चित्तौड़गढ़. वन विभाग द्वारा विश्व वानिकी दिवस पर सुदूर जंगल में बसे गांव के लोगों के लिए एक अनूठी पहल की गई. विभागीय अधिकारियों द्वारा काटून्दा के महुपुरा में वेरी महादेव स्थित पलाश वैली में रविवार को न केवल विश्व वानिकी दिवस ग्रामीणों के बीच मनाया गया, बल्कि ग्रामीणों को पलाश के फूलों से रंग बनाना भी सिखाया गया.
गांव के आसपास बड़ी संख्या में पलाश के पौधे हैं. ऐसे में ग्रामीण रंग बना कर भी अपनी आमदनी बढ़ा सकेंगे. उप वन संरक्षक सुगना राम जाट के साथ उपखंड अधिकारी और विभाग के अधिकारी कर्मचारी एक साथ गांव पहुंचे और एक समारोह आयोजित कर विश्व वानिकी दिवस का महत्व बताया. लोगों को विशेषज्ञों द्वारा पलाश से रंग बनाने की विधि सिखाई गई, ताकि न सिर्फ वन सम्पदा के संरक्षण को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि ग्रामीण रंग बनाने के गुर सीख रोजगार से भी जुड़ पाएंगे.
उप वन संरक्षक जाट ने इस मौके पर मानव जीवन में वन एवं वन्य जीवों का महत्व बताते हुए कहा कि जीवन के लिए पेड़ पौधे जरूरी हैं. आज जो हमारे सामने समस्याएं आ रही हैं, उसका मूल कारण वनों की अंधाधुंध कटाई है, पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है. हालत गंभीर होते देख कर तमाम देश आज इस मुद्दे पर सामूहिक तौर पर कदम उठाने को मजबूर हो गए हैं.
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बेगू के उपखंड अधिकारी, सहायक उप वन संरक्षक समी उल्ला खान के अलावा रावतभाटा से भी विभाग के अधिकारी और कर्मचारी शामिल थे. इस दौरान विशेषज्ञों द्वारा पलाश के फूलों से ग्रामीणों को रंग बनाने की विधि भी सिखाई. इसे देखते हुए बड़ी संख्या में गांव की महिलाएं भी कार्यक्रम में पहुंची.
गौरतलब है कि पलाश को 'जंगल की आग' भी कहा जाता है. प्राचीन काल से ही होली के रंग इसके फूलों से तैयार किए जाते रहे हैं. पलाश को किंसुक, पर्ण, याज्ञिक, रक्तपुष्पक, क्षारश्रेष्ठ, वात-पोथ आदि नामों से भी जाना गया है. चित्तौड़गढ़ जिले और आस-पास के क्षेत्र में यह बहुतायत में मिलते हैं.