चुके हैं. भारत सरकार की ओर से खेल उपलब्धियों के लिए देवेंद्र को खेल जगत का सर्वोच्च राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया. इससे पूर्व उन्हें पद्मश्री पुरस्कार, स्पेशल स्पोर्ट्स अवार्ड 2004, अर्जुन अवार्ड 2005, राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार 2005, मेवाड़ फाउंडेशन के प्रतिष्ठित अरावली सम्मान 2009 सहित अनेक इनाम मिल चुके हैं. वे खेलों से जुड़ी विभिन्न समितियों के सदस्य रह चुके हैं.

साधारण किसान दंपती की संतान हैं देवेंद्र...

साधारण किसान दंपती राम सिंह और जीवणी देवी के यहां 10 जून 1981 को जन्में देवेंद्र की जिंदगी में एकबारगी अंधेरा-सा छा गया. जब एक विद्युत हादसे ने उनका हाथ छीन लिया. खुशहाल जिंदगी के सुनहरे स्वप्न देखने की उम्र में बालक देवेंद्र के लिए यह हादसा किसी बड़े गम से कम नहीं था. दूसरा कोई होता तो इस दुनिया की दया, सहानुभूति तथा किसी सहायता के इंतजार और उपेक्षाओं के बीच अपनी जिंदगी के दिन काटता.

पढ़ें : टोक्यो पैरालंपिक में 'म्हारो राजस्थान', 3 खिलाड़ियों ने जीते मेडल

लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था और उसके बचे हुए दूसरे हाथ में उस संकल्प की शक्ति देखने लायक थी. देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उल्टा कुदरत के इस अन्याय को ही अपना संबल मानकर हाथ में भाला थाम लिया और वर्ष 2004 में एथेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर करिश्मा कर दिखाया.

लकड़ी के भाले से हुई शुरुआत...

सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया. गांव के जोहड़ में एकलव्य की तरह लक्ष्य को समर्पित देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया. विधिवत शुरुआत हुई 1995 में स्कूली प्रतियोगिता से. कॉलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जैवलिन थ्रो और शॉट पुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जैवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

बुसान से हुई थी ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत...

देवेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ. वर्ष 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जैवलिन थ्रो, शॉट पुट और ट्रिपल जंप तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले. देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया जब उन्होंने 2004 के एथेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता.

पढ़ें : घर पहुंचा चैंपियन: गृह जिले में Paralympian झाझड़िया का भव्य स्वागत...राजनीति में Entry पर बोले ये!

इन खेलों में देवेंद्र की ओर से 62.15 मीटर दूर तक भाला फेंक कर बनाया गया विश्व रिकॉर्ड स्वयं देवेंद्र ने ही रियो में 63.97 मीटर भाला फेंककर तोड़ा. बाद में देवेंद्र ने वर्ष 2006 में मलेशिया पैरा एशियन गेम में स्वर्ण पदक जीता, वर्ष 2007 में ताईवान में अयोजित पैरा वर्ल्ड गेम में स्वर्ण पदक जीता और वर्ष 2013 में लियोन (फ्रांस) में हुई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक देश की झोली में डाला.

अनुशासन व समर्पण से मिली सफलता...

अपनी मां जीवणी देवी और डॉ. एपीजे कलाम को आदर्श मानने वाले देवेंद्र कहते हैं कि मैंने अपने आपको सदैव एक अनुशासन में रखा है. जल्दी सोना और जल्दी उठना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है. हमेशा सकारात्मक रहने की कोशिश करता हूं. इससे मेरा एनर्जी लेवल हमेशा बना रहता है. देवेंद्र ने कहा कि पॉजिटिविटी आपके दिमाग को और शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है और बहुत ताकत देती है.

उम्र कितनी भी हो, कितने भी मेडल हों, कितने भी रिकॉर्ड तोड़े हों, जब भी एक मेडल लेकर आता हूं तो आकर सोचता हूं कि वह कौनसा बिंदू है, जहां और काम करने की जरूरत है. नई चीजों, तकनीक को समझने का प्रयास करता हूं. कभी खुद को महसूस नहीं होने देता कि चालीस का हो गया हूं. उम्र बस एक आंकड़ा है. एनर्जी उन शुभ चिंतकों से भी मिलती है जो मेरे हर मेडल पर वाहवाही करते हैं, मेरा हौसला बढ़ाते हैं.

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