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ईडाणा माता ने छह दिन में दूसरी बार किया अग्नि स्नान, दर्शन करने पहुंचे श्रद्धालु

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Published : Mar 16, 2021, 8:13 AM IST

मेवाड़ के प्रसिद्ध मंदिर ईडाणा माता मंदिर में रविवार को माता ने अग्नि स्नान किया है. बता दें कि माता के मंदिर में प्रतिमा से हर महीने दो से तीन बार आग प्रज्जवलित होती है. इस अग्नि स्नान से मां को चढ़ा गया चढ़ावा भष्म हो जाता है लेकिन आग के कारण का पता अभी तक नहीं लग पाया है.

चित्तौड़गढ़ न्यूज, edana temple of Udaipur
मेवाड़ की प्रसिद्ध शक्तिपीठ ईडाणा माता मंदिर

चित्तौड़गढ़. निकटवर्ती उदयपुर जिले में स्थित मेवाड़ की प्रसिद्ध शक्तिपीठ ईडाणा माता मंदिर में माता रानी ने रविवार देर रात अग्नि स्नान किया है. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त देर रात मंदिर पहुंचे. वहीं श्रद्धालुओं में यह चर्चा का विषय भी रहा. श्रद्धालु बड़ी संख्या में मंदिर में पहुंचे थे.

मेवाड़ की प्रसिद्ध शक्तिपीठ ईडाणा माता मंदिर

जानकारी में सामने आया कि मां ईडाणा ने इसी महीने 6 दिन बाद पुनःवापस रविवार रात को अग्नि स्नान किया. मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध ईडाणा माताजी का पिछले मंगलवार को भी अग्नि स्नान हुआ था. फाल्गुन माह की पवित्र एकादशी मंगलवार को शुभ मुहूर्त 4.25 पर अग्नि स्नान हुआ. गौरतलब है कि माता ईडाणा की ख्याति देश के गिने-चुने मंदिरों में है, जो अपने आप में ही बहुत प्राचीन और विख्यात है. इन मंदिरों की लोकप्रियता इतनी होती है कि विदेशों से भी लोग माता के दर्शनों के लिए आते हैं. माता ईडाणा मंदिर की महिमा बहुत निराली है. ये मंदिर राजस्थान की ईडाणा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो उदयपुर जिले में स्थित है. यहां पर मां के चमत्कार पूर्ण दरबार की महिमा बहुत ही निराली है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं.

मान्यता कि लकवा रोगी होते हैं यहां ठीक

ये मंदिर उदयपुर शहर से 60 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है. मां का ये दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है. अब तो केवल माता रानी खुले चौक में हैं. बाकी इनके चारो तरफ कमेटी के कार्यालय, धर्मशाला आदि बन गए हैं. इस मंदिर का नाम ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस मंदिर में भक्तों की खास आस्था है क्योंकि यहां मान्यता है कि लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं.

प्रतिमा से स्वत: आग होती है प्रज्जवलित

इस मंदिर की हैरान करने वाली बात ये है कि यहां स्थित देवी मां की प्रतिमा से हर महीने में दो से तीन बार स्वतः ही अग्नि प्रज्जवलित होती है. इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियां, धागे सभी पूजा सामग्री जो मां को चढाई जाती हैं, वो भस्म हो जाती हैं. इसे देखने के लिए मां के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे प्रकट होती है.

यह भी पढ़ें. SPECIAL : शेखावाटी की कला और पर्यटन को मिलेगी पहचान...पहली बार आयोजित होगा शेखावाटी महोत्सव

ईडाणा माता मंदिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं. ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट उचाई तक पहुंच जाती है लेकिन इस अग्नि के पीछे खास बात ये भी है कि आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोई आंच तक नहीं आई. भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं और इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है.

यहां भक्त अपनी इच्छा पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते है और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती वो दम्पत्ति यहां झुला चढ़ाने आते हैं. खास कर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं.

चित्तौड़गढ़. निकटवर्ती उदयपुर जिले में स्थित मेवाड़ की प्रसिद्ध शक्तिपीठ ईडाणा माता मंदिर में माता रानी ने रविवार देर रात अग्नि स्नान किया है. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त देर रात मंदिर पहुंचे. वहीं श्रद्धालुओं में यह चर्चा का विषय भी रहा. श्रद्धालु बड़ी संख्या में मंदिर में पहुंचे थे.

मेवाड़ की प्रसिद्ध शक्तिपीठ ईडाणा माता मंदिर

जानकारी में सामने आया कि मां ईडाणा ने इसी महीने 6 दिन बाद पुनःवापस रविवार रात को अग्नि स्नान किया. मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध ईडाणा माताजी का पिछले मंगलवार को भी अग्नि स्नान हुआ था. फाल्गुन माह की पवित्र एकादशी मंगलवार को शुभ मुहूर्त 4.25 पर अग्नि स्नान हुआ. गौरतलब है कि माता ईडाणा की ख्याति देश के गिने-चुने मंदिरों में है, जो अपने आप में ही बहुत प्राचीन और विख्यात है. इन मंदिरों की लोकप्रियता इतनी होती है कि विदेशों से भी लोग माता के दर्शनों के लिए आते हैं. माता ईडाणा मंदिर की महिमा बहुत निराली है. ये मंदिर राजस्थान की ईडाणा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो उदयपुर जिले में स्थित है. यहां पर मां के चमत्कार पूर्ण दरबार की महिमा बहुत ही निराली है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं.

मान्यता कि लकवा रोगी होते हैं यहां ठीक

ये मंदिर उदयपुर शहर से 60 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है. मां का ये दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है. अब तो केवल माता रानी खुले चौक में हैं. बाकी इनके चारो तरफ कमेटी के कार्यालय, धर्मशाला आदि बन गए हैं. इस मंदिर का नाम ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस मंदिर में भक्तों की खास आस्था है क्योंकि यहां मान्यता है कि लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं.

प्रतिमा से स्वत: आग होती है प्रज्जवलित

इस मंदिर की हैरान करने वाली बात ये है कि यहां स्थित देवी मां की प्रतिमा से हर महीने में दो से तीन बार स्वतः ही अग्नि प्रज्जवलित होती है. इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियां, धागे सभी पूजा सामग्री जो मां को चढाई जाती हैं, वो भस्म हो जाती हैं. इसे देखने के लिए मां के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे प्रकट होती है.

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ईडाणा माता मंदिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं. ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट उचाई तक पहुंच जाती है लेकिन इस अग्नि के पीछे खास बात ये भी है कि आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोई आंच तक नहीं आई. भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं और इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है.

यहां भक्त अपनी इच्छा पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते है और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती वो दम्पत्ति यहां झुला चढ़ाने आते हैं. खास कर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं.

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