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जर्जर हो रहा 100 वर्ष पुरानी कचहरी में चल रहा आयुर्वेदिक हॉस्पिटल - जर्जर हो रहा आयुर्वेदिक हॉस्पिटल

चित्तौड़गढ़ की 100 वर्ष पुरानी कचहरी में संचालित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सुविधाओं और उचित देखभाल के अभाव में जर्जर हो रहा है. चिकित्सालय में तैनात चिकित्सक और कर्मचारी अपने बलबूते पर इसे जैसे-तैसे संचालित करने की कोशिश कर रहे हैं. देखिए यह रिपोर्ट

चित्तौड़गढ़ आयुर्वेदिक हॉस्पिटल, Chittorgarh Ayurvedic Hospital
जर्जर हो रहा आयुर्वेदिक हॉस्पिटल
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Published : Oct 30, 2020, 8:28 PM IST

चित्तौड़गढ़. कोरोना संक्रमण के दौरान जहां एक ओर पूरी दुनिया उपचार के लिए विभिन्न पद्धतियों का मुंह ताक रही है. ऐसे में आयुर्वेदिक पद्धति और काढ़ा ही आमजन का साथी बनकर उभरा है. आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति भारत में नहीं ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी लोकप्रिय है, लेकिन सरकार और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते चित्तौड़गढ़ शहर में दुर्ग की तलहटी में पाडनपोल पर 100 वर्ष पुरानी कचहरी में संचालित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सुविधाओं और उचित देखभाल के अभाव में जर्जर हो रहा है.

जर्जर हो रहा आयुर्वेदिक हॉस्पिटल

चिकित्सालय में तैनात चिकित्सक और कर्मचारी अपने बलबूते पर इसे जैसे-तैसे संचालित करने की कोशिश कर रहे हैं. शहर में पाडनपोल स्थित आयुर्वेद चिकित्सालय में तैनात चिकित्सक डॉ. तरुण कुमार प्रमाणिक ने बताया कि करीब 10 साल पहले यहां मरम्मत का कार्य किया गया था, लेकिन घटिया निर्माण के कारण वह तुरंत ही टूटने फूटने लगा. शिकायत जिला कलेक्टर को भी की गई थी.

उन्होंने बताया कि वर्तमान में यहां चिकित्सा कर्मचारियों की कमी और संसाधनों का भारी अभाव है. चिकित्सा के लिए काम में आने वाले उपकरण भी काफी पुराने हो चुके हैं. यहां पर प्रतिदिन दर्जनों मरीज उपचार लेने पहुंचते हैं. अभी भी भरपूर प्रयास कर पंचकर्म, क्षार सूत्र विधियों से बीमारों का उपचार किया जा रहा है. आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में घुटनों का दर्द, लकवा, सर्वाइकल जैसी कई असाध्य बीमारियों का अचूक उपचार होता है.

उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए रोजाना काढ़ा बनाकर वितरित किया जाता है. वहीं सांवलियाजी चिकित्सालय के निंबाहेड़ा रोड स्थित कोविड-19 सेन्टर के मरीजों को भी यहीं से काढ़ा बनाकर भेजा जाता है. डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आयुष अभियान के माध्यम से चिकित्सालय की इमारत की मरम्मत करवाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए मांग पत्र भिजवाया है. इसी तरह सांवलियाजी चिकित्सालय परिसर में स्थित एक छत चिकित्सालय जहां आयुर्वेद यूनानी और होम्योपैथिक पद्धति के चिकित्सक उपचार कर रहे हैं.

पढ़ेंः दौसा: संस्कृत शिक्षा में शास्त्री से आचार्य में क्रमोन्नत हुआ महाविद्यालय

यह भवन भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त होकर कभी भी जनहानि का कारण बन सकती है. अधिकारियों को कई बार अवगत कराने के बाद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. गौरतलब है कि कोरोना महामारी से बचाव में आयुर्वेदिक काढ़ा रामबाण बन कर उभरा है. ऐसे में अति प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सालय की यह दुर्दशा प्रशासनिक कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान लगाती है. प्रशासन को तुरंत आयुर्वेद चिकित्सालय पर ध्यान देकर उनके सुधार हेतु सार्थक कदम उठाने चाहिए.

चित्तौड़गढ़. कोरोना संक्रमण के दौरान जहां एक ओर पूरी दुनिया उपचार के लिए विभिन्न पद्धतियों का मुंह ताक रही है. ऐसे में आयुर्वेदिक पद्धति और काढ़ा ही आमजन का साथी बनकर उभरा है. आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति भारत में नहीं ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी लोकप्रिय है, लेकिन सरकार और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के चलते चित्तौड़गढ़ शहर में दुर्ग की तलहटी में पाडनपोल पर 100 वर्ष पुरानी कचहरी में संचालित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सुविधाओं और उचित देखभाल के अभाव में जर्जर हो रहा है.

जर्जर हो रहा आयुर्वेदिक हॉस्पिटल

चिकित्सालय में तैनात चिकित्सक और कर्मचारी अपने बलबूते पर इसे जैसे-तैसे संचालित करने की कोशिश कर रहे हैं. शहर में पाडनपोल स्थित आयुर्वेद चिकित्सालय में तैनात चिकित्सक डॉ. तरुण कुमार प्रमाणिक ने बताया कि करीब 10 साल पहले यहां मरम्मत का कार्य किया गया था, लेकिन घटिया निर्माण के कारण वह तुरंत ही टूटने फूटने लगा. शिकायत जिला कलेक्टर को भी की गई थी.

उन्होंने बताया कि वर्तमान में यहां चिकित्सा कर्मचारियों की कमी और संसाधनों का भारी अभाव है. चिकित्सा के लिए काम में आने वाले उपकरण भी काफी पुराने हो चुके हैं. यहां पर प्रतिदिन दर्जनों मरीज उपचार लेने पहुंचते हैं. अभी भी भरपूर प्रयास कर पंचकर्म, क्षार सूत्र विधियों से बीमारों का उपचार किया जा रहा है. आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में घुटनों का दर्द, लकवा, सर्वाइकल जैसी कई असाध्य बीमारियों का अचूक उपचार होता है.

उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए रोजाना काढ़ा बनाकर वितरित किया जाता है. वहीं सांवलियाजी चिकित्सालय के निंबाहेड़ा रोड स्थित कोविड-19 सेन्टर के मरीजों को भी यहीं से काढ़ा बनाकर भेजा जाता है. डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आयुष अभियान के माध्यम से चिकित्सालय की इमारत की मरम्मत करवाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए मांग पत्र भिजवाया है. इसी तरह सांवलियाजी चिकित्सालय परिसर में स्थित एक छत चिकित्सालय जहां आयुर्वेद यूनानी और होम्योपैथिक पद्धति के चिकित्सक उपचार कर रहे हैं.

पढ़ेंः दौसा: संस्कृत शिक्षा में शास्त्री से आचार्य में क्रमोन्नत हुआ महाविद्यालय

यह भवन भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त होकर कभी भी जनहानि का कारण बन सकती है. अधिकारियों को कई बार अवगत कराने के बाद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. गौरतलब है कि कोरोना महामारी से बचाव में आयुर्वेदिक काढ़ा रामबाण बन कर उभरा है. ऐसे में अति प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सालय की यह दुर्दशा प्रशासनिक कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान लगाती है. प्रशासन को तुरंत आयुर्वेद चिकित्सालय पर ध्यान देकर उनके सुधार हेतु सार्थक कदम उठाने चाहिए.

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