उदयपुर. नवरात्रों से 3 दिन पहले मेवाड़ के ईडाणा माता ने आज अलसुबह स्नान किया. जी हां, ईडाणा माता जी ने अग्नि स्नान कर भक्तों को अनोखे दर्शन दिए. बता दें कि ईडाणा माता राजस्थान का एकमात्र मन्दिर है जहां माताजी अग्नि स्नान करती है.
क्या है पूरी कहानी
ईडाणा माता को मेवल महाराणी भी कहते है. माना जाता है कि ईडाणा माताजी एक बरगद के पेड के नीचे प्रकट हुई थी. दरअसल, प्राचीन काल में एक संत उस क्षेत्र से निकल रहे थे. स्वंय माताजी ने एक कन्या के रूप में उन्हें दर्शन दिए और उनसे यहीं रहने का निवेदन किया. संत ने आराधना आरम्भ की तो कुछ ही दिनों में यहां चमत्कार पर चमत्कार होने लगे.
बता दें कि उसके बाद यहां पर लकवा वाले ठीकहोने लगे...तो वहीं निसन्तानों को संतान होने लगी.. दृष्टिहीन की दृष्टि आ गई. ऐसे कई चमत्काकार यहां हुए. जिसके बाद धीरे धीरे ईडाणा माता मंदिर का प्रचार प्रसार होने लगा और राजस्थान ही नही बल्कि गुजरात , महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश समेत देश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आने लगे.
माता क्यों करती हैं अग्नि स्नान
आपको बता दें कि अग्नि स्नान करने वाली मेवल महारानी का अग्नि स्नान भी बड़ा रोचक होता है. बताया जाता है कि माताजी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती हैं. जी हां, मंदिर महंत के अनुसार माताजी को चूंदड़ कपड़े आदी चढ़ावा चढाया जाता है. जैसे ही माताजी के ऊपर इनका भार हो जाता है स्वतः माताजी अग्नि का स्नान कर देती है और चढ़ावे के पहने कपड़े को जला देती है. इस पर समीप ही बरगद के पेड़ को चपेट में ले लेती हैं परन्तु माताजी कि मुरत पर कोई भी असर नहीं होता और स्नान के वक्त माताजी की मूर्ति सही सलामत रहती है.
खुले में विराजीत है मां की प्रतीमा
दूसरी तरफ माताजी के समीप अखण्ड ज्योत भी जलती है. उसे भी कोई असर नहीं होता है. पहले अग्नि स्नान के दर्शन हर रविवार को होते थे पर आजकल किसी किस्मत वाले को ही दर्शन होते हैं . इसकी झलक से सारी मनोकामनाएं पुरी हो जाती हैं. ऐसी मान्यता है माताजी कि प्रतीमा खुले में विराजीत है उनके उपर कोई छाया नहीं है. जबकी वहां पर धर्मशालाओं, आवासीय परिसर और ट्रस्ट भी हैं.
बता दें कि माताजी के दर्शन हेतु दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं , प्रत्येक रविवार को मेला लगता है. भक्त मनोकामनाए पूरी होने पर प्रसादी का आयोजन करते हैं. साथ ही चैत्री और शारदीय नवरात्र में नो दिनों तक हवन यग्य का कार्यक्रम होता है. अष्टमि और नवमी को देवी मां के दरबार में विशेष भीड़ रहती है.