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MOTHERS DAY: वृद्धाश्रम में अपनों की राह तकती रही ये बूढ़ी मां... - special story of etv bharat

बच्चों की याद तो बहुत आती है. कभी-कभी मिलने के लिए बच्चे आ भी जाते हैं. मन तो उदास ही रहता है. बेटी कभी-कभी मिलने आती है और बेटा तो दूर से ही फोन पर हाल-चाल जान लेता है. मदर्स-डे पर एक मां एक मां के मुंह से निकले ये शब्द किसी तीर की तरह चुभते हुए से प्रतीत होते हैं. आखिर इस मां ये बातें क्यूं कही, क्यों इतनी बेबस और लाचार है ये मां. पढ़ें पूरी खबर...

मदर्स डे, वृद्धाश्रमों में बढ़ रही बुजुर्गो की संख्या, mothers of old age homes, special story of etv bharat, mothers day special story
बूंदी के वृद्धाश्रम में रह रही कई मां
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Published : May 10, 2020, 8:45 PM IST

बूंदी. आज मदर्स डे है यानी कि मां का दिन. घर पर आज हम अपनी सोशल साइट पर मां का आशीर्वाद लेते हुए, उनकी आरती उतारते हुए फोटो लेकर उसे अपलोड कर रहे हैं. लेकिन असलियत तो ये है कि न जाने कितने बेटे-बेटियां अपनी मां को वृद्धाश्रमों को छोड़कर चले जाते हैं और फिर कभी पलटकर उनकी सुध नहीं लेते. कुछ ऐसा ही हाल बूंदी के इस वृद्धाश्रम का भी है. यहां कुछ मां आज भी अपने घरवालों की याद में मायूस है और उनकी आंखें अपने बेटे-बहू और पोते-पोतियों की राह तक रही है.

बूंदी के वृद्धाश्रम में रह रही कई मां

वृद्धाश्रम में रह रही इन मां की आंखों को जरा गौर से देखिए. अपनों का इंतजार करती हुए अब यह थक चुकी हैं. बूढ़ी हो चुकी हैं. कोई मां यहां राम का नाम लेकर माला जपती हुई नजर आती है, तो कोई किसी कोने में बैठी हुई.

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आंखों में आंसू लिए अपना दर्द बयां करती ये वृद्धा

यह भी पढे़ं- मदर्स डे स्पेशल: मां बन 'दक्षा' इन बच्चों के जीवन में घोल रही मिठास, खिलखिला रहा बचपन

इनका कहना है कि अपनों के बिना कौन रहता है साहब. अपनों की याद तो हर पल आती है. लेकिन मजबूरी ऐसी की बेटा-बहू आते हैं और मिलकर चले जाते हैं. अब इस वृद्धाश्रम में ही हमारी पूरी देखरेख होती है. राम का नाम लेकर बस अपने जीवन के बचे-कुचे दिन काट रहे हैं.

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राम भरोसे 'मां'

वहीं एक मां ने ईटीवी भारत से कहा कि अब यह सुदाम सेवा संसथान का वृद्धा आश्रम ही मेरा परिवार है और इसे ही हम हमारा घर भी मान चुके हैं. बूंदी शहर के नजदीक नैनवां रोड इलाके में वृद्ध आश्रय स्थल है. जहां पर 12 से अधिक बुजुर्ग महिलाएं रह रही हैं.

यह भी पढ़ें- मदर्स डे स्पेशल: वात्सल्य की छांव में बह रही ज्ञान की 'गंगा', मां निभा रही दोहरा फर्ज

सभी महिलाएं जिले के अलग-अलग गांव की हैं. महिलाओं का कहना है कि हमें भी अपनों की याद आती है. लेकिन क्या करें? आज मदर्स-डे पर पूजा कौन करता है. साहब कलयुग है. जिस मां ने अपने आंचल में पाला और बड़ा किया. उसी बेटे ने यहां लाकर छोड़ दिया है.

जिंदगी भर की खुशी अंतिम दौर में एक वृद्ध आश्रम के सहारे ठीक कर रह जाएगी. यह किसी भी मां ने नहीं सोचा होगा. आज मदर्स डे है. लोग बड़े उत्साह के साथ मना रहे हैं. लेकिन बूंदी के इन वृद्धाश्रम की तस्वीरें मदर्स-डे पर उन बेटे-बेटियों के मुंह पर तमाचा है. जिस जननी ने उन्हें जन्म दिया है उसी की लाठी नहीं बन पाए.

बूंदी. आज मदर्स डे है यानी कि मां का दिन. घर पर आज हम अपनी सोशल साइट पर मां का आशीर्वाद लेते हुए, उनकी आरती उतारते हुए फोटो लेकर उसे अपलोड कर रहे हैं. लेकिन असलियत तो ये है कि न जाने कितने बेटे-बेटियां अपनी मां को वृद्धाश्रमों को छोड़कर चले जाते हैं और फिर कभी पलटकर उनकी सुध नहीं लेते. कुछ ऐसा ही हाल बूंदी के इस वृद्धाश्रम का भी है. यहां कुछ मां आज भी अपने घरवालों की याद में मायूस है और उनकी आंखें अपने बेटे-बहू और पोते-पोतियों की राह तक रही है.

बूंदी के वृद्धाश्रम में रह रही कई मां

वृद्धाश्रम में रह रही इन मां की आंखों को जरा गौर से देखिए. अपनों का इंतजार करती हुए अब यह थक चुकी हैं. बूढ़ी हो चुकी हैं. कोई मां यहां राम का नाम लेकर माला जपती हुई नजर आती है, तो कोई किसी कोने में बैठी हुई.

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आंखों में आंसू लिए अपना दर्द बयां करती ये वृद्धा

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इनका कहना है कि अपनों के बिना कौन रहता है साहब. अपनों की याद तो हर पल आती है. लेकिन मजबूरी ऐसी की बेटा-बहू आते हैं और मिलकर चले जाते हैं. अब इस वृद्धाश्रम में ही हमारी पूरी देखरेख होती है. राम का नाम लेकर बस अपने जीवन के बचे-कुचे दिन काट रहे हैं.

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राम भरोसे 'मां'

वहीं एक मां ने ईटीवी भारत से कहा कि अब यह सुदाम सेवा संसथान का वृद्धा आश्रम ही मेरा परिवार है और इसे ही हम हमारा घर भी मान चुके हैं. बूंदी शहर के नजदीक नैनवां रोड इलाके में वृद्ध आश्रय स्थल है. जहां पर 12 से अधिक बुजुर्ग महिलाएं रह रही हैं.

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सभी महिलाएं जिले के अलग-अलग गांव की हैं. महिलाओं का कहना है कि हमें भी अपनों की याद आती है. लेकिन क्या करें? आज मदर्स-डे पर पूजा कौन करता है. साहब कलयुग है. जिस मां ने अपने आंचल में पाला और बड़ा किया. उसी बेटे ने यहां लाकर छोड़ दिया है.

जिंदगी भर की खुशी अंतिम दौर में एक वृद्ध आश्रम के सहारे ठीक कर रह जाएगी. यह किसी भी मां ने नहीं सोचा होगा. आज मदर्स डे है. लोग बड़े उत्साह के साथ मना रहे हैं. लेकिन बूंदी के इन वृद्धाश्रम की तस्वीरें मदर्स-डे पर उन बेटे-बेटियों के मुंह पर तमाचा है. जिस जननी ने उन्हें जन्म दिया है उसी की लाठी नहीं बन पाए.

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