चित्तौडगढ़. विश्व विख्यात चित्तौड़ दुर्ग की विरासत को सहेजने के लिए सरकारी स्तर पर तो प्रयास किए ही जा रहे हैं, लेकिन इसे स्वच्छ एवं सुंदर बताने के लिए चित्तौड़ की युवा पीढ़ी आगे आई है और सभी को एक संदेश भी दे रही है. 'आपणी विरासत, आपणी जिम्मेदारी' के नाम से बने ग्रुप के जरिए युवा दुर्ग को स्वच्छ रखने के लिए अभियान चला रहे हैं. इसके लिए प्रत्येक रविवार को यह युवा चित्तौड़ दुर्ग पर पहुंच रहे हैं और श्रमदान कर विरासत को सहेजन में जुटे हुए हैं.
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इतना ही नहीं समय के साथ लोग भी इनके साथ जुड़ते जा रहे हैं. यहां तक स्कूली बच्चे भी अब इसमें सहयोग करने में लगे हुए हैं. ऐसे में विरासत को सहेजने वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है तो यह लोगों के लिए भी एक संदेश हैं, जो यहां गंदगी फैलाते हैं, साथ ही ये स्वच्छता का संदेश भी दे रहे हैं.
चित्तौड़ दुर्ग पर ऐतिहासिक भवनों के रख-रखाव को लेकर समय-समय पर कई योजनाएं आई है, फिर भी अब भी कई संभावनाएं हैं, जिनसे कि यहां के भवनों की सुंदरता में चार चांद लगाए जाए. समय के साथ दुर्ग पर देश-विदेश के पर्यटकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में स्वाभाविक बात है कि दुर्ग पर आने वाले पर्यटक कई बार गंदगी कर जाते हैं. लम्बा क्षेत्रफल होने के कारण समय पर सफाई नहीं हो पाती है तो वहीं पर्यटक यहां-वहां बैठते हैं. एकांत के इन स्थानों पर सफाईकर्मी नहीं पहुंचते. वहीं दुर्ग पर कुल 84 कुंड एवं बावड़ियां हैं, जिनमें पानी भरा रहता है. इनके किनारे बैठने के दौरान पर्यटन प्लास्टिक आदि यहीं छोड़ जाते हैं तो काई भी जम जाती है. ऐसे में चित्तौडगढ़ के कुछ युवा ऐसे हैं, जो आपणी विरासत को अपनी जिम्मेदारी मान कर सहेजने में लगे हुए हैं.
प्रत्येक रविवार को ये युवा सुबह चित्तौड़ दुर्ग पर पहुंच जाते हैं और दुर्ग के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों की सफाई करते हैं. इसके परिणाम भी आने लगे हैं. करीब 42 सप्ताह से चल रही इस मुहिम ने दुर्ग पर चत्रंग मोहरी, भीमलत कुंड, सूरजपोल, सूरज कुंड, कलिका माता मंदिर के आस-पास आदि जगहों को साफ किया है.
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चित्तौड़ के युवाओं की मुहिम रंग ला रही है और अब लोग भी इससे जुड़ने लगे हैं. मुहिम के सदस्यों ने बताया की अभी दुर्ग की सफाई में काफी समय लगने वाला है, तो चित्तौडगढ़ शहर के नागरिक भी इससे जुड़ सकते हैं. साथ ही आपणी विरासत आपणी जिम्मदारी अभियान की जानकारी फेसबुक पर चित्तौड़ दर्पण के नाम से बनाए पेज पर भी देखी जा सकती है. यहां प्रत्येक रविवार को सुबह 7 से 10 तक श्रमदान किया जाता है. साथ ही इस मुहिम में जुड़े लोग दुर्ग पर आने वाले पर्यटकों से भी आग्रह करते हैं कि प्लास्टिक की थैलियों का कम से कम इस्तेमाल करें और कचरे को उचित स्थान पर ही फेंके.