बूंदी. एक मई को विश्व मजदूर दिवस होता है, लेकिन बूंदी जिले में यह देखने को मिला की मजदूरों के लिए इस दिन के कुछ खास मायने नहीं है. उन्हें तो हर रोज की तरह आज भी दो जून की रोटी की चिंता दिखाई दी.
शहर के पास मजदूरी कर रहे एक श्रमिक ने बताया कि आज जो भी हो, उससे उसे दो जून की रोटी तो मिल ही जाती है. इसलिए काम पर आना था और आ गए, अब आप बता रहे हो कि आज मजदूर दिवस है, हमें तो उसके होने से कुछ विशेष लग नहीं रहा है.अधिकतर मजदूरों को मजबूर होकर काम की तलाश में गांव छोड़ना पड़ता है. मनरेगा में पहले तो काम के बाद भुगतान में परेशानी होती है. इसके साथ ही गांव में किसी बड़े निर्माण में शिकायत होने से काम बंद हो जाता है. इससे मजदूरों को काम नहीं मिल पाता है. कई पंचायतों में मशीनों से काम हो रहा है. कारीगर मजदुर की बात की जाये तो रोज के कारीगर को 500 रोजाना मिला करते थे लेकिन आज वह भी नहीं मिल रहे है.
कारीगर मजदुर की बात की जाये तो बूंदी में कारीगर मजदूरों की संख्या काफी है. ऐसे में सभी के पास काम के लाले पड़े हुए है क्योंकि कोर्ट की रोक के बाद से बजरी बंद है. बजरी नहीं आने से इन मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है .अधिकतर जगहों पर ठेकेदार द्वारा मिलीभगत करके बजरी तो मंगवाई जा रही है. लेकिन इन मजदूरों को वहां काम नहीं मिल पा रहा है. जिससे इनके घरों में खाने के लाले पड़े हुए है. मजदूर उनके बच्चों की पढ़ाई तक का खर्चा उठा नहीं पा रहे है.
मजदूरों का कहना है की बजरी की रोक के बाद से हमने हमारे घर का सुख नहीं देखा और मजदुर दिवस पर सरकार से यही कहेंगे की वो हमारी सुन ले और बजरी वापस से शुरू करवा दे. जीससे हमे मजदूरी फिर से मिल जाये. उनका कहना है की हमारे पास केवल 4 माह ही रहते है साल भर में अभी बारिश आने के बाद हमे कोई काम नहीं मिलेगा तो हम कैसे परिवार का पोषण करेंगे.
बूंदी श्रम विभाग की बात की जाये तो बूंदी जिले में 33 हजार श्रमिक पंजीकृत है. इन में से केवल 4700 श्रमिकों को सरकारी योजना का लाभ मिल रहा है. ऐसे में बाकी मजदुर केवल नाम के ही सरकारी योजना का लाभ उठा रहे है. जबकि श्रम विभाग को चाहिए की इन 33 हजार श्रमिकों को लाभ मिले ताकि बजरी एवं अन्य कारणों से मजदूरी नहीं मिलने पर वह अपने परिवार का भरण पोषण ठीक से कर सके.