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स्पेशल रिपोर्टः बूंदी में भाईदूज पर बैलों को पिलाई जाती है मदिरा, फेंके जाते हैं एक-दूसरे पर पटाखे

बूंदी में दिवाली के दूसरे दिन यानी भाईदूज पर अनोखी पंरपरा पिछले 400 सालों से निभाई जा रही है. कस्बे में बाबा घास भैरू की भव्य सवारी निकाली जाती है. फिर इसी बीच बैलों को मदिरा पिलाकर एक-दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू होती है. जिसमें लोगों में अपने बैलों को लेकर होड़ रहती है.

बूंदी भाईदूज न्यूज , Bundi BHAIDUJ news
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Published : Oct 30, 2019, 5:29 AM IST

बूंदी. जिले में दिवाली के दूसरे दिन यानी भाईदूज पर अनोखी पंरपरा पिछले 400 सालों से निभाई जा रही है. कस्बे में बाबा घास भैरू की भव्य सवारी निकाली जाती है. फिर इसी बीच बैलों को मदिरा पिलाकर एक-दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू होती है. जिसमें लोगों में अपने बैलों को लेकर होड़ रहती है.

बूंदी में भाईदूज पर बैलों को पिलाई जाती है मदिरा

बता दें कि इस परंपरा में पटाखों के शोर से जमकर बैलों का भीड़ को तितर बितर करना, लोगों का गिरना, पड़ना हर पल रोमांच पैदा करता रहा. आज भी इस प्राचीन संस्कृति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छते, चबूतरियां महिलाओं सहित लोगों की भीड़ से अटी रहती है. दरअसल, भाई दूज के दिन सुबह 5 बजे गांव में लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. जहां भारी भीड़ सुबह से ही इकटठी होना शुरू हो जाती है.

पढ़ें- भाई दूज पर बहनों ने जेल में बंद भाइयों के लगाया तिलक, बांधा रक्षा सूत्र

सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार गांव के सभी समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी एवं ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं. उन्हें स्नान करवाया जाता है तथा मदिरा का भोग लगाया जाता है. पर्व के विशेष गीतों द्वारा उनका आदर सत्कार किया जाता है, तब जाकर प्रसन्न होते हैं. उनके प्रसन्न होने पर ही बैल की जोड़ी उन्हें खिंच पाती है अन्यथा नहीं.

वहीं, उसके बाद कुछ युवक भी पूजा के साथ शराब के नशे में धुत हो जाते हैं. फिर पटाखा मार दिवाली महोत्सव शुरू होता है. बैलों को नशे में धुत करने के बाद ग्रामीण छतों से पटाखे फेंकते हैं. जिसे बैल डर कर रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भगता है, तो नशे में धुत युवक उन पर चढ़कर रोकने के प्रयास करते हैं.

पढे़ं- गोवर्धन पूजा: चित्तौड़गढ़ के कपासन-मेवाड़ में प्रख्यात कृष्ण धाम सांवलिया जी के मंदिर में हुई पूजा-अर्चना

सवारी को देखने के लिए कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, नैनवां, करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी सख्या में लोग सवारी देखने पहुंचते हैं. बाबा घास भैरु टोंक जिले के घास गांव से आए हैं जो अपनी विलक्षण यात्रा के लिए प्रसिद्ध हैं. प्राचीन समय में इन्हें घसीटकर सवारी निकाली जाती थी बाबा घास की एक गोल पत्थर की प्रतिमा है जिसका वजन करीब 5 क्विंटल है.

ग्रामीणों की भीड़ का यह आलम होता है कि कई लोग बैलों की रस्सीओं में उलझकर पैरों तले गिर जाते हैं. लेकिन, ग्रामीणों का कहना है कि आज किसी बैल या व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ. ये घास भैरू का चमत्कार है. वहीं, किसानों की मान्यता है कि बाबा घास की जुड़ी के नीचे बैल को और छोटे बच्चों को निकालना 12 महीने सुरक्षित रहने का आशीर्वाद प्राप्त होना माना गया है. यकीनन राजस्थान में त्योहारों पर अनोखी परम्परा आज भी जारी है. जहां रीति-रिवाज के साथ ग्रामीण परम्पराओं के जिन्दा रखे हुए हैं.

बूंदी. जिले में दिवाली के दूसरे दिन यानी भाईदूज पर अनोखी पंरपरा पिछले 400 सालों से निभाई जा रही है. कस्बे में बाबा घास भैरू की भव्य सवारी निकाली जाती है. फिर इसी बीच बैलों को मदिरा पिलाकर एक-दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू होती है. जिसमें लोगों में अपने बैलों को लेकर होड़ रहती है.

बूंदी में भाईदूज पर बैलों को पिलाई जाती है मदिरा

बता दें कि इस परंपरा में पटाखों के शोर से जमकर बैलों का भीड़ को तितर बितर करना, लोगों का गिरना, पड़ना हर पल रोमांच पैदा करता रहा. आज भी इस प्राचीन संस्कृति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छते, चबूतरियां महिलाओं सहित लोगों की भीड़ से अटी रहती है. दरअसल, भाई दूज के दिन सुबह 5 बजे गांव में लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. जहां भारी भीड़ सुबह से ही इकटठी होना शुरू हो जाती है.

पढ़ें- भाई दूज पर बहनों ने जेल में बंद भाइयों के लगाया तिलक, बांधा रक्षा सूत्र

सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार गांव के सभी समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी एवं ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं. उन्हें स्नान करवाया जाता है तथा मदिरा का भोग लगाया जाता है. पर्व के विशेष गीतों द्वारा उनका आदर सत्कार किया जाता है, तब जाकर प्रसन्न होते हैं. उनके प्रसन्न होने पर ही बैल की जोड़ी उन्हें खिंच पाती है अन्यथा नहीं.

वहीं, उसके बाद कुछ युवक भी पूजा के साथ शराब के नशे में धुत हो जाते हैं. फिर पटाखा मार दिवाली महोत्सव शुरू होता है. बैलों को नशे में धुत करने के बाद ग्रामीण छतों से पटाखे फेंकते हैं. जिसे बैल डर कर रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भगता है, तो नशे में धुत युवक उन पर चढ़कर रोकने के प्रयास करते हैं.

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सवारी को देखने के लिए कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, नैनवां, करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी सख्या में लोग सवारी देखने पहुंचते हैं. बाबा घास भैरु टोंक जिले के घास गांव से आए हैं जो अपनी विलक्षण यात्रा के लिए प्रसिद्ध हैं. प्राचीन समय में इन्हें घसीटकर सवारी निकाली जाती थी बाबा घास की एक गोल पत्थर की प्रतिमा है जिसका वजन करीब 5 क्विंटल है.

ग्रामीणों की भीड़ का यह आलम होता है कि कई लोग बैलों की रस्सीओं में उलझकर पैरों तले गिर जाते हैं. लेकिन, ग्रामीणों का कहना है कि आज किसी बैल या व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ. ये घास भैरू का चमत्कार है. वहीं, किसानों की मान्यता है कि बाबा घास की जुड़ी के नीचे बैल को और छोटे बच्चों को निकालना 12 महीने सुरक्षित रहने का आशीर्वाद प्राप्त होना माना गया है. यकीनन राजस्थान में त्योहारों पर अनोखी परम्परा आज भी जारी है. जहां रीति-रिवाज के साथ ग्रामीण परम्पराओं के जिन्दा रखे हुए हैं.

Intro:बूंदी जिले में दिपावली पर्व की धुम है। दिपोत्सव पर्व को सभी बडे हर्षोल्लास के साथ मना रहे है आज देई कस्बे मे भाई दोज पर कस्बे मे बाबा घास भैरू की भव्य सवारी निकाली गई .यहां बेलो को मदिरा पिलाई फिर एक दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू हुई ... इस बीच लोगो मे अपने बैलो को जोतने के लिए होड लगी रही , पटाखो के शोर से चमकर बैलो का भीड को तितर बितर करना। लोगो का गिरना पडना हर पल रोमाँच पेदा करता रहा।Body:राजस्थान में दिवाली पर्व की धूम है यहां हर दिन दिवाली के खास होते है फिर बात भाईदूज की होतो कहना ही कुछ होगा। यहां एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालो से निभाई जा रही है। यहां बेलो को मदिरा पिलाई फिर एक दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू होती है जिसमे लोगो मे अपने बैलो को जोतने के लिए होड लगाते है। पटाखो के शोर से चमकर बैलो का भीड को तितर बितर करना। लोगो का गिरना पडना हर पल रोमाँच पेदा करता रहा। आज भी इस प्राचीन संस्कृति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छते,चबूतरियां महिलाओ सहित लोगो की भीड से अटी रही। कई जगहो पर घास भैरू मचले जिनको मदिरा का भोग लगाकर मनाया गया। इस बीच बेल टूटने से घास भैरू रूके। कई लोग सवारी के दोरान चोटिल हो गए। हम बात कर रहे है बूंदी के पटाखा मार दिवाली की जहां बेलो को मदिरा पिलाने के बाद एक दूसरे पर पटाखे फेंके जाते है और यह परम्परा शुरू हो जाती है। सुबह 5 बजे गावं में लोगो की भीड़ जुटना शुरू हो जाती है जहां भारी भीड़ सुबह से आ जाती है यहां बेल के रूप में घास भेरू को लाया जाता है फिर यहां उस बेल को सजाया जाता है और भगवान् घास भेरू की पूजा करने के बाद बेलो को मदिरा पिलाई जाती है ओर बेलो को नशे में धुत किया जाता है उसके बाद कुछ युवक भी पूजा के साथ शराब के नशे में धुत हो जाते है फिर पटाखा मार दिवाली महोत्सव शुरू होता है। ग्रामीण बेलो को नशे में धूत करने के बाद छतो से पटाखे फेकते है जिसे बेल चमक जाता है और वह रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भगता है तो नशे में धुत युवक उन पर चढ़कर रोकने के प्रयास करता है फिर पटाखा फोड़ा जाता है और बेल आक्रमण करने पर मजबूर होता है और भीड़ को कुचलता है जिससे कभी युवक नीचे कभी ऊपर दिखाई देता है। इस खेल में कई युवक एवं बुजुर्ग घायल भी जाते है या तक की बेल उन युवको एवं बुजुगो को जमींन पर घसीटते भी ले जाता है। इस खेल को करने के लिए एक या दो युवक नहीं होते हजारो की संख्या में लोग होते है जो बेलो के झुण्ड एवं पटाखों को फोड़ते है। यह सुबह से महोत्सव शुरू होता है जो शाम तक इस देई गावं में चलता है। देई गावं की गलियों में भीड़ रहती है तो छतो पर भी लोग रहते है। छत वाले लोग बेलो पर पटाखे फेंकते है और युवक एक दूसरे पर। सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार ग्राम के सभी समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी एवं ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं । उन्हें स्नान करवाया जाता है तथा मदिरा का भोग लगाया जाता है पर्व के विशेष गीतों द्वारा उनका आदर सत्कार किया जाता है तब जाकर प्रसन्न होते हैं उनके प्रसन्न होने पर ही बेल की जोड़ी उन्हें खिंच पाती है अंयथा नहीं देई ही नही आसपास के गांवो के किसान अपने बेलो बाबा घास के जोतने को लाते है बेलो को जोतने की होड़ का अद्भुत दृश्य देखने लायक होता है। बेल अपनी बारी के लिए जबरदस्ती करते है । ग्रामीणों की भीड़ का ये आलम होता है कई लोग बेलो की रस्सीओ में उलझकर पेरो तले गिर जाते है उनके ऊपर कई बेल व्यक्ति आदि निकलने से वह बेहोस तक हो जाते हैं साथ ही दीवाली के त्योहार के कारण सभी लोग मनोरंजन स्वरूप भांति भांति के पटाखे चलाते हैं जिनसे बेल डरकर भागते हैं। जिससे बहुत से लोग व बेल भी जल जाते हैं बाबा घास भेरु का चमत्कार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति या जानवरों की आज दिन तक मौत नहीं हुई है दवा के नाम पर बाबा घास भेरु को दारू की बोतल चढ़ाना , कामी तेल चढ़ाना एवं अगर लगाना काफी होता है किसानो की मान्यता है कि बाबा घास की जुडी के नीचे बेल को व छोटे बच्चों को निकालना 12 महीने सुरक्षित रहने का आशीर्वाद प्राप्त होना माना गया है ।

Conclusion:सवारी को देखने के लिए कोटा,बून्दी,टोंक,सवाईमाधोपुर,नैनवां,करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रो से बडी सख्या मे लोग सवारी देखने पहुँचे। बाबा घास भेरु यहा टोंक जिले के घास गांव से आए हैं जो अपनी विलक्षण यात्रा के लिए प्रसिद्ध है । प्राचीन समय में इन्हें घसीटकर सवारी निकाली जाती थी बाबा घास की एक गोल पत्थर की प्रतिमा है जिसका वजन करीब 5 किवंटल है उन्हें तीन बराबर की लकड़ियों का सिंघाड़ा बनाकर आसन दिया जाता है जिसके लोहे की सांकल कुंडली में बांधी जाती है तथा बेल जोतकर बाबा की सवारी हर साल दीपावली कार्तिक शुक्लपक्ष की पड़वा को रात्रि बेल पूजन के पश्चात प्रारंभ होती है।

यकीनन राजस्थान में त्योहारो पर अनोखी परम्परा आज भी जारी है जहां रीतिरिवाज के साथ ग्रामीण परम्पराओं के जिन्दा रखे हुए है यही नहीं युवाओं का बड़ा टोला भी इसमें शामिल होता है।

बाईट - रामबिलास ,ग्रामीण
बाईट - कन्हैया लाल , ग्रामीण

नैनवा से गणेश शर्मा बूंदी से सलीम अली की रिपोर्ट 
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