चित्तौड़गढ़. रिटायरमेंट के बाद अक्सर लोग आराम से जीवन गुजारने का सोचते हैं. कुछ लोग समय निकालने के लिए साइड बिजनस करते हैं तो कुछ खेती-किसानी में लग जाते हैं. राजस्व अधिकारी पद से रिटायर हुए रामखिलाड़ी गुर्जर ने भी टाइम पास करने के लिए अपने फार्म हाउस में फलों का पेड़ लगाना शुरू किया था, जो अब बड़ा बगीचा बन गया है. दो बार राम गुर्जर इसमें फेल भी हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. अब इसी बगीचे से उन्हें लाखों की कमाई हो रही है.
गंगरार पंचायत समिति के भटवाड़ा खुर्द गांव निवासी रामखिलाड़ी गुर्जर 2009 में राजस्व अधिकारी के पद से रिटायर हुए थे. तकनीकी जानकारी के अभाव में पहली बार में उनके लगाए गए पेड़ अच्छे से फल नहीं दे पाए. इसके बाद उन्होंने एक और बगीचा लगाया, लेकिन इस बार भी उन्हें मायूसी ही हाथ लगी. राम खिलाड़ी ने एक बार फिर किस्मत आजमाई. इस बार उन्होंने संबंधित फल की खेती की पूरी जानकारी जुटाई और थाई एप्पल बेर की खेती पर दांव खेला. देसी खाद और बेर की खेती-बाड़ी के पूरे नॉलेज के साथ इस बार वो कामयाब रहे. उन्होंने 5 बीघा जमीन में ये पेड़ लगाए, जिससे करीब ढाई सौ क्विंटल एप्पल बेर का उत्पादन हुआ. राम गुर्जर ये फल जोधपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ मंडी में भेच चुके हैं.
बेर ने हौसले को दी उड़ान : उन्होंने गवर्नमेंट की ओर से किसानों के लिए आयोजित होने वाले प्रोग्राम में भी भाग लिया. हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात के बड़े-बड़े बगीचों में पहुंचकर नॉलेज लिया और उस मोटिवेशन के आधार पर अपनी आगे की तैयारियों में जुट गए. उन्होंने अपने 17 बीघा फार्म हाउस पर थाई एप्पल बेर के अलावा चार-चार बीघा में नींबू और सीताफल के साथ एक बीघा में मौसमी और चीकू के पेड़ भी लगाए. थाई एप्पल बेर के प्रोडक्शन ने उनके हौसले को नई उड़ान दी. अब इसमें और भी सुधार करने की तैयारी में हैं. हालांकि नींबू और सीताफल का प्रोडक्शन आना बाकी है.
देसी खाद से बदली वैरायटी : गुर्जर के अनुसार, उन्होंने एप्पल बेर की खेती में नवाचार किया. उन्होंने अंग्रेजी खाद के स्थान पर देसी गोबर का इस्तेमाल किया, जिसका नतीजा यह रहा कि न केवल बेर की वैरायटी चेंज हो गई बेर सेब जितने मीठे होने लगे. उनका साइज भी बड़ा हो गया. आसपास की किसी भी बगीचे में ऐसे बेर देखने को नहीं मिले. मिठास के चलते उनके बेर की काफी डिमांड बढ़ गई. राम गुर्जर ने बताया कि उनके बेर के लिए 25 से 30 रुपए किलो तक के दाम मिले जबकि अन्य बगीचों से आने वाले बेर 15 रुपए तक ही बिके.
नेट से रुका खराबा : उन्होंने बताया कि बीते साल भी काफी प्रोडक्शन आया, लेकिन चमगादड़ के कारण भारी नुकसान हुआ. अधिकांश फल चमगादड़ ने खराब कर दिए. इससे बचाव के लिए किसी ने नेट लगाने की सलाह दी, जिसके बाद 80,000 खर्च कर नेट लगा दी. इसका परिणाम सुखद रहा और बिना किसी नुकसान की पूरा प्रोडक्शन मिल गया.
पहले करते थे गेहूं और मक्का की खेती : उन्होंने बताया कि जब तक सरकारी नौकरी में रहे तब तक ज्यादा समय नहीं मिल पाता था. परिवार के सहारे गेहूं और मक्का की खेती करते थे, लेकिन उसमें जो खर्चा लगता था उसके मुकाबले इनकम नहीं हो पाती थी. कई बार नुकसान भी झेलना पड़ता था. इसी कारण वह कुछ नया करना चाहते थे, लेकिन सरकारी सर्विस में इतना टाइम नहीं मिल पाता था. जब रिटायरमेंट का समय नजदीक आया तब उन्होंने अपना ध्यान नई फसल के लिए डाइवर्ट किया. उन्हें जब भी मौका मिलता वो बगीचों को देखने निकल जाते.