चित्तौड़गढ़. सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमारी पर सरकार गंभीर हैं लेकिन अधिकारी नहीं. यही कारण है कि इस गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगी उपचार और इस बीमारी में मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय के चक्कर काट रहे हैं. बोर्ड से जांच और प्रमाण पत्र मिल जाने के करीब आठ माह बाद भी आर्थिक सहायता जारी नहीं हो पाई है. ऐसे में इस बीमारी के पीड़ित एक वृद्ध ने जिले के आला अधिकारियों से उपचार में मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए गुहार लगाई है.
जानकारी के अनुसार पत्थर उत्पादित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों में सिलिकोसिस के नाम से यह जान लेवा बीमारी होती है. इस बीमारी में सिलिका कणों और टूटे पत्थरों की धूल की वजह से सिलिकोसिस होती है. धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है. खास कर ये बीमारी पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोडने के क्रेशर, कांच-उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग, पत्थर को काटने और रगडने जैसे उद्योगों के मजदूरों में पाई जाती है. यह एक लाइलाज बीमारी है. इस बीमारी में किसी के पीड़ित होने पर राज्य सरकार से आर्थिक सहायता का प्रावधान भी है. लेकिन चित्तौड़गढ़ जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें पीड़ित आर्थिक सहायता के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहा है.
इस सम्बंध में पीड़ित ने मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी से फोन पर भी बात कर आर्थिक सहायता दिलाने की मांग की है. जानकारी के अनुसार चित्तौड़गढ़ जिले में बेगूं तहसील के बदनपुरा निवासी भंवरलाल पुत्र भगवाना धाकड़ खदान में काम करता था. जिससे इसे सिलिकोसिस की बीमार हो गई.
इसके स्वास्थ्य की करीब आठ माह पूर्व जांच होकर चिकित्सकों के बोर्ड ने सिलिकोसिस का प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया. लेकिन आठ माह बाद भी उपचार के लिए आर्थिक सहायता जारी नहीं हो पाई है. इस सम्बंध में प्रार्थी ने कलक्ट्रेट पहुंच अधिकारियों से आर्थिक सहायता दिलाने के लिए गुहार लगाई है.
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प्रार्थी ने बताया कि वह सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित है और परिवार की आर्थिक स्थिति भी सही नहीं है. ऐसे में प्रार्थी को आर्थिक सहायता दिलाई जाए. इधर, मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. इन्द्रजीतसिंह ने बताया कि सिलिकोसिस के पीड़ित को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है. इस मामले में भी प्रमाण पत्र जारी हो चुका है. शीघ्र आर्थिक सहायता भी जारी हो जाएगी.