बूंदी. जिले में दिवाली के दूसरे दिन यानी भाईदूज पर अनोखी पंरपरा पिछले 400 सालों से निभाई जा रही है. कस्बे में बाबा घास भैरू की भव्य सवारी निकाली जाती है. फिर इसी बीच बैलों को मदिरा पिलाकर एक-दूसरे पर पटाखे चलाने की परम्परा शुरू होती है. जिसमें लोगों में अपने बैलों को लेकर होड़ रहती है.
बता दें कि इस परंपरा में पटाखों के शोर से जमकर बैलों का भीड़ को तितर बितर करना, लोगों का गिरना, पड़ना हर पल रोमांच पैदा करता रहा. आज भी इस प्राचीन संस्कृति को देखने के लिए सवारी मार्ग की छते, चबूतरियां महिलाओं सहित लोगों की भीड़ से अटी रहती है. दरअसल, भाई दूज के दिन सुबह 5 बजे गांव में लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. जहां भारी भीड़ सुबह से ही इकटठी होना शुरू हो जाती है.
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सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार गांव के सभी समाज अपने बैलों की पूजा के बाद बाबा घास भैरू के स्थल पर पहुंचते हैं और उन्हें अपने अभूतपूर्व चमत्कारी एवं ग्रामवासियों की मनोकामना पूर्ति करने वाली यात्रा के लिए तैयार करते हैं. उन्हें स्नान करवाया जाता है तथा मदिरा का भोग लगाया जाता है. पर्व के विशेष गीतों द्वारा उनका आदर सत्कार किया जाता है, तब जाकर प्रसन्न होते हैं. उनके प्रसन्न होने पर ही बैल की जोड़ी उन्हें खिंच पाती है अन्यथा नहीं.
वहीं, उसके बाद कुछ युवक भी पूजा के साथ शराब के नशे में धुत हो जाते हैं. फिर पटाखा मार दिवाली महोत्सव शुरू होता है. बैलों को नशे में धुत करने के बाद ग्रामीण छतों से पटाखे फेंकते हैं. जिसे बैल डर कर रास्ते पर भीड़ को कुचलते हुए भगता है, तो नशे में धुत युवक उन पर चढ़कर रोकने के प्रयास करते हैं.
सवारी को देखने के लिए कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, नैनवां, करवर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी सख्या में लोग सवारी देखने पहुंचते हैं. बाबा घास भैरु टोंक जिले के घास गांव से आए हैं जो अपनी विलक्षण यात्रा के लिए प्रसिद्ध हैं. प्राचीन समय में इन्हें घसीटकर सवारी निकाली जाती थी बाबा घास की एक गोल पत्थर की प्रतिमा है जिसका वजन करीब 5 क्विंटल है.
ग्रामीणों की भीड़ का यह आलम होता है कि कई लोग बैलों की रस्सीओं में उलझकर पैरों तले गिर जाते हैं. लेकिन, ग्रामीणों का कहना है कि आज किसी बैल या व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ. ये घास भैरू का चमत्कार है. वहीं, किसानों की मान्यता है कि बाबा घास की जुड़ी के नीचे बैल को और छोटे बच्चों को निकालना 12 महीने सुरक्षित रहने का आशीर्वाद प्राप्त होना माना गया है. यकीनन राजस्थान में त्योहारों पर अनोखी परम्परा आज भी जारी है. जहां रीति-रिवाज के साथ ग्रामीण परम्पराओं के जिन्दा रखे हुए हैं.