चित्तौड़गढ़. 1 जून को अंतरर्राष्ट्रीय बाल सुरक्षा दिवस और ग्लोबल पेरेंट्स डे है. दोनों के लिहाज से सोमवार को चित्तौड़गढ़ से बेहद सुखद खबर आई है. जिले की सबसे छोटी दो साल की कोरोना मरीज ने इसे हराकर जंग जीत ली है.
पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है. ऐसे में बच्चों और बुजुर्गों को एहतियात बरतने की हिदायत दी जा रही है, क्योंकि इनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है. 1 जून को अंतरर्राष्ट्रीय बाल सुरक्षा दिवस है. ऐसे में चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेड़ा के माहेश्वरी मोहल्ले में रहने वाली दो साल की सावी ने कोरोना को हरा फाइटर के रूप में उभरी है. सावी की इस जंग में उसके परिवार का और मुख्य रूप से दादी का बहुत बड़ा सहयोग रहा है. सावी लगभग 27 दिनों बाद घर लौटी तो सावी के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी, उसके आने से फिर घर में रौनक लौट आई. जिसके बाद अपनी लिटिल फाइटर के जीत पर घरवालों ने घर को पूरी तरह से सजाया. उसके बाद केक काटकर सावी की जीत का जश्न मनाया गया.
आसान नहीं था कोरोना से जंग
यह जंग न ही सावी के लिए और ना उसके परिवार के लिए आसान थी. कोरोना पॉजिटिव होने के 27 दिनों बाद 4 मई को उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई. दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले चुके इस घातक वायरस ने जब इस मासूम को अपनी चपेट में लिया तो घर वालों का भी कलेजा कांप गया. सावी की मां बुरी तरह से डर गई.
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हालांकि, घरवाले आश्चर्यचकित थे कि घर में सबकी रिपोर्ट नेगेटिव है तो सावी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. 4 मई को मासूम की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उसे तुरंत 13 दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन किया गया. उसके संपर्क में आने वालों की भी जांच हुई. जिसके बाद एहतियातन उसके पूरे परिवार को क्वॉरेंटाइन किया गया. 13 दिनों के बाद सावी 14 दिन और होम क्वॉरेंटाइन में रही.
27 दिन परिवार से दूर रही मासूम
जिसके बाद 2 साल की मासूम सावी 27 दिनों तक अपने माता-पिता सौरभ बोडाना और आकांक्षा बोडाना से दूर रही. यह समय सावी और परिवार के लिए बेहद मुश्किल रहा. सावी मम्मी-पापा को याद कर कई दिनों तक रोई लेकिन उसकी दादी ने अपनी रोती पोती को देख हौसला नहीं खोया. सावी की दादी ने अपनी पोती के साथ रहकर उसका पूरा ध्यान रखा.
रेड जोन में शामिल है सावी का घर
निंबाहेड़ा के जिस क्षेत्र में बोडाना परिवार रहता है, उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज सामने आए थे. यहां पर यह क्षेत्र अभी भी रेड जोन एरिया में शामिल है और यहां पर कर्फ्यू लागू है. ऐसे में अधिकांश लोग घरों में बंद होकर सभी के स्वस्थ होने का इंतजार कर रहे हैं.
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जानकारी में सामने आया कि बोडाना जैन समाज में आते हैं. ऐसे में क्वॉरेंटाइन के शुरुआती दिनों में इन्हें भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा. ये परिवार लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करता है. जिस कारण खाने को लेकर इन्हें भारी दिक्कत उठानी पड़ी.
दादी की कहानियों ने बहलाया मासूम का मन
अस्पताल में भर्ती सावी को लेकर भारी दिक्कत हो गई. 2 साल की आयु में बच्चे चॉकलेट और चिप्स आदि खाने के शौकीन होते हैं. बच्चों का सारा दिन खिलौने के साथ खेलने में बीतता है, लेकिन अस्पताल में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी. सावी का मन लगाने के लिए उसकी दादी तरह-तरह की तरकीब आजमाती. वे सावी को कहानियां सुनाकर दिल बहलाने की कोशिश करती और उससे बातें करती.
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सावी की दादी सुमित्रा बोडाना से पूछा गया कि सावी के साथ रहते हुए संक्रमित होने का डर नहीं लगेगा? जिस पर उसकी दादी ने कहा कि मुझे कभी डर नहीं लगा. भगवान करे मेरी पोती को मेरी उम्र लग जाए. इस तरह सावी ने अपनी दादी और परिवार के सहारे कोरोना से जंग जीत ली.