केशवरायपाटन (बूंदी). केशवरायपाटन क्षेत्र के बराना में 30 साल बाद फिर से हाट की चहल-पहल शुरू हो गई. गांव के दशहरा मैदान में मंगलवार को हाट बाजार का शुभारंभ हुआ. हाट को दोबारा सुचारू करने के लिए गांव के युवा सरपंच संदीप जैन और ग्रामीणों का काफी योगदान रहा है. ग्रामीणों में खासकर युवाओं में इस पहल को लेकर काफी उत्साह रहा कि लंबे अंतराल के बाद घाट का बराना में साप्तहिक हाट बाजार शुरू हुआ.
समारोह के तहत हाट का शुभारंभ
ग्रामीणों के अनुसार बहुत सालों पहले गांव में हाट लगता था. जो जगह की कमी व अन्य सुविधाओं के अभाव मे बंद हो गया था. इस बार हाट की शुरूआत होने पर ग्रामीणों को घरेलू सामानों की खरीददारी में आसानी होगी. वहीं ग्रामीण अपनी जरूरत के सामान खरीद सकेंगे. गांव मे मंगलवार को एक समारोह के तहत हाट का शुभारंभ हुआ. जिसमें विधायक चंद्रकांता मेघवाल और केशवरायपाटन प्रधान प्रशांत मीणा बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए.
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30 साल बाद लौटी हाट की रौनक
घाट का बराना के ग्रामीण बताते है कि एक समय था, जब यहां लगने वाले हाट में दूर दराज के गांवो से लोग आते थे. वहीं चंबल पार के गांवों से भी ग्रामीण व व्यापारी नावों के सहारे हाट में पहुंचते थे. खासकर कपड़े व सोने चांदी के व्यापारी तो अकसर चंबल पार से ही आते थे. हाट में ग्रामीणों को जरूरत का सामान गांव में ही मिल जाता है. वहीं ग्रामीण अपने उत्पादों की बिक्री भी कर लेते है. जो आमदनी का एक जरिया बन जाता है. उस समय पर्याप्त सुविधाओं और जगह के अभाव के चलते हाट बाजार बंद हो गया. अब ग्रामीण खुश है कि वर्षो पुरानी हाट बाजार की परम्परा फिर से शुरू हो गई.
यहां अभी लगते है साप्ताहिक हाट
क्षेत्र में हाट बाजार की परम्परा नई नहीं है. वर्षो से यह सिलसिला चला आ रहा है. लाखेरी में हाट रविवार को लगता आ रहा है. वहीं कापरेन में सोमवार को हाट लगता है, खटकड में गुरूवार को, झालीजी का बराना व सुमेरगंजमंडी में शनिवार को, देई मे मंगलवार को और देहीखेडा, सौंप, गैडोली और बाबई में शुक्रवार को हाट बाजार लगता है. इनमें से लाखेरी, सुमेरगंजमंडी में तो हाट बाजार रजवाड़ों के जमाने से ही चला आ रहा है. हाट व्यवस्था को लेकर तत्कालीन रियासतों के शासक तथा बाद में अंग्रेजो ने भी इस व्यवस्था को बनाए रखने मे काफी प्रयास किया.
जरूरत के सामानों को खरीदा और बेचा जाता है
गांवों व कस्बों मे लगने वाले साप्तहिक हाट बाजार लोगों की जरूरत के सामानों की उपलब्धता के मुख्य स्रोत होते है. इन हाट बाजारों में खाद्यान्न से लेकर कपड़ा, बर्तन सहित वे तमाम सामान मिलते है. जिनकी लोगों को रोजमर्रा के दिनो में आवश्यकता पड़ती है. इनमें मसाले, सब्जी, फल, जूते-चप्पल, मिट्ट के बर्तन, मणियारी के सामान जो दैनिक रूप से काम आते है. यहीं नहीं हाट में कई सामानों की रिपेयर करने वाले सहजता से मिल जाते है. मसलन कैंची के धार लगाना, छतरियों व सिलाई मशीन की रिपेयर, तालों के चाबी लगावाना सहित अन्य काम जो अमूमन हाट बाजार में ही उपलब्ध होते है.
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आर्थिक रूप से आत्म निर्भरता का केंन्द्र है हाट
गांवों व कस्बो में लगने वाले हाट बाजार ग्रामीणों को आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. इन हाट बाजारों में जहां ग्रामीण खरीदारी करते है. वंही अपने उत्पादों की बिक्री भी करते है. जिससे वे अपनी आमदनी को मजबूत करने का प्रयास करते है. दरअसल, भारत कृषि प्रदान देश होने के चलते गांवों में लगने वाले हाट बाजार स्थानीय लोगों के लिए सामान खरीदने बेचने के साथ आर्थिक विपणन का काम करते है. यहीं नहीं सामाजिक रूप से भी हाट बाजार महत्त्वपूर्ण रूप से भागीदारी निभाते है. हाट बाजार को ग्रामीणों का एक मिलन स्थल माना जाता है. जहां वे अपने पारिवारिक संबंधों के साथ अन्य सामाजिक स्तर के मसलों का निष्पादन करते है.