चूरू. पिछले दो महीने से ज्यादातर ऑटो घरों में खड़े-खड़े सिर्फ शो-पीस बनकर रह गए हैं. चूरू शहर में सैकड़ों ऑटो रिक्शा चालक हैं. ईटीवी भारत ने ऑटो रिक्शा चालकों से उनके हालात जानने की कोशिश की तो यह दर्द झलककर सामने आया कि जैसे-तैसे काम चला रहे हैं. अब तो दो वक्त की रोटी पर भी संकट आ रहा है. सरकार की तरफ से अब तक किसी तरह की मदद नहीं मिली है और न ही राशन के किट मिले हैं न ही आर्थिक मदद.
लॉकडाउन के चौथे चरण में शहर में ऑटो चालकों को दो सवारी के साथ ऑटो संचालन की परमिशन दी गई है. लेकिन ऑटो चालकों का कहना है कि दो सवारियों में डीजल का खर्चा चलना भी मुश्किल है. सवारी न मिलकर कोई बुकिंग मिल जाये तो काम चल सकता है, लेकिन ऐसे कस्टमर्स मुश्किल से ही मिलते हैं. ऐसे में शहर की सड़कों पर खाली ऑटो दौड़ाने से बेहतर है कि घर में ही खड़ा रखे. आम दिनों में जहां रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, कैलेक्ट्रेट सर्किल, लाल घंटाघर, पंखा सर्किल और दूसरे मुख्य स्थानों पर ऑटो रिक्शा की रेलमपेल रहती थी. अब लॉकडाउन के चलते इन जगहों पर बड़ी मुश्किल से इक्का-दुक्का ऑटो ही दिखाई देते हैं.
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ऑटो चालक रोजाना 250 से 300 रुपए कमाते थे. अब दो महीने से ऑटो घर पर खड़ा है. परिवार के लिए रोटी की समस्या भी हो गयी है. अभी उधार से काम चला रहे हैं सरकार ने 500 रुपये खाते में डलवाये हैं. यह राशि बहुत कम भी है और सब के खातों में आयी भी नहीं है.