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Special : लकड़ी पर नक्काशी कर खिलौने बनाने के लिए मशहूर बस्सी का वुड कार्विंग उद्योग ठप, कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट - वुड कार्विंग उद्योग बंद हुआ

चित्तौड़गढ़ जिले के बस्सी इलाके को काष्ठ कला के लिए जाना जाता है. यहां बनने वाले तरह तरह के लकड़ी के खिलौने सिर्फ राजस्थान और देश ही नहीं बल्की विदेशी लोग भी पसंद करते हैं. लेकिन अफसोस, इस कारीगरों के इस व्यवसाय पर संकट मंडरा रहा है. हालात ये हो चुके हैं कि कई परिवारों को रोजी रोजी के लिए दो चार करना पड़ रहा है. काष्ठ कला कारीगरों से जुड़ी देखिए ये खास रिपोर्ट...

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी कर खिलौने बनाने के लिए मशहूर बस्सी का वुड कार्विंग उद्योग ठप
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Published : Jun 21, 2021, 8:41 AM IST

Updated : Jun 21, 2021, 1:37 PM IST

चित्तौड़गढ़. जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर कोटा मार्ग स्थित बस्सी जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायतों में शुमार है. इस कस्बे को यहां की काष्ठ कला ने एक नई पहचान दी है. यहां बड़ी संख्या में देसी के साथ साथ विदेशी पर्यटक भी पहुंचते रहे हैं. बस्सी का नाम आते ही हमारी आंखों के सामने लकड़ी के खिलौनों की तस्वीर उभर कर आती है. यहां करीब 3 दर्जन से अधिक परिवार लकड़ी के हाथी घोड़े और बेलन चकले के अलावा बेवाण बनाते रहे हैं. काष्ठ कला यानि की लकड़ी से बनने वाले सामान यहां की एक पहचान बन गई है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अब यह विलुप्त होती दिख रही है.

लकड़ी पर नक्काशी कर खिलौने बनाने के लिए मशहूर बस्सी का वुड कार्विंग उद्योग ठप

यह कारोबार मुख्य तौर पर देसी विदेशी पर्यटकों के सहारे चल रहा था. बाहर के लोगों की डिमांड के चलते परिवार का हर व्यक्ति अपने इस परंपरागत पेशे को आगे बढ़ा रहा था. लेकिन जब से कोरोना ने दस्तक दी, लकड़ी से खिलौने तैयार करने वाले कारीगरों के हाथ थम गए. देसी विदेशी पर्यटकों का आना बंद हो गया. स्थानीय स्तर पर जिन जिन सामान की मांग रहती है धर्म स्थलों के बंद होने के कारण उस पर भी ग्रहण लग गया.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी करके तैयार किया गया खिलौना

हालत यह हो गई है कि पिछले डेढ़ साल से ऑर्डर पर बनाए गए बेवाण सहित लकड़ी के अन्य आइटम दुकानों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. कई परिवारों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई. कोरोना महामारी का यह दौर कब तक चलेगा पता नहीं. इसे देखते हुए लकड़ी पर अपनी कलाकारी दिखाने वाले कारीगरों ने पुर्वजों के इस हुनर से अपने हाथ खींच रहे हैं.

स्थिति यह है कि अब काष्ठ कला के बाजार में सन्नाटा नजर आता है. बमुश्किल दो से तीन परिवार अब भी पीढ़ियों पुरानी अपनी परंपरा को जीवित रखने की कोशिश में जुटे हैं.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी करता हुआ काष्ठ कारीगर
ये खिलौने देश के साथ साथ विदेशी पर्यटकों में भी काफी लोकप्रिय हैं. कोरोना से पहले इन कारीगरों को मेहनत के हिसाब से पैसे भी मिल जाते थे लेकिन अब सब कुछ लगता है खत्म हो गया है.

लॉकडाउन के बाद से कारोबार में कमी-

कारीगरों का कहना- कोरोना और लॉकडाउन के बाद से धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है. अब यहां पर पर्यटक नहीं आते हैं. अभी भी कोरोना वायरस से छुटकारा नहीं मिला. सरकार द्वारा मिली छूट के बाद सैलानी आते भी है तो पहले जैसे नहीं.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी कर तैयार किए गए कुछ और खिलौने

कारीगरों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वैसे भी विशेष किस्म की अड़ूसा की लकड़ी का संकट चल रहा है और पुलिस भी इसे लेकर काफी सख्त है. उधारी पर येन केन प्रकारेण लकड़ी की व्यवस्था कर भी ले तो माल नहीं बिक रहा.

सरकार से शिकायत है लेकिन उम्मीद भी है-

इन लोगों का कहना है कि हालात अब ऐसे बन चुके हैं कि लकड़ी खरीद तो ली लेकिन उसके पैसे देने के लिए नहीं है. लकड़ी से खिलौने तैयार करने वाले कारीगरों का कहना है कि अब उनके पास कोई रास्ता नहीं है जल्द ही अपना व्यवसाय बदलने की सोच रहे है ताकि अपना परिवार पाल सकें.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी की नक्काशी करके तैयार किया गया खिलौना

इन लोगों की सरकार से भी नाराजगी है. लॉकडाउन के दौरान कई तरह के पैकेज की गहलोत सरकार ने घोषणा की लेकिन इन परिवारों के लिए कुछ भी नहीं किया गया. अब इन लोगों की मांग है कि सरकार इन्हें भी कुछ राहत के नाम पर पैकेज दे जिससे अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें.

सवाल सिर्फ इन परिवारों के लिए आर्थिक पैकेज का नहीं है बल्कि अगर सरकार इनके लिए कुछ करती है तो बदले में ये परिवार दशकों पुरानी अपनी इस काष्ठ परंपरा को बरकरार रख सकेंगे.

चित्तौड़गढ़. जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर कोटा मार्ग स्थित बस्सी जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायतों में शुमार है. इस कस्बे को यहां की काष्ठ कला ने एक नई पहचान दी है. यहां बड़ी संख्या में देसी के साथ साथ विदेशी पर्यटक भी पहुंचते रहे हैं. बस्सी का नाम आते ही हमारी आंखों के सामने लकड़ी के खिलौनों की तस्वीर उभर कर आती है. यहां करीब 3 दर्जन से अधिक परिवार लकड़ी के हाथी घोड़े और बेलन चकले के अलावा बेवाण बनाते रहे हैं. काष्ठ कला यानि की लकड़ी से बनने वाले सामान यहां की एक पहचान बन गई है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अब यह विलुप्त होती दिख रही है.

लकड़ी पर नक्काशी कर खिलौने बनाने के लिए मशहूर बस्सी का वुड कार्विंग उद्योग ठप

यह कारोबार मुख्य तौर पर देसी विदेशी पर्यटकों के सहारे चल रहा था. बाहर के लोगों की डिमांड के चलते परिवार का हर व्यक्ति अपने इस परंपरागत पेशे को आगे बढ़ा रहा था. लेकिन जब से कोरोना ने दस्तक दी, लकड़ी से खिलौने तैयार करने वाले कारीगरों के हाथ थम गए. देसी विदेशी पर्यटकों का आना बंद हो गया. स्थानीय स्तर पर जिन जिन सामान की मांग रहती है धर्म स्थलों के बंद होने के कारण उस पर भी ग्रहण लग गया.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी करके तैयार किया गया खिलौना

हालत यह हो गई है कि पिछले डेढ़ साल से ऑर्डर पर बनाए गए बेवाण सहित लकड़ी के अन्य आइटम दुकानों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. कई परिवारों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई. कोरोना महामारी का यह दौर कब तक चलेगा पता नहीं. इसे देखते हुए लकड़ी पर अपनी कलाकारी दिखाने वाले कारीगरों ने पुर्वजों के इस हुनर से अपने हाथ खींच रहे हैं.

स्थिति यह है कि अब काष्ठ कला के बाजार में सन्नाटा नजर आता है. बमुश्किल दो से तीन परिवार अब भी पीढ़ियों पुरानी अपनी परंपरा को जीवित रखने की कोशिश में जुटे हैं.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी करता हुआ काष्ठ कारीगर
ये खिलौने देश के साथ साथ विदेशी पर्यटकों में भी काफी लोकप्रिय हैं. कोरोना से पहले इन कारीगरों को मेहनत के हिसाब से पैसे भी मिल जाते थे लेकिन अब सब कुछ लगता है खत्म हो गया है.

लॉकडाउन के बाद से कारोबार में कमी-

कारीगरों का कहना- कोरोना और लॉकडाउन के बाद से धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है. अब यहां पर पर्यटक नहीं आते हैं. अभी भी कोरोना वायरस से छुटकारा नहीं मिला. सरकार द्वारा मिली छूट के बाद सैलानी आते भी है तो पहले जैसे नहीं.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी पर नक्काशी कर तैयार किए गए कुछ और खिलौने

कारीगरों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वैसे भी विशेष किस्म की अड़ूसा की लकड़ी का संकट चल रहा है और पुलिस भी इसे लेकर काफी सख्त है. उधारी पर येन केन प्रकारेण लकड़ी की व्यवस्था कर भी ले तो माल नहीं बिक रहा.

सरकार से शिकायत है लेकिन उम्मीद भी है-

इन लोगों का कहना है कि हालात अब ऐसे बन चुके हैं कि लकड़ी खरीद तो ली लेकिन उसके पैसे देने के लिए नहीं है. लकड़ी से खिलौने तैयार करने वाले कारीगरों का कहना है कि अब उनके पास कोई रास्ता नहीं है जल्द ही अपना व्यवसाय बदलने की सोच रहे है ताकि अपना परिवार पाल सकें.

wooden toy business, lakadee ke khilaune
लकड़ी की नक्काशी करके तैयार किया गया खिलौना

इन लोगों की सरकार से भी नाराजगी है. लॉकडाउन के दौरान कई तरह के पैकेज की गहलोत सरकार ने घोषणा की लेकिन इन परिवारों के लिए कुछ भी नहीं किया गया. अब इन लोगों की मांग है कि सरकार इन्हें भी कुछ राहत के नाम पर पैकेज दे जिससे अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें.

सवाल सिर्फ इन परिवारों के लिए आर्थिक पैकेज का नहीं है बल्कि अगर सरकार इनके लिए कुछ करती है तो बदले में ये परिवार दशकों पुरानी अपनी इस काष्ठ परंपरा को बरकरार रख सकेंगे.

Last Updated : Jun 21, 2021, 1:37 PM IST
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