बूंदी. देश में लगातार कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा है. ऐसे में कई ऐसी संस्थाएं हैं जो सोशल डिस्टेंसिंग पालन करने और मास्क पहनने सहित कोरोना से बचने के लिए तरह-तरह के जतन कर लोगों को प्रेरित कर रही हैं. इसी बीच बूंदी में जयपुर से आई एक फाउंडेशन, जिसने एक ऐसा इको टेबल तैयार किया है और जिसके माध्यम से सरकारी कर्मचारी उस टेबल का अपने ऑफिस वर्क के लिए उपयोग में ले रहे हैं.
फाउंडेशन ने नर्सरी की एक जगह पर पेड़ की छांव में इस इको टेबल को तैयार किया है. जहां पर पक्षियों के लिए परिंडे बनाए गए हैं. जुगाड़ से सेनेटाइजर मशीन बनाई है, जिसके सहारे बिना हाथ लगाए कर्मचारी अपने हाथ को वॉश कर सकते हैं. इसी तरह वास वेशन भी बनाया है, जिसे बिना हाथ लगाए ही कर्मचारी पैर के माध्यम से पानी चलाकर हाथ धो सकता है. इस इको टेबल को बूंदी के चतरगंज नर्सरी में तैयार किया गया है.
प्रदेश में पहली बार बूंदी में बनाई गई 'इको टेबल'...
प्रदेश के कई इलाकों में इस फाउंडेशन से जुड़े लोग घूम-घूमकर वहां के लोकल संसाधनों से जुगाड़कर उस चीज को उपयोग में लेने के लिए प्रेरित करते हैं. इसी बीच फाउंडेशन एक सप्ताह से बूंदी के चतरगंज इलाके की नर्सरी में कार्य कर रही है. फाउंडेशन ने राजस्थान में पहली बार इको टेबल बनाई है, जिसके पीछे संस्थान का मकसद है कि कर्मचारी इस टेबल के सहारे सोशल डिस्टेंसिंग पालन करें. इसके लिए इको टेबल के आसपास बड़े-बड़े सोशल डिस्टेंसिंग वाले खड्डे खोदे गए हैं, जिनमें कर्मचारी अपने पैर डालकर आसानी से इसी को टेबल के रूप में उपयोग कर सकते हैं.
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इको टेबल को ऐसी जगह पर बनाया गया है, जहां ठंडी हवा देने वाला पेड़ है और इसी के सहारे कर्मचारी अपना कार्य कर सकते हैं. बड़े-बड़े लकड़ी के मुंडे यहां बनाए गए हैं, ताकि कोई अधिकारी इस पर बैठकर कर्मचारियों को अपनी बात आसानी से बता सकता है. फाउंडेशन ने नर्सरी के प्रांगण में पक्षियों के लिए परिंडे भी जुगाड़ से बनाए हैं, ताकि कोई पक्षी यहां आकर आसानी से पानी पी सके. प्रवेश द्वार पर संस्था ने सेनेटाइजर मशीन और हाथ धोने के लिए जुगाड़ बनाया है, ताकि कोई भी कर्मचारी बिना हाथ लगाए इस मशीन का उपयोग कर सके.
'चतरगंज' नर्सरी में कर्मचारियों ने शुरू किया 'इको टेबल' पर अपना कार्य...
कर्मचारी रोज सुबह इसी को टेबल वाली जगह पर पहुंचते हैं अपने हाथों को सेनेटाइजर करने के बाद एक-एक कर सोशल डिस्टेंसिंग वाले पार्ट में बैठकर अपने अधिकारी का इंतजार करते हैं. अधिकारी जैसे ही पहुंचते हैं तो वे लोग अपने विभागीय कार्य को करना शुरू कर देते हैं. साथ में उन्हें भी भय नहीं है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग का नियम तोड़ रहे हैं.
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पेड़ की छांव में उन्हें वातावरण भी अच्छा मिल रहा है, कुछ कर्मचारी तो ऐसे हैं जो अपना कंप्यूटर भी इसी इको टेबल पर लगाकर काम करने में जुटे हुए हैं. सुबह से लेकर शाम तक वन विभाग के कर्मचारी अपने नियमित काम इसी इको टेबल में कर रहे हैं. हिंडोली के क्षेत्रीय वन अधिकारी विष्णु गुप्ता ने बताया कि भारत संस्थान की ओर से इस इको टेबल को बनाया गया है, इससे सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो रहा है. साथ में मीटिंग भी हम आसानी से कर रहे हैं और पेड़ की छांव के साथ हम वातावरण भी हमें शुद्ध मिल रहा है.
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संस्थान का मकसद- ग्रामीण इलाकों के संसाधनों को उपयोग में लेना और कबाड़ से जुगाड़ करना...
यूं तो राजस्थान के कई जिलों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है और संसाधनों की कमी नहीं है. समय-समय पर यह भी खबरें सामने आती है कि जुगाड़ से कई लोगों ने अच्छी-अच्छी चीजें बना दी. इसी बीच जयपुर की संस्था ने ऐसी प्रतिभाओं को खंगालने के लिए राजस्थान भर का दौरा किया जाता है और जो ग्रामीण इलाकों के संसाधन मिलते हैं. उन्हें उपयोग में लेने का काम इस संस्था द्वारा किया जाता है. बड़े स्तर पर उन चीजों का उपयोग कर कई ग्रामीण इलाकों के लोगों को यह संस्था रोजगार भी दिला चुकी है.
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संस्था का कहना है कि कई बार देखने में आता है कि जो चीज सामने होती है, वह लोगों को लगती है कि उसका उपयोग नहीं होगा. लेकिन अगर सोच लिया जाए कि इस चीज का उपयोग करना है तो निश्चित रूप से वह चीज कामगार साबित होती है. यही हमारा संस्था का लक्ष्य है और इसी के तहत ग्रामीण इलाकों की प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और उनके सीमित संसाधनों को आसमित संसाधन बनाने का मौका दे रहे हैं.
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उसी के प्रयास में हमने एक इको टेबल तैयार की है, जिसके माध्यम से हमने कई लोगों को जोड़ा है और उनकी चीजों का उपयोग में लिया है. उन्हें इसी को टेबल की माध्यम से रोजगार देने की कोशिश की है. इससे प्रेरित होकर कई सरकारी कार्यालय और अन्य निजी क्षेत्र के कार्यालय इस टेबल को अगर बनाएंगे तो यहां के इलाके के लोगों को उस के माध्यम से रोजगार मिल जाएगा. हमने इस कार्य को जुगाड़ फैक्ट्री नाम दिया है.
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संस्था ने हर कर्मचारियों को सेनेटाइजर और मास्क भी उपलब्ध करवाया है. यकीनन ये संस्था द्वारा सीमित संसाधनों से एक अच्छा साधन बनाकर वन विभाग को दिया गया है. जरूरत है कि हर विभाग इसी तरह प्लानिंग करके अपने तौर-तरीकों से कोरोना वायरस से मुक्ति पा सकता है. साथ ही ग्रामीण प्रतिभा भी निकलकर सामने आएंगी और कबाड़ से जुगाड़ हो जाएगा.