चित्तौड़गढ़. गुर्जर खेड़ा गांव इन दिनों चित्तौड़गढ़ ही नहीं अपनी हर्बल गुलाल की महक आसपास के शहरों तक भी बिखेर रहा है. होली को देखते हुए बड़ी संख्या में महिलाएं हर्बल गुलाल बनाने में जुटी हुई हैं. ऐसा नहीं कि सारा काम एक ही महिला के जिम्मे है. बल्कि सबकी अलग-अलग जिम्मेदारियां हैं. सब की जिम्मेदारियां अंत में हर्बल गुलाल के रूप में सामने आती हैं. यह सारी महिलाएं अलग-अलग स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं. जिनके लिए हिंदुस्तान जिंक की मंजरी फाउंडेशन और सखी परियोजना मददगार बन कर उभरी है.
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उसी का नतीजा है कि इस हर्बल गुलाल कि खुशबू चित्तौड़गढ़ कि नहीं आस-पड़ोस के शहरों तक भी पहुंच गई है. खास बात यह है कि यह हर्बल गुलाल पूर्णतया केमिकल मुक्त है. इस कारण इसकी डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है. हिंदुस्तान जिंक सीएसआर अर्थात सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत इन्हें हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करा रहा है. उसी का परिणाम है कि आज यह महिलाएं न केवल घर बैठे रोजगार हासिल कर रही हैं बल्कि धीरे-धीरे उनका सामाजिक स्तर में भी बदलाव देखने को मिल रहा है.
लगभग एक हजार की आबादी वाले इस गांव में अलग-अलग समूह दिन में ही 5 क्विंटल गुलाल तैयार कर रहे हैं. वो खुद ही इनकी पैकिंग करके उन्हें मार्केट तक पहुंचा रही हैं. वैसे तो हिंदुस्तान जिंक के सहयोग से महिलाओं द्वारा अलग-अलग काम किए जा रहे हैं. परंतु इस बार मंजरी फाउंडेशन द्वारा नवाचार करते हुए हर्बल गुलाल प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया. महिलाओं ने भी इसे हाथों हाथ लिया और फाउंडेशन के निर्देशानुसार हर्बल गुलाल बनाने का काम शुरू किया.
मोसिना बताती हैं कि यहां चार रंगों में गुलाल तैयार किया जा रहा है. हरा, गुलाबी, लाल और पीला जो कि पूर्णतया प्राकृतिक होने के साथ-साथ इको फ्रेंडली हैं. गुलाल को मक्के से बना अरारोट में प्राकृतिक रंग और इत्र मिलाकर तैयार किया जा रहा है. जिसे बनाने का प्रशिक्षण हिंदुस्तान जिंक के सहयोग से मंजरी फाउंडेशन द्वारा संचालित सखी परियोजना के अंतर्गत दिया गया है. प्रदेश के अन्य जिलों उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद और अमजेर में भी ट्रेनिंग दी जा रही है.
हिन्दुस्तान जिंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण मिश्रा ने बताया कि मुझे खुशी है कि सखी परियोजना से जुड़ कर ग्रामीण महिलाएं लघु उद्यमी और एंटरप्रेन्योरशिप की ओर बढ़ रही हैं. महिलाएं सशक्त ग्रामीण भारत का आधार हैं.