चित्तौड़गढ़. राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राकेश पुरोहित राजस्थान के अधिकारियों में प्रशासनिक संत के नाम से पहचाने जाते हैं. अक्सर प्रशासनिक अधिकारियों को राज-काज से ही फुर्सत नहीं मिल पाती, लेकिन राकेश पुरोहित न केवल अपना सरकारी कामकाज ईमानदारी से निभाते हैं, बल्कि समय प्रबंधन के जरिए कथा कर गौ महिमा का वंदन भी करते हैं. अब तक वे लगभग 200 स्थानों पर कथाएं कर चुके हैं, जिनमें राजस्थान के साथ-साथ गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र भी शामिल है. पुरोहित वर्तमान में यहां जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पदभार संभाले हैं. ललाट पर बड़ा सा चंदन का तिलक, प्रशासनिक अधिकारियों में उन्हें एक अलग पहचान देता है.
उनका मानना है कि भारतीय संस्कृति सनातन धर्म का मूल गौ माता है. गौ माता की सेवा से दया, करुणा और सहानुभूति का आविर्भाव होता है. मूल रूप से सिरोही के आदर्श डुंगरी गांव में एक साधारण से परिवार में डूंगर राम राजपुरोहित के घर जन्मे राकेश का हिंदी साहित्य में पीजी करने के बाद बतौर शिक्षक पद के लिए चयन हो गया. 3 साल बाद वर्ष 2008 में उनका राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया. अब तक जालोर, जसवंतगढ़, भीनमाल, राजसमंद तथा आमेट में बतौर प्रशासनिक अधिकारी सेवाएं देने के बाद सरकार द्वारा चित्तौड़गढ़ भेजा गया, लेकिन भौगोलिक दृष्टि से बड़ा जिला होने के बावजूद गौ माता की सेवा का जुनून खत्म नहीं हुआ. उल्टा यहां गौ कथा का काम और भी बढ़ गया.
कथा के लिए जिला परिषद पहुंच जाते हैं लोग : सीईओ पुरोहित की कथा के प्रति लोगों में कितना क्रेज है, वो इस बात से देखा जा सकता है कि कथा कराने वाले सबसे पहले पुरोहित के पास पहुंच कर उनसे समय मांगते हैं. बकायदा पुरोहित इसके लिए एक अलग से डायरी मेंटेन करते हैं, जिसमें राजकीय अवकाश को देखकर उसी के अनुरूप कथा का टाइम-टेबल निर्धारित करते हैं. स्थिति यह है कि ग्रामीण उनकी अनुमति के बाद ही कथा के आयोजन का समय निर्धारित करते हैं.
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अब तक कर चुके हैं 200 कथाएं : अप्रैल 2007 में भीनमाल के भादरड़ा गांव में उनकी पहली कथा हुई थी. इसके बाद आस-पास के गांव में भी उनकी डिमांड बढ़ गई और धीरे-धीरे सिरोही और जालोर के साथ-साथ पाली, राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ , भीलवाड़ा, टोंक, बाड़मेर तक उनकी ख्याति फैल गई. राकेश पुरोहित अहमदाबाद, सूरत, मुंबई और बेंगलुरु आदि में भी गौ कथा कर चुके हैं.
नाना के आदर्शों का प्रभाव : पुरोहित पर अपने नाना के आदर्शों का काफी प्रभाव पड़ा. आबू रोड के पास रहने वाले नाना धीराराम जी रेलवे में थे और गीता के विद्वान थे. बाल्य काल में पुरोहित जब अपने ननिहाल जाते तो वहां नाना की दिनचर्या से काफी प्रभावित हुए. सातवीं क्लास में उन्हें नाना ने गीता प्रदान की. जब हायर एजुकेशन के लिए जयपुर गए तो वहां इस्कॉन से जुड़ गए और शनिवार-रविवार को संकीर्तन का जिम्मा संभाल लिया, लेकिन वृंदावन के दर्शन के बाद उनके जीवन का मकसद ही बदल गया.
10 साल पहले आया जीवन में नया मोड़ : उनके जीवन में साल 2012 में उस समय नया टर्निंग प्वाइंट आया, जब पहली बार नंद गोवा गौशाला को संतों के आदेश पर उन्होंने आवास गौशाला बना दिया, जोकि उनके कार्यस्थल से 17 किलोमीटर दूर थी. साढ़े 4 साल तक नित्य आवास स्थली गौशाला ही रही. उसके बाद उनका जीवन गौ माता को समर्पित हो गया.
अनूठा समय प्रबंधन, पत्नी का भी साथ : राजकाज के साथ गौ माता की महिमा को देखकर समय कैसे निकाल पाते हैं ? ईटीवी भारत ने जब पुरोहित से संपर्क किया तो उनका कहना था कि प्रपंच से दूर रहकर टाइम निकाला जा सकता है. इसमें मेरी पत्नी मनस्वी का भी पूरा साथ मिल रहा है, जिन्होंने परिवार और बच्चों का जिम्मा संभाल रखा है. नौकरी के साथ-साथ टाइम मैनेजमेंट कर कोई भी व्यक्ति 3 से 4 घंटे आराम से अपने अन्य कार्यों को दे सकता है. इसके लिए अक्सर अवकाश के दिन को चुना जाता है, लेकिन यदि आगे कोई अवकाश है तो वह एक-आध दिन की सीएल ले लेते हैं. वैसे अब तक जो भी कथाएं की गईं, लगभग 90% अवकाश के दिनों को ही चुना गया. गौ सेवा के लिए एनजीओ भी बना हुआ है, जोकि गायों की चिकित्सा के साथ-साथ उनकी देखरेख का काम करता है.