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50 डिग्री का पारा भी इनके आगे पस्त है...क्योंकि सवाल पेट का है...

चिलचिलाती धूप में जब लोग घरों से बाहर निकलने के लिए भी कई बार सोचते हैं. निकलते भी हैं तो खुद को पूरा कपड़ों से ढक कर. लेकिन ऐसे लोग भी हैं जिनका काम ही इस तेज तपती धूप में ही है. उनके हौसले और मजबूरियों के सामने मौसम भी पस्त हो जाता है.

50 डिग्री का पारा भी इनके आगे पस्त है
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Published : Jun 17, 2019, 8:12 PM IST

चूरू. प्रदेश का वह जिला है जहां इन दिनों सूर्य ने सबसे ज्यादा कहर ढहाया है. जिले में तापमान ने एक बार नहीं बल्कि कई बार अर्द्धशतक लगाए. सीधी बात करे तो यहां तापमान 50 डिग्री पार कई बार दर्ज किया जा चुका है. यहां भीषण गर्मी ने तांडव मचा रखा है लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है. जिसे तापमान कितना भी कम हो या ज्यादा उसे इसे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि यहां आसमान की आग से बड़ी आग है पेट की.

असल मायनो में बात करें तो दो वक्त की रोटी के सिवा इन्हें कुछ नहीं दिखाई पड़ता. और ना ही ये और कुछ महसूश करते हैं. एक और जहां धोरों की धरती आग उगल रही है. जहां कच्चा पापड़ भी कुछ मिनटों में सिक जाता है. उस आग उगलती धरती पर यह मजदूर वर्ग अपने बच्चों के जीवन मे रंग भरने के लिए दिनभर तपती दोपहरी में मेहनत मजदूरी करते हैं.

50 डिग्री का पारा भी इनके आगे पस्त है

ईटीवी भारत ने जब इन मजदूरों से बात की तो इन्होंने कहा गर्मी कितनी भी हो. मौसम कैसा भी हो. हमारे हौसलों के आगे ये सब बातें बहुत बौनी हैं. मजदूरों ने कहा हम हमारे लिए नही बल्कि घर पर बैठे बूढ़े माता-पिता, छोटे बच्चों के जीवन मे रंग भरने के लिए कर रहे हैं. मौसम को देखेंगे तो शाम को खायेंगे क्या.

आप और हम अगर इस भीषण गर्मी में एक छोटी सी कल्पना भी करें कि अगर सिर्फ दो मिनट लाइट भी चली जाए तो हम अपना आपा खो देते हैं. उसी भीषण गर्मी में ये मजदूर अपनो के सपनों के लिए खुले आसमान में बोझा उठाए होते हैं.

चूरू. प्रदेश का वह जिला है जहां इन दिनों सूर्य ने सबसे ज्यादा कहर ढहाया है. जिले में तापमान ने एक बार नहीं बल्कि कई बार अर्द्धशतक लगाए. सीधी बात करे तो यहां तापमान 50 डिग्री पार कई बार दर्ज किया जा चुका है. यहां भीषण गर्मी ने तांडव मचा रखा है लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है. जिसे तापमान कितना भी कम हो या ज्यादा उसे इसे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि यहां आसमान की आग से बड़ी आग है पेट की.

असल मायनो में बात करें तो दो वक्त की रोटी के सिवा इन्हें कुछ नहीं दिखाई पड़ता. और ना ही ये और कुछ महसूश करते हैं. एक और जहां धोरों की धरती आग उगल रही है. जहां कच्चा पापड़ भी कुछ मिनटों में सिक जाता है. उस आग उगलती धरती पर यह मजदूर वर्ग अपने बच्चों के जीवन मे रंग भरने के लिए दिनभर तपती दोपहरी में मेहनत मजदूरी करते हैं.

50 डिग्री का पारा भी इनके आगे पस्त है

ईटीवी भारत ने जब इन मजदूरों से बात की तो इन्होंने कहा गर्मी कितनी भी हो. मौसम कैसा भी हो. हमारे हौसलों के आगे ये सब बातें बहुत बौनी हैं. मजदूरों ने कहा हम हमारे लिए नही बल्कि घर पर बैठे बूढ़े माता-पिता, छोटे बच्चों के जीवन मे रंग भरने के लिए कर रहे हैं. मौसम को देखेंगे तो शाम को खायेंगे क्या.

आप और हम अगर इस भीषण गर्मी में एक छोटी सी कल्पना भी करें कि अगर सिर्फ दो मिनट लाइट भी चली जाए तो हम अपना आपा खो देते हैं. उसी भीषण गर्मी में ये मजदूर अपनो के सपनों के लिए खुले आसमान में बोझा उठाए होते हैं.

Intro:चूरू_क्या करे साहब मजबूरी है।पेट भरने के लिए मजदूरी तो करनी पड़ेगी,अगर मौसम को देखेगे तो घर पर शाम का चूल्हा भी शायद नही जलेगा, ये शब्द है।50 डिग्री तापमान में काम करने वाले एक मजदूर के

ईटीवी भारत पर बयां की मजदूरों ने अपने दिल की बात कैमरे के सामने इन मजदूरों ने बयां किया अपना दर्द।बता दे की जिस भीषण गर्मी के चलते चूरू रेड अलर्ट पर है।उस भीषण गर्मी में ये मजदूर सड़क किनारे तम्बू तानकर,आग उगलते कोयलों, और भट्टी की तरह तपते साधनों में बिना कूलर पंखे, और ऐसी के कैसे रह पाते हैं।तो जो इन मजदूरों ने कहा वह सुनिए।


Body:चूरू प्रदेश का वह जिला है जहाँ इन दिनों सूर्य ने सबसे ज्यादा कहर ढहाया है।जिले में तापमान ने एक बार नही बल्कि कई बार अर्द्धशतक लगाए।सीधी बात करे तो यहाँ तापमान 50 डिग्री पार कई बार दर्ज किया जा चुका है।यहाँ भीषण गर्मी ने तांडव मचा रखा है।लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है।जिसे तापमान कितना भी हो कम हो या ज्यादा उसे इससे कोई फर्क नही पड़ता क्योकि यहां आसमान की आग से बड़ी आग है पेट की आग असल मायनो में बात करे तो दो वक्क्त की रोटी के सिवा इन्हें कुछ नही दिखाई पड़ता। और ना ही ये और कुछ मह्सुश करते हैं।एक और जहां धोरो की धरती आग उगल रही है जहाँ कच्चा पापड़ भी कुछ मिंटो में सिक जाता है।उस आग उगलती धरती पर यह मजदूर वर्ग अपने बच्चों के जीवन मे रंग भरने के लिए दीनभर तपती दोपहरी में मेहनत मजदूरी करते होते हैं।


Conclusion:ईटीवी भारत ने जब इन मजदूरों से बात की तो इन्होंने कहा गर्मी कितनी भी हो मौसम कैसा भी हो हमारे हौसलों के आगे ये सब बातें बहुत बोनी है।मजदूरों ने कहा हम हमारे लिए नही बल्कि घर पर बैठे बूढ़े माता पिता, छोटे बच्चे उनके जीवन मे रंग भरने के लिए कर रहे हैं।मौसम को देखेंगे तो शाम को खायेंगे क्या

आप औऱ हम अगर इस भीषण गर्मी में एक छोटी सी कल्पना भी करे कि अगर सिर्फ दो मिनट लाइट भी चली जाए तो हम अपना आपा खो देते हैं।उसी भीषण गर्मी में ये मजदूर अपनो के सपनो के लिए खुले आसमान में बोझा उठाए होते हैं।



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