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स्पेशल रिपोर्ट: इस गांव की बेटियों ने कबड्डी में सबको धोया - राजस्थान हिंदी समाचार

चूरू में कबड्डी के मैदान में बेटियां कमाल कर रही है. सरदारशहर से 35 किलोमीटर दूर गांव बिजारासर की बेटियां लगन और समर्पण से सफलता की नई इबारत लिख रही हैं. इस सफलता के पीछे इन बेटियों ने कड़ा संघर्ष किया, देखिए चूरू से स्पेशल रिपोर्ट...

Sardarshahar Churu, Female kabaddi players
बिजरासर गांव की बेटियों का कमाल
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Published : Dec 31, 2019, 6:36 PM IST

सरदारशहर (चूरू). सरदारशहर के बिजारासर गांव की बेटियां कबड्डी के क्षेत्र में अपना और प्रदेश का नाम रोशन कर रही है. यह सफलता बेटियों की इतनी आसान भी नहीं रही, इस सफलता के पीछे इन बेटियों ने कड़ा संघर्ष किया. गांव वालों के ताने सुने और ना जानें क्या-क्या इन बेटियों के घर वालों को सुनना पड़ा, लेकिन घरवालों ने साथ दिया और बेटियों ने अपने घर वालों को मौका दे दिया कहने पर कि हमारी छोरियां भी किसी छोरों से कम नहीं. आज पूरा बिजरासर गांव इन बेटियों के साथ खड़ा है.

बिजरासर गांव की बेटियों का कमाल

गांव में कोई खेल खेला जाता है तो वह कबड्डी खेला जाता है. बिजरासर के गांव में कबड्डी को धर्म की तरह माना जाता है. जब लड़कियां कबड्डी के मैदान में उतरती है तो पूरा गांव एक जगह इकट्ठा होता है और लड़कियों का कबड्डी मैच देखता है. बिजरासर गांव की 8 बेटियां नेशनल स्तर पर खेल चुकी है, जबकि 12 बेटियां राज्य स्तर पर, गत राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में राजस्थान की कबड्डी टीम में 2 बेटियां बीजरासर की शामिल थी. वहीं चूरू जिले पर पिछले 4 सालों से बिजरासर की बेटियों का ही कब्जा है. सरदारशहर के छोटे से गांव से निकलकर यह बेटियां दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा में भी कबड्डी के मैदान में अपना जौहर दिखा चुकी है.

पढ़ें- प्रदेश में पहली बार राज्य खेलों का आयोजन, 8 हजार खिलाड़ी लेंगे भाग

कोच को मारा ताना, फिर जो हुआ सबके सामने
दरअसल बात साल 2014 की है. जब बिजरासर के लड़कों की कबड्डी की टीम राजेंद्र पोटलिया के नेतृत्व में पास ही के गांव में कबड्डी का मैच खेलने के लिए गई. तब इस टीम को सफलता नहीं मिली और हार का मुंह देखना पड़ा, हार के साथ-साथ पड़ोस के गांव वालों ने राजेंद्र पोटलिया को ताना मार दिया की कबड्डी का खेल कोई बच्चों का खेल नहीं है. तब कबड्डी के कोच राजेंद्र को यह बात चुभ गई और उन्होंने ठान लिया कि वो एक ऐसी टीम बनाएंगे, जो ना सिर्फ शहर जिले में बल्कि देश में गांव का नाम रोशन करेगी. इसके बाद कोच राजेंद्र ने लड़कों पर काफी मेहनत की, लेकिन लड़के गुरु राजेंद्र की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. फिर उन्होंने असंभव को संभव बनाया और लड़कियों को कबड्डी के मैदान में उतार दिया और लड़कियों ने एक के बाद एक गांव से लेकर शहर तक और जिले से लेकर प्रदेश तक जीत के झंडे गाड़ दिए. लेकिन यह गुरु राजेंद्र के लिए इतना आसान भी नहीं रहा.

कोई नहीं माना तो अपने घर की बेटियां से की शुरुआत
जब गांव के लड़के कबड्डी में सफल नहीं हुए तो कोच राजेंद्र ने लड़कियों के साथ एक अच्छी कबड्डी की टीम बनाने कि मन में ठानी, लेकिन शुरू में गांव में कोई भी अपनी बेटियों को कबड्डी खिलाने पर राजी नहीं हुआ. तब हार थक कर राजेंद्र ने स्वयं ही अपनी दो बेटियों को और अपनी छोटी बहन को कबड्डी के मैदान में उतार दिया. इसके बाद धीरे-धीरे गांव की अन्य बेटियां भी कबड्डी खेलने के लिए आने लगी, लेकिन इस दौरान इन बेटियों को काफी कुछ गांव वालों से सुनना भी पड़ा. शुरुआत में तो अन्य लड़कियों के घर वाले भी कहते "कबड्डी लड़कों का खेल है लड़कियों का नहीं " लेकिन गांव की लड़कियों ने हार नहीं मानी और गुरु राजेंद्र के नेतृत्व में मेहनत करती रही और अंत में बेटियों ने सफलता के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए. आज इन बेटियों पर पूरा गांव गर्व करता है. कोच राजेंद्र बिना किसी दक्षिणा के लड़कियों को कबड्डी सिखा रहे हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: मैदान छोड़कर जा रहे खिलाड़ी, कुछ ऐसे हैं प्लेयर्स के हालात

खेल के साथ घर का काम भी करती है बेटियां
कबड्डी के मैदान में सफल होने के लिए बेटियां कड़ी मेहनत करती है. इन बेटियों के परिजनों ने बताया कि सुबह 4 बजे उठकर दौड़ लगाने चली जाती है, फिर कबड्डी के मैदान में प्रैक्टिस करती है. जिसके बाद यह बेटियां घर आकर घर के काम में घर वालों का हाथ भी बंटाती है. फिर यह बेटियां स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान लगाती है.

गांव में नहीं है कबड्डी का कोई अच्छा मैदान
बेटियां जहां कबड्डी में जीत के नए-नए झंडे गाड़ रही है और गांव वालों का नाम रोशन कर रही है. वहीं अफसोस की बात की गांव में अभी भी बेटियों को कबड्डी का अच्छा मैदान तक नसीब नहीं हुआ है. जिसके चलते बेटियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह बेटियां खुद ही गांव की एक छोटी सी जगह पर हर रोज मैदान को बनाती है. उसमें पानी डालती है और कबड्डी खेलती है.

गुरु राजेंद्र ने बताया कि जब बाहर मैच खेले जाते हैं तब मेट का मैदान मिलता है, लेकिन गांव में अच्छा मैदान नहीं होने के चलते बेटियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यदि गांव में एक अच्छा मैदान हो तो बेटियां निश्चित रूप से देश का नाम रोशन कर सकती है.

पढ़ें- 'कबड्डी गरीबों का खेल माना जाता था, लेकिन आज इसकी लोकप्रियता बढ़ गई है'

काफी पिछड़ा है अभी बिजरासर गांव
सरदारशहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर बिजरासर में आज भी कच्चे मकान है और अब भी इस गांव में मोबाइलों में नेटवर्क तक गांव में नहीं मिलता है. गांव में कच्ची गलियां है, यहां महज आठवीं क्लास तक का ही सरकारी विद्यालय है. गांव की ज्यादातर लोग खेती बाड़ी से ही अपना गुजारा करते हैं, लेकिन इतने अभाव के बावजूद इन बेटियों ने साबित कर दिया कि यदि परिवार का साथ मिले तो हर असंभव चीज को भी संभव कर सकते हैं.

सरदारशहर (चूरू). सरदारशहर के बिजारासर गांव की बेटियां कबड्डी के क्षेत्र में अपना और प्रदेश का नाम रोशन कर रही है. यह सफलता बेटियों की इतनी आसान भी नहीं रही, इस सफलता के पीछे इन बेटियों ने कड़ा संघर्ष किया. गांव वालों के ताने सुने और ना जानें क्या-क्या इन बेटियों के घर वालों को सुनना पड़ा, लेकिन घरवालों ने साथ दिया और बेटियों ने अपने घर वालों को मौका दे दिया कहने पर कि हमारी छोरियां भी किसी छोरों से कम नहीं. आज पूरा बिजरासर गांव इन बेटियों के साथ खड़ा है.

बिजरासर गांव की बेटियों का कमाल

गांव में कोई खेल खेला जाता है तो वह कबड्डी खेला जाता है. बिजरासर के गांव में कबड्डी को धर्म की तरह माना जाता है. जब लड़कियां कबड्डी के मैदान में उतरती है तो पूरा गांव एक जगह इकट्ठा होता है और लड़कियों का कबड्डी मैच देखता है. बिजरासर गांव की 8 बेटियां नेशनल स्तर पर खेल चुकी है, जबकि 12 बेटियां राज्य स्तर पर, गत राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में राजस्थान की कबड्डी टीम में 2 बेटियां बीजरासर की शामिल थी. वहीं चूरू जिले पर पिछले 4 सालों से बिजरासर की बेटियों का ही कब्जा है. सरदारशहर के छोटे से गांव से निकलकर यह बेटियां दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा में भी कबड्डी के मैदान में अपना जौहर दिखा चुकी है.

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कोच को मारा ताना, फिर जो हुआ सबके सामने
दरअसल बात साल 2014 की है. जब बिजरासर के लड़कों की कबड्डी की टीम राजेंद्र पोटलिया के नेतृत्व में पास ही के गांव में कबड्डी का मैच खेलने के लिए गई. तब इस टीम को सफलता नहीं मिली और हार का मुंह देखना पड़ा, हार के साथ-साथ पड़ोस के गांव वालों ने राजेंद्र पोटलिया को ताना मार दिया की कबड्डी का खेल कोई बच्चों का खेल नहीं है. तब कबड्डी के कोच राजेंद्र को यह बात चुभ गई और उन्होंने ठान लिया कि वो एक ऐसी टीम बनाएंगे, जो ना सिर्फ शहर जिले में बल्कि देश में गांव का नाम रोशन करेगी. इसके बाद कोच राजेंद्र ने लड़कों पर काफी मेहनत की, लेकिन लड़के गुरु राजेंद्र की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. फिर उन्होंने असंभव को संभव बनाया और लड़कियों को कबड्डी के मैदान में उतार दिया और लड़कियों ने एक के बाद एक गांव से लेकर शहर तक और जिले से लेकर प्रदेश तक जीत के झंडे गाड़ दिए. लेकिन यह गुरु राजेंद्र के लिए इतना आसान भी नहीं रहा.

कोई नहीं माना तो अपने घर की बेटियां से की शुरुआत
जब गांव के लड़के कबड्डी में सफल नहीं हुए तो कोच राजेंद्र ने लड़कियों के साथ एक अच्छी कबड्डी की टीम बनाने कि मन में ठानी, लेकिन शुरू में गांव में कोई भी अपनी बेटियों को कबड्डी खिलाने पर राजी नहीं हुआ. तब हार थक कर राजेंद्र ने स्वयं ही अपनी दो बेटियों को और अपनी छोटी बहन को कबड्डी के मैदान में उतार दिया. इसके बाद धीरे-धीरे गांव की अन्य बेटियां भी कबड्डी खेलने के लिए आने लगी, लेकिन इस दौरान इन बेटियों को काफी कुछ गांव वालों से सुनना भी पड़ा. शुरुआत में तो अन्य लड़कियों के घर वाले भी कहते "कबड्डी लड़कों का खेल है लड़कियों का नहीं " लेकिन गांव की लड़कियों ने हार नहीं मानी और गुरु राजेंद्र के नेतृत्व में मेहनत करती रही और अंत में बेटियों ने सफलता के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए. आज इन बेटियों पर पूरा गांव गर्व करता है. कोच राजेंद्र बिना किसी दक्षिणा के लड़कियों को कबड्डी सिखा रहे हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: मैदान छोड़कर जा रहे खिलाड़ी, कुछ ऐसे हैं प्लेयर्स के हालात

खेल के साथ घर का काम भी करती है बेटियां
कबड्डी के मैदान में सफल होने के लिए बेटियां कड़ी मेहनत करती है. इन बेटियों के परिजनों ने बताया कि सुबह 4 बजे उठकर दौड़ लगाने चली जाती है, फिर कबड्डी के मैदान में प्रैक्टिस करती है. जिसके बाद यह बेटियां घर आकर घर के काम में घर वालों का हाथ भी बंटाती है. फिर यह बेटियां स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान लगाती है.

गांव में नहीं है कबड्डी का कोई अच्छा मैदान
बेटियां जहां कबड्डी में जीत के नए-नए झंडे गाड़ रही है और गांव वालों का नाम रोशन कर रही है. वहीं अफसोस की बात की गांव में अभी भी बेटियों को कबड्डी का अच्छा मैदान तक नसीब नहीं हुआ है. जिसके चलते बेटियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह बेटियां खुद ही गांव की एक छोटी सी जगह पर हर रोज मैदान को बनाती है. उसमें पानी डालती है और कबड्डी खेलती है.

गुरु राजेंद्र ने बताया कि जब बाहर मैच खेले जाते हैं तब मेट का मैदान मिलता है, लेकिन गांव में अच्छा मैदान नहीं होने के चलते बेटियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यदि गांव में एक अच्छा मैदान हो तो बेटियां निश्चित रूप से देश का नाम रोशन कर सकती है.

पढ़ें- 'कबड्डी गरीबों का खेल माना जाता था, लेकिन आज इसकी लोकप्रियता बढ़ गई है'

काफी पिछड़ा है अभी बिजरासर गांव
सरदारशहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर बिजरासर में आज भी कच्चे मकान है और अब भी इस गांव में मोबाइलों में नेटवर्क तक गांव में नहीं मिलता है. गांव में कच्ची गलियां है, यहां महज आठवीं क्लास तक का ही सरकारी विद्यालय है. गांव की ज्यादातर लोग खेती बाड़ी से ही अपना गुजारा करते हैं, लेकिन इतने अभाव के बावजूद इन बेटियों ने साबित कर दिया कि यदि परिवार का साथ मिले तो हर असंभव चीज को भी संभव कर सकते हैं.

Intro:मनोज कुमार प्रजापत
सरदारशहर( चुरू)
मो -9024381575

सरदारशहर। देश की बेटियों ने जब जब ठाना है कुछ कर दिखाने का, तब तब बेटियों ने हर बंदिश को हर परंपरा को तोड़कर एक नया इतिहास बनाया हैं। आपने दंगल फिल्म तो देखी ही होगी। दंगल फिल्म की स्क्रिप्ट को हकीकत में तब्दील कर रही है सरदारशहर के एक छोटे से गांव बिजरासर की बेटियां, फर्क बस इतना है फिल्म में कुश्ती का दंगल था तो वहीं बिजरासर में कबड्डी का मैदान है, दंगल फिल्म में एक पिता ने सपना देखा था वह सपना अपनी बेटियों से पूरा करवाया था लेकिन यह सपना एक गुरु ने देखा और पूरा उसे उसकी शिष्य्यााए कर रही है। दंगल में जहां एक पिता ने अपनी बेटियों की सफलता के लिए कड़ी मेहनत की तो वहीं यहां एक गुरु ने अपने शिष्यों के लिए कड़ी तपस्या की ,जहां फिल्मी दुनिया में एक पिता की बेटियों ने कुश्ती के दंगल में कमाल दिखाया तो वहीं एक गुरु की शिष्यों ने कबड्डी के मैदान में कमाल कर रही है । हम बात कर रहे हैं सरदारशहर से 35 किलोमीटर दूर गांव बिजारासर की बेटियों की यहां की बेटियां अब कबड्डी के क्षेत्र में नई नई इबादत लिख रही है यह सफलता बेटियों की इतनी आसान भी नहीं रही ,इस सफलता के पीछे इन बेटियों ने कड़ा संघर्ष किया, गांव वालों के ताने सुने और न जाने क्या-क्या इन बेटियों के घर वालों को सुनना पड़ा, लेकिन घरवालों ने साथ दिया और बेटियों ने अपने घर वालों को मौका दे दिया कहने पर कि हमारी छोरियां भी किसी छोरों से कम नहीं। आज पूरा बिजरासर गांव इन बेटियों के साथ खड़ा है । गांव में कोई खेल खेला जाता है तो वह कबड्डी खेला जाता है बिजरासर के गांव में कबड्डी को धर्म की तरह माना जाता है । जब लड़कियां कबड्डी के मैदान में उतरती है तो पूरा गांव एक जगह इकट्ठा होता है लड़कियों का कबड्डी मैच देखता है। बिजरासर गांव की 8 बेटियां नेशनल स्तर पर खेल चुकी है जबकि 12 बेटिया राज्य स्तर पर, गत राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में राजस्थान की कबड्डी टीम में 2 बेटियां बीजरासर की शामिल थी वहीं चूरू जिले पर पिछले 4 सालों से बिजरासर की बेटियों का ही कब्जा है। सरदारशहर के छोटे से गांव से निकलकर यह बेटियां दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा में भी कबड्डी के मैदान में अपना जोहर दिखा चुकी है।

एक ताने ने बदल कर दी पूरे गांव की किस्मत,

बात दरअसल 2014 की है जब बिजरासर के लड़कों की कबड्डी की टीम राजेंद्र पोटलिया के नेतृत्व में पास ही के गांव में कबड्डी का मैच खेलने के लिए गई तब इस टीम को सफलता नहीं मिली और हार का मुंह देखना पड़ा, हार के साथ साथ पड़ोस के गांव वालों ने राजेंद्र पोटलिया को ताना मार दिया की कबड्डी का खेल कोई बच्चों का खेल नहीं है तब कबड्डी के कोच राजेंद्र को यह बात चुभ गई और उन्होंने ठान लिया कि मैं एक ऐसी टीम बनाऊंगा जो ना सिर्फ शहर जिले में बल्कि देश में गांव का नाम रोशन करेगी। इसके बाद गुरु राजेंद्र ने लड़कों पर काफी मेहनत की लेकिन लड़के गुरु राजेंद्र की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। फिर उन्होंने असंभव को संभव बनाया और लड़कियों को कबड्डी के मैदान में उतार दिया और लड़कियों ने एक के बाद एक गांव से लेकर शहर तक और जिले से लेकर प्रदेश तक जीत के झंडे गाड़ दिए लेकिन यह गुरु राजेंद्र के लिए इतना आसान भी नहीं रहा।

अपने घर की बेटियां से की शुरुआत

जब गांव के लड़के कबड्डी में सफल नहीं हुए तो गुरु राजेंद्र ने लड़कियों के साथ एक अच्छी कबड्डी की टीम बनाने कि मन में ठानी। लेकिन शुरू शुरू में गांव में कोई भी अपनी बेटियों को कबड्डी खिलाने पर राजी नहीं हुआ तब थक हारकर गुरु राजेंद्र ने स्वयं ही अपनी दो बेटियों को और अपनी छोटी बहन को कबड्डी के मैदान में उतार दिया। इसके बाद धीरे-धीरे गांव की अन्य बेटियां भी कबड्डी खेलने के लिए आने लगी लेकिन इस दौरान इन बेटियों को काफी कुछ गांव वालों से सुनना भी पड़ा शुरु शुरु में तो अन्य लड़कियों के घर वाले भी कहते "कबड्डी लड़कों का खेल है लड़कियों का नहीं " लेकिन गांव की लड़कियों ने हार नहीं मानी और गुरु राजेंद्र के नेतृत्व में मेहनत करती रही और अंत में बेटियों ने सफलता के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए । आज इन बेटियों पर पूरा गांव गर्व करता है। गुरु राजेंद्र बिना किसी दक्षिणा के लड़कियों को कबड्डी सिखा रहे हैं।

खेल के साथ बेटियां घर के काम में भी बटाती है घर वालों का हाथ

कबड्डी के मैदान में सफल होने के लिए बेटियां कड़ी मेहनत करती है इन बेटियों के परिजनों ने बताया कि सुबह 4 बजे उठकर दौड़ लगाने चली जाती है फिर कबड्डी के मैदान में प्रैक्टिस करती है जिसके बाद यह बेटियां घर आकर घर के काम में घर वालों का हाथ भी बटाती है। फिर यह बेटियां स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान लगाती है।

गांव में नहीं है कबड्डी का कोई अच्छा मैदान

बेटियां जहां कबड्डी में जीत के नए-नए झंडे गाड रही है और गांव वालों का नाम रोशन कर रही है वहीं अफसोस की बात की गांव में अभी भी बेटियों को कबड्डी का अच्छा मैदान तक नसीब नहीं हुआ है जिसके चलते बेटियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है यह बेटियां खुद ही गांव की एक छोटी सी जगह पर हर रोज मैदान को बनाती है उसमें पानी डालती है और कबड्डी खेलती है गुरु राजेंद्र ने बताया कि जब बाहर मैच खेले जाते हैं तब
मेंट का मैदान मिलता है लेकिन गांव में अच्छा मैदान नहीं होने के चलते बेटियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है यदि गांव में एक अच्छा मैदान हो तो बेटियां निश्चित रूप से देश का नाम रोशन कर सकती है।

Body:काफी पिछड़ा है अभी बिजरासर गांव

सरदारशहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर बिजरासर में आज भी कच्चे मकान है और अब भी इस गांव में मोबाइलों में नेटवर्क तक नहीं मिलता गांव मैं कच्ची गलियां है ,गांव में महज आठवीं कलास तक का ही सरकारी विद्यालय है। गांव की ज्यादातर लोग खेतीबाड़ी से ही अपना गुजारा करते हैं । लेकिन इतने अभाव के बावजूद इन बेटियों ने साबित कर दिया कि यदि परिवार का साथ मिले तो हर असंभव चीज को भी संभव कर सकते हैं।

बेटियों को जहां एक और आज भी हमारे समाज में अभिशाप माना जाता है वही बिजरासर की बेटियों की सफलताओं ने आज और बेटियों के लिए भी दरवाजे खोल दिए हैं आज गांव की हर बेटी इन से प्रेरणा लेकर खेल के क्षेत्र में जाना चाहती है और घर वाले भी अभी बेटियों का पूरा साथ दे रहे हैं।

राजस्थान के पडोसी राज्य हरियाणा में खेल के प्रति जो सरकार का रवैया है यदि वही रवैया हमारे राजस्थान की सरकार का भी हो और खेलों को बढ़ावा दें तो राजस्थान में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है राजस्थान की होना बेटियां भी खेल के क्षेत्र में जीत के झंडे गाड सकती हैं इन प्रतिभाओं को एक मौके की तलाश है यदि सरकार भी इन बेटियों के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया करवा दें तो वह दिन दूर नहीं जब यह छोटे से गांव की बेटियां विश्व में देश का नाम करती हुई दिखाई देगी।



Conclusion:बाइट-1 राजेन्द्र पोटलिया, बेटियो के गुरूजी
बाइट-2 से 5 बेटियो के घरवाले
बाइट- 6 से 9 खिलाड़ी बेटिया
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