केशवरायपाटन (बूंदी). जिले के कापरेन थाना क्षेत्र के रोटेदा से होकर निकल रही चंबल नदी में बजरी का अवैध खनन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. ये चम्बल की धरा को खोखला कर रहा है. गौरतलब है कि चम्बल नदी को चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य का दर्जा देकर इसमें खनन पर पूर्णतया प्रतिबंध है. निगरानी के लिए चम्बल घड़ियाल की चौकियां स्थापित कर उनमें केटल गार्ड, वनपाल और सहायक वनपालों की नियुक्तियां भी की गई है. संरक्षित क्षेत्र में वन विभाग व पुलिस की चौकी स्थापित होने के बावजूद अवैध खनन होने से 'दूध की रखवाली बिल्ली के जिम्मे छोड़ने' वाली कहावत यहां चरितार्थ हो रही है.
चंबल नदी के तटीय क्षेत्रोंं को तत्कालीन सरकार ने साल 1996 में चम्बल घड़ियाल अभ्यारण का दर्जा देकर वन्य व जलीय जीवों की रक्षार्थ छोड़ दिया था. लेकिन, प्रशासनिक उदासीनता, अधिकारियों और भू-माफिया की मिलीभगत से चंबल से काली बजरी का दोहन कर 3000 से 3500 रुपये की दर पर बेचा जा रहा है. अवैध धंधे में जुटे माफिया घड़ियाल क्षेत्र से हर दिन दर्जनों-ट्रैक्टर-ट्रॉली बजरी खनन करके चोरी छिपे कई जगह बजरी की सप्लाई कर रहे हैं.
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पुलिस और घड़ियाल कर्मचारियों की नियमित गस्त के बावजूद बजरी की कालाबाजारी रूक नहीं रही है. बजरी खनन व निर्गमन पर न्यायालय की रोक के बावजूद धड़ल्ले से अवैध बजरी खनन कर निर्गमन किया जा रहा है. शाम ढलते ही रोटेदा-कापरेन स्टेट हाइवे-37 ए पर बजरी से भरे दर्जनों ओवरलोड ट्रैक्टर-ट्रॉली सरपट दौड़ते नजर आते हैं. शुक्रवार रात को भी करीब एक दर्जन से अधिक बजरी से भरे ट्रैक्टर-ट्रॉली एक साथ तेज रफ्तार से निकले.
बताया जा रहा है कि स्थानीय पुलिस और चम्बल घड़ियाल प्रशासन की मिलीभगत के चलते सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद बजरी का कापरेन सहित समूचे इलाके में पहुंचने का सिलसिला जारी हैं. माना जा रहा है कि मिलीभगत के कारण ही खनन माफिया में पुलिस व घड़ियाल विभाग का कोई खौफ नहीं है. बजरी खनन माफिया के अवैध बजरी खनन का कारोबार लगातार जारी है. अवैध खनन वालों ने अपनी गहरी जड़े जमा ली हैं.
ये है राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य
भारत में वन्य जीवों को देखने के लिए कई जगहें हैं, लेकिन भारतीय घड़ियालों को निहारने के लिए राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य प्रसिद्ध है. चंबल नदी पर बने इस अभयारण्य की सीमाएं तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से होकर गुजरती हैं. राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य मुख्य रूप से घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है. यहां घड़ियालों के अलावा डॉल्फिन, मगरमच्छ, ऊदबिलाव, कछुए जैसे जलीय जंतु पाए जाते हैं. चंबल नदी के मुहाने अपनी तरफ पक्षियों को भी आकर्षित करते हैं. इन पक्षियों में इंडियन स्कीमर, रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड, सारस, गिद्ध आदि शामिल हैं. यहां पाए जाने वाले कई पशु और पक्षी तो बेहद दुर्लभ माने जाते हैं, जैसे स्मूद कोटेड ऑटर, घड़ियाल, सॉफ्ट शैल टरटल . राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का इतिहास राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की स्थापना 1979 में हुई थी. चंबल नदी पर बसे इस अभयारण्य की सीमाएं 400 किलोमीटर से अधिक की हैं. सवाई माधोपुर जिले में चंबल नदी के किनारे का एक किलोमीटर का क्षेत्र राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य के तहत आता है. कई लोगों का कहना है कि चंबल नदी में इस अभयारण्य के बसने की मुख्य वजह इस नदी का शापित और अपवित्र होना है. प्राचीन समय में चंबल को चरमन्यावती के नाम से जाना जाता था. इस नदी की उत्पत्ति राजा रंतीदेव द्वारा हजारों गायों की बलि चढ़ाने पर निकले खून से हुई थी. इस अपवित्र नदी से आम जनता दूर ही रही और यही कारण है कि यह भारत की सबसे कम प्रदूषित नदियों में से एक है.
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दुर्लभ जलचरों और पक्षियों को संजोती है चंबल
ये नदी मुख्यतः घड़ियालों के लिए जानी जाती है, लेकिन इसमें अन्य कई प्रकार के जीव-जंतु और जलचर भी पाए जाते हैं. यहां 96 प्रजातियों के जलीय और तटीय पौधे मिलते हैं. जीव-जंतुओं में मुख्यतः घड़ियालों के अलावा गंगा नदी की डॉल्फिन (मंडरायल से धौलपुर तक), मगरमच्छ, स्मूद कोटेड ऑटर (ऊदबिलाव), कछुओं की छह प्रजातियां और पक्षियों की 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं. विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षी भी चंबल के एवियन फाउना को बढ़ाते हैं. कुछ दुर्लभ प्रजाति के पक्षी भी यहाँ पाए जाते हैं. इनमें इंडियन स्कीमर, ब्लैक बिल्ड टर्न, रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड, फैरुजिनस पोचार्ड, बार-हैडेड गूज, सारस क्रेन, ग्रेट थिक नी, इंडियन कोरसर, पालास फिश इगल, पैलिड हैरियर, ग्रेटर फ्लैमिंगो, लैसर फ्लैमिंगो, डारटर्स और ब्राउन हॉक आउल शामिल हैं. स्मूद कोटेड ऑटर, घड़ियाल, सॉफ्ट शैल टरटल और इंडियन टेन्ट टरटल तो दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों में शामिल हैं. चंबल के तटों से लगे जंगलों में भालू, तेंदुए और भेड़िए भी नजर आ जाते हैं. नदी अभ्यारण्य के आसपास स्थित ऊँची चट्टानें लुप्त होते जा रहे गिद्धों के प्रजनन के लिए मुफीद साबित होती हैं. यहां के पानी में कभी-कभार दुर्लभ महाशिर मछली भी दिख जाती है. यह अभ्यारण्य भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 के तहत संरक्षित है. इसका प्रशासनिक अधिकार तीनों राज्यों के वन विभागों के अधीन है.