चूरू. ऑनलाइन सेशन में जनता से मिले प्यार और स्नेह से अभिभूत गुलाबो ने मुस्कराहट बिखेरते हुए जनता के सवालों के जवाब भी दिए. गुलाबो ने कहा कि, उनके कालबेलिया समाज में जन्म लेते ही बेटियों को मार दिया जाता था वह खुद भी इसका शिकार हो चुकी है. लेकिन जब उन्हें सफलता मिली तो उनके समाज में बेटियों को जिंदा रखा जाने लगा इसके लिए वे ईश्वर की शुक्रगुजार है.
उन्होंने कहा कि, जब भी वे विदेशी धरती पर अपनी कला की वजह से तालियों की गड़गड़ाहट सुनती है तो अपने माता-पिता और मौसी की तस्वीर उनकी आंखों के सामने आती है.
गुलाबो ने लाइव सेशन के दौरान, 'अरै रै....रै काल्यो कूद पड्यो रे मेला में' की तर्ज पर 'अरै... रै... रै... मैं तो नाचू गाउ, कोरोना ने भगाऊँ रै... अरै.... रै रै रै' गा कर सुनाया जो उन्होंने कोरोना से जंग के लिए तैयार किया. प्रख्यात नृत्यांगना गुलाबो ने बीन पर उनका प्रसिद्ध नृत्य 'काल्यो कूद पड्यो रे मेला में' पर नृत्य भी करके दिखाया.
मेरी कला पर फिल्म बने लेकिन मसाला फिल्म नहीं:
गुलाबो ने कहा कि, उनके जीवन पर फिल्म बनाने के लिए कई निर्देशक और निर्माता उनके पास आते हैं लेकिन वह इस बारे में कोई भी फैसला अभी तक नहीं ले पाई हैं. उन्होंने कहा कि, इसके पीछे कारण यह है की वह यह चाहती है कि उनके जीवन पर जब भी कोई फिल्म बने तो वह कला और संघर्ष से जुड़ी हुई हो वह कोई मसाला फिल्म नहीं हो.
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तृप्ति पांडे और हिम्मत सिंह ने बदली जिंदगी:
इस दौरान गुलाबो ने कहा कि, कलाकार तृप्ति पांडे और हिम्मत सिंह ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और सबसे पहले उनकी शुरुआत 1981 में पुष्कर मेले में हुई थी. वहां तालियां सुनकर उन्हें लगा कि स्टेज उनका मंदिर है और दर्शक उनके भगवान. उन्होंने कहा कि, तृप्ति पांडे ने उन्हें जीवन में सब कुछ सिखाया और इसी कारण वह आज इस मुकाम पर है.