चित्तौड़गढ़. राज्य सरकार की नई आबकारी नीति ठेकेदारों को रास नहीं आ रही. दरअसल, नीलामी में भाग लेने के लिए भारी-भरकम राशि के साथ-साथ ठेकों की ऊंची आरक्षित दर के चलते शहरी क्षेत्रों के ठेकेदार आशा के अनुरूप रुचि नहीं दिखा रहे हैं. नतीजतन फर्स्ट फेज में निंबाहेड़ा और चित्तौड़गढ़ की एक तिहाई दुकानों का बंदोबस्त नहीं हो पाया है.
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वहीं, विभागीय अधिकारी दूसरे चरण में इन दुकानों की नीलामी करने की तैयारी में हैं. इसके लिए विभाग के तमाम अधिकारी पुराने ठेकेदारों के साथ-साथ नए ठेकेदारों से संपर्क कर उन्हें नीलामी में भाग लेने के लिए मोटिवेट कर रहे हैं. चित्तौड़गढ़ जिले में कुल 226 दुकानें हैं, जिनमें से 152 का पहले चरण की नीलामी में बंदोबस्त हो गया. बाकी की 74 ठेकों की दूसरे और तीसरे चरण में नीलामी रखी गई है. इन बची हुई दुकानों में चित्तौड़गढ़ शहरी क्षेत्र की 14 और निंबाहेड़ा सर्किल के 12 ठेके शामिल है. इस प्रकार चित्तौड़गढ़ और निंबाहेड़ा के एक तिहाई ठेके फिर से नीलाम किए जा रहे हैं. ठेकेदारों के नीलामी प्रक्रिया में भाग नहीं लेने का प्रमुख कारण इन ठेकों की आरक्षित दर पहले के मुकाबले अधिक होना माना जा रहा है.
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इसके अलावा नीलामी में भाग लेने के लिए 50 हजार रुपये का शुल्क रखा गया है, जो कि नॉन रिफंडेबल है. ठेकेदारों का मानना है कि नीलामी में किसी अन्य के खुलने की स्थिति में उक्त राशि से भी हाथ धोने पड़ जाते हैं. वहीं विभागीय अधिकारियों का मानना है कि पुराने ठेकेदार आरक्षित दर कम करवाने का दबाव बनाना चाहते हैं. इसीलिए पुराने ठेकेदार सामने नहीं आ रहे हैं. जिला आबकारी अधिकारी रेखा माथुर के अनुसार हम ठेकेदारों से लगातार संपर्क कर रहे हैं. सरकार ने भी किसी भी कीमत पर ठेकों की आरक्षित दर कम किए जाने से इनकार कर दिया है. ऐसे में ठेकेदारों के सामने अन्य कोई विकल्प नहीं बचता. समय पर नीलामी प्रक्रिया में भाग लेकर वो ठेके हासिल कर सकते हैं.