कोटा. पिछले साढे 6 साल की ही बात की जाए तो 127 बच्चों ने मौत को चुन लिया है, क्योंकि वे पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे या उन पर तनाव था. अभी तक साल 2019 की बात करें तो 2 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया..वहीं 2018 में 19, 2017 में 15, 2016 में 18, 2015 में 30, 2014 में 26 और 2013 में 17 बच्चे अब तक खुदकुशी कर चुके हैं.
कोटा के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अग्रवाल का मानना है कि कोचिंग में भी परफॉरमेंस प्रेशर होता है, वह भी बच्चा नहीं झेल पाता है. पहले बच्चे को 7 दिन में कोई छुट्टी नहीं मिलती थी. इसका भी दबाव होता था. पढ़ाई का प्रेशर रहता है. टाइम कम मिलता है, बच्चा सो नहीं पाता है. इसलिए भी वह एंजाइटी में चला जाता है. कई बच्चे ऐसे होते हैं जो नेता या पायलट बनना चाहते हैं, लेकिन उनके मां-बाप उनका सब्जेक्ट सिलेक्शन ठीक से नहीं कर पाते हैं. पैरेंट्स उनको बिना एप्टिट्यूड व एटीट्यूड के यहां डॉक्टर व इंजीनियर बनने भेज देते हैं. जिससे वे प्रेशर में आ जाते हैं.
डॉ. एमएल अग्रवाल का कहना है कि घर से दूर रहने पर ही बच्चे को परेशानी होना शुरू हो जाती है. कई बार बच्चे के मां-बाप सेटल नहीं हो पाते हैं, वह बच्चे से संपर्क करते हैं, जिससे बच्चा डिस्टर्ब हो जाता है. कोचिंग में जो टेस्ट होते हैं, उनको लेकर भी बच्चे परेशान होते हैं. पहले तो वे अपने क्लास के टॉपर रहते हैं. जब यहां पर वह आते हैं तो उनका नंबर कम आते हैं. जिससे तनाव ग्रसित हो जाते हैं, सबसे बड़ी बात है कि कोटा में हिंदुस्तान के रैंकर्स के बीच कंपटीशन होता है. इसलिए बच्चे पीछे चले जाने पर पैरेंट्स और बच्चे दोनों तनाव में आ जाते हैं.
अब इस दाग को धोने के लिए पूरा कोटा शहर जुटा हुआ है. हर व्यक्ति अपने स्तर पर प्रयत्न कर रहा है. हर संस्था इस में जुटी है. जिन कोचिंग संस्थानों में बच्चे पढ़ने आते हैं. उन पर भी सरकार ने कुछ प्रतिबंधों पर हैं, प्रशासन रिव्यू कर रहा है. ताकि इस तरह की अशुभ घटना से कोटा दागदार ना हो.
कोटा के कोचिंग और हॉस्टल ने इजी एग्जिट पॉलिसी बनाई है. स्टूडेंट्स को दूसरे करियर ऑप्शन बताए जा रहे हैं. बच्चों पर नजर रखने के लिए साइकोलॉजिकल काउंसलर हर संस्थान ने लगाए हैं. वह बच्चों पर नजर बनाए हुए हैं. हॉस्टलों ने भी अपने स्तर पर कई प्रयास किए हैं. कोटा के एक मनोरोग विशेषज्ञ की पहल पर जिला प्रशासन के साथ मिलकर होप संस्था 24 घंटे का हेल्पलाइन संचालित कर रही है. जिसमें तनाव में आने पर बच्चे वहां फोन कर सकते हैं और उन्हें आत्महत्या जैसे कदम से बचाया जा रहा है.
मेडिकल कॉलेज में मनोरोग विभागाध्यक्ष डॉक्टर देवेंद्र विजयवर्गीय कोचिंग स्टूडेंट्स के सुसाइड प्रीवेंशन के लिए बनी कमेटी के तकनीकी एक्सपर्ट के रूप में सदस्य भी हैं. उनका कहना है कि सरकारी स्तर पर कोचिंग स्टूडेंट को तनाव से बचाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं. कोचिंग स्टूडेंट्स को तनाव से बचाने के लिए स्टूडेंट के अनुपात में हर कोचिंग संस्थान में काउंसलर की नियुक्ति की गई है. जो समय-समय पर मानसिक संबल उन्हें प्रदान करते हैं, कोई बच्चा उन्हें तनाव में मिलता है तो उसका अध्ययन कर उसके समस्या का निदान किया जाता है. कोचिंग संस्थानों में इजी एग्जिट पॉलिसी बनाई गई है, क्योंकि जो बच्चा छोड़कर जाना चाहता है और पैसा फीस के चक्कर में वह तनाव में आ जाता है. ऐसे में अब नियमानुसार एक पॉलिसी बना दी गई है कि बच्चे को रिफंड मिल जाता है. साथ ही बच्चों को एडमिशन के दौरान एप्टिट्यूड और एटीट्यूड टेस्ट भी लिया जाने लगा है. जिससे बच्चे की क्षमता का पता चल जाता है. वही स्टूडेंट्स और पैरेंट्स की भी काउंसलिंग सेशन होते हैं, ताकि उनके पैरंट्स को भी समझा दिया जाता है.
इन बच्चों को अन्य करियर ऑप्शंस के बारे में भी जानकारी और रिटन मैटेरियल उपलब्ध कराया जा रहा है. ताकि वह डॉक्टर और इंजीनियर बनने की जगह दूसरे या अपनी रुचि के सब्जेक्ट को भी समझ सके. काउंसलर की नियुक्ति के साथ उनको काउंसलर को ट्रेनिंग भी सरकारी स्तर पर करवाई गई है.
24 घंटे संचालित हो रहा कॉल सेंटर, 300 की जान बचाई
कोटा में जिला प्रशासन और होप संस्था की तरफ से 24 घंटे कॉल सेंटर संचालित हो रहा है. जिसके अंदर तनाव ग्रसित लोग कॉल करके अपनी समस्या और समाधान ले सकते हैं. यह पूरा कॉल सेंटर संचालित कोटा के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. एमएल अग्रवाल कर रहे है. करीब 10 साल से यह कॉल सेंटर संचालित हो रहा है और अब तक 7500 से ज्यादा बच्चों की काउंसलिंग इस सेंटर के जरिए हुई है, जिनमें से 300 बच्चे तो ऐसे थे. जिनकी काउंसलिंग समय से नहीं होती तो वह आज दुनिया में नहीं होते.
पंखों में लगवाई डिवाइस
अधिकांश बच्चों ने फांसी लगाकर ही अपनी ईहलीला समाप्त की है. ऐसे में कई हॉस्टल संचालकों ने अपने रूम में लगे पंखों पर डिवाइस लगा दी है, ताकि जैसे ही बच्चा फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या करने पर उतारू हो, वह डिवाइस अपना काम करती है और पंखा नीचे गिर जाता है.
पीआईएल दाखिल होने के बाद शुरू हुए प्रयास
कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री बढ़ने के साथ ही बच्चों के सुसाइड के मामले भी बढ़ने लगे. इस मामले में हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल हुई. इस पीआईएल के बाद राज्य सरकार और जिला प्रशासन सतर्क हुआ और सुसाइड प्रीवेंशन का कार्य गति पकड़ पाया. सबसे पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से सुसाइड के कारणों को खोजने के लिए एक रिपोर्ट तैयार हुई. इस रिपोर्ट पर ही काम करते हुए जिला प्रशासन ने प्रयास किए हैं.
दंश से मुक्ति में जुटे
हालांकि राज्य सरकार, जिला प्रशासन, कोचिंग संस्थानों, हॉस्टलों के प्रयास से बच्चों को तनाव से मुक्ति के प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी काफी प्रयासों की जरूरत है. क्योंकि बच्चों में तनाव बना हुआ है. जिसके चलते वे अभी भी आत्महत्या की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. कोटा को इस दंश से भी मुक्ति दिलाना है.