ETV Bharat / state

बूंदी के शोरगरों के मिट्टी से बने अनारों की आज भी है मांग, लेकिन इस कारण धंधे से दूरी बना रहे लोग

दिवाली का त्यौहार आते ही बूंदी के अनारों की मांग बढ़ (Demand for Bundi Anar increased) जाती है. तेजी से अनारों के निर्माण का काम शुरू होता है, लेकिन इस बार बूंदी में अनार बनाने वालों में कोई खास उत्सुकता नहीं दिख रही है. आलम यह है कि इस धंधे से जुड़े ज्यादातर लोग इससे दूरी बना रहे हैं. जिसकी असल वजह यह है कि इस धंधे से जुड़े लोगों को मेहनत के अनुरुप मेहनताना नहीं मिल पा रहा है.

Heavy demand for Bundi crackers
बूंदी के बने अनारों की मांग
author img

By

Published : Oct 19, 2022, 8:06 PM IST

Updated : Oct 19, 2022, 9:52 PM IST

बूंदी. रोशनी के त्योहार दिवाली पर देश में करोड़ों के पटाखे जलाए जाते हैं. पटाखों का क्रेज (Bundi Crackers Increase Craze) हर उम्र के लोगों में देखने को मिलता है. ज्यादा शोर वाले पटाखे जहां बड़ी उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तो वहीं, बच्चों को फुलझड़ियां और रोशनी वाले पटाखे खासा पसंद आते हैं. लेकिन राजस्थान के बूंदी के शोरगरों के मिट्टी के अनार काफी प्रसिद्ध है. यह अनार अपने आप में अलग और खास होता है, क्योंकि यह मिट्टी के खोल से बनकर तैयार होते हैं. जिसकी रोशनी देखते बनती है. यही कारण है कि इन अनारों की मांग केवल बूंदी ही नहीं, बल्कि राजस्थान समेत आसपास के राज्यों में भी सालों से बनी हुई है. वहीं, बूंदी के अनार आधे से लेकर एक मिनट तक आसमान को रोशन करने के साथ ही साइज के अनुसार ऊंचाई को कवर करते हैं.

मेहनत के मुताबिक नहीं मिलता मेहनताना: बूंदी में अनार बनाने का उद्योग बरसों पुराना (firecracker industry in Bundi) है. यहां राज परिवार के समय से ही तोपों के लिए बारूद और गोला बनाने का काम हुआ करता था. तभी से कई शोरगर परिवार यहां टोंक और अन्य जगहों से आकर बस गए थे और तभी से बूंदी में पटाखों का निर्माण बदस्तूर जारी है. हालांकि, इस उद्योग में लगे अब ज्यादातर लोग इससे दूरी बना रहे हैं, क्योंकि काम में मार्जिन कम होने के साथ ही फॉर्मेलिटी अधिक है. मौजूदा आलम यह है कि अब केवल दो परिवार ही इस काम में लगा है. जिनका कहना है कि बूंदी की परंपरा और शान को बरकरार रखने के लिए वो इसे नहीं छोड़ रहे हैं.

बूंदी के बने अनारों की मांग

इसे भी पढ़ें - स्पेशल रिपोर्ट: आतिशबाजी के दीवानों के लिए बूंदी में बने इस मिट्टी के 'अनार' का बढ़ रहा क्रेज

कई जिलों में इसका क्रेज, जितनी डिमांड उतना नहीं कर पाते हैं सप्लाईः इनका क्रेज इतना है कि बूंदी से अनार खरीदने उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, जयपुर, अजमेर, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, कोटा व झालावाड़ सहित इंदौर व उज्जैन से कई लोग आते हैं. जमील भाई का कहना है कि बारिश के सीजन के बाद ही वे इन्हें बनाना शुरू करते हैं. बारिश के दिनों में बनाना असंभव होता है. जितना माल दिवाली के 15 दिन पहले तक तैयार होता है, वह पूरा 10 दिनों में बिक जाता है. शेष के 5 दिनों में माल लगभग खत्म हो जाता है. उसके बाद भी बनने का क्रम जारी होता है. जितने दिन भर में बनते हैं, उतने अगले दिन बिक जाते हैं. उन्हें सूखने में भी एक से डेढ़ दिन लगता है.

Heavy demand for Bundi crackers
बूंदी के बने अनारों की मांग

सरकार की मदद मिले तो बन सकता है बड़ा उद्योगः बूंदी के शोरगर खलील का कहना है कि इस उद्योग से हमारा गुजारा नहीं चल रहा है. यह एक अच्छा उद्योग जरूर है, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते यह उद्योग सफल नहीं हो पा रहा है. अगर सरकार हमें अच्छी जगह पर जमीन उपलब्ध करा दें, तो हम इसको बड़े स्तर पर कर सकते हैं और यह काफी फायदेमंद भी रह सकता है. क्योंकि उसमें काम काफी ज्यादा होता है, सभी काम मजदूरों पर निर्भर है. बूंदी की शान अनार है और हमारे पुरखों का यह काम था, इसलिए कर रहे हैं. सरकार इस धंधे को प्रोत्साहन देकर बड़ा उद्योग बना सकती है. क्योंकि पटाखों का करोड़ों का कारोबार देश भर में है.

पढ़ेंः Special : राजधानी जयपुर में ग्रीन आतिशबाजी की आड़ में बिक रहा पुराना स्टॉक..ईटीवी भारत ने की पड़ताल

टोंक से आते हैं मिट्टी के खाली खोलः बूंदी के अनार के लिए टोंक से मिट्टी के खाली खोल को अलग-अलग साइज में खरीद कर लाया जाता है. जिसके बाद इनको भरने के लिए बारूद तैयार किया जाता है. जिसमें केमिकल शौरा, कोयला, सल्फर, बीड, लोहे व एल्युमिनियम का बुरादा, मैग्नीशियम, खाने का सोडा, रंग व चूना डाला जाता है. इसको पहले कूटा जाता है, फिर घट्टी या मशीन में डालकर पीसकर बारीक किया जाता है. बाद में इसे मिट्टी के खाली खोलों में भरकर पैक किया जाता है. शोरगरों का कहना है कि यह कच्चा माल 40 फ़ीसदी महंगा हो गया है. अनार, घनगरज, ढईया और सबसे बड़ा ज्वालामुखी होता है.

Heavy demand for Bundi crackers
बूंदी में तैयार अनार.

बूंदी से खरीद कई व्यापारी अपना लेबल लगाकर बेच रहेः अनार के 15 से लेकर 400 रुपए तक दाम होते हैं. पहले 3 रुपए से लेकर 100 तक में सभी तरह के अनार मिल जाते थे. इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई पटाखा व्यापारी बूंदी से खरीद कर लेकर जाते हैं और अपना लेबल लगाकर बेच रहे हैं. हालांकि बूंदी के इन अनार पर कोई ब्रांड भी नहीं है. अधिकांश लोग इन्हें खरीदने बूंदी भी नहीं आते हैं. ऐसे में यहां से ज्यादा दाम पर इन अनार को व्यापारी बेच रहे हैं. जितनी इनकी डिमांड है, वह मार्केट में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. क्योंकि ये लिमिटेड ही बन पाते हैं. पहले यह अनार काफी सस्ता था और कच्चा माल भी सस्ते में उपलब्ध था. शोरगर जमील का कहना है कि पहले जहां पर मिट्टी का खाली खोल कुछ पैसों में आ जाया करता था. इसके बाद में ये एक और दो रुपए के हो गए. जबकि वर्तमान में छोटा वाला 4 रुपए और बड़ा वाला अनार 20 से 25 रुपए में मिल रहा है. हालांकि इन्हें लाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा हमें ही करना पड़ता है. लाने ले जाने में भी 5 प्रतिशत माल टूट जाता है.

पढ़ेंः पटाखा व्यापारियों के विरोध के बाद प्रशासन बैकफुट पर, अस्थाई दुकानें संचालित करने पर दी सहमति

सीजन के बाद दूसरे काम करने को मजबूरः खलील का कहना है कि वह इस धंधे से केवल अपना घर परिवार ही चला पा रहे हैं. मार्जिन बिल्कुल भी नहीं है. इस व्यापार के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि माल को तैयार रखना पड़ता है. लाखों का माल तैयार करने के लिए पहले पैसा लगाना पड़ता है और फिर दिवाली के आसपास ही इसकी बिक्री होती है. इससे आमदनी होती है, लेकिन पहले माल तैयार रखने के लिए लाखों की रुपए की आवश्यकता होती है. यह उनके पास उपलब्ध नहीं है. ऐसे में मजदूरों को रोज भुगतान भी करना पड़ता है. मजदूरी भी लाखों में हो जाती है. उन्होंने बताया कि इस वजह से परिवार के लोग ही इस धंधे में जुटे हुए हैं. खलील ने बताया कि उनके भाई और अन्य लोगों ने यह धंधा ही छोड़ दिया है. हमारे सामने भी सीजन के बाद दूसरे काम करने की मजबूरी है.

लाइसेंस प्रथा के चलते अफसरशाही हावीः शोरगरों का कहना है कि इस धंधे में अफसरशाही काफी हावी है. क्योंकि इसके लिए लाइसेंस की व्यवस्था है. साथ ही विस्फोटक सामग्री होने के चलते अग्निशमन यंत्रों और अन्य व्यवस्थाएं भी जुटानी पड़ती हैं. यह कारखाना शहर से दूर एकांत में होना चाहिए, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं करने के लिए भी लाखों रुपए का खर्चा करना पड़ता है. इसी कारण अफसरशाही इस धंधे पर हावी हैं, जाने अनजाने में उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है.

बूंदी. रोशनी के त्योहार दिवाली पर देश में करोड़ों के पटाखे जलाए जाते हैं. पटाखों का क्रेज (Bundi Crackers Increase Craze) हर उम्र के लोगों में देखने को मिलता है. ज्यादा शोर वाले पटाखे जहां बड़ी उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तो वहीं, बच्चों को फुलझड़ियां और रोशनी वाले पटाखे खासा पसंद आते हैं. लेकिन राजस्थान के बूंदी के शोरगरों के मिट्टी के अनार काफी प्रसिद्ध है. यह अनार अपने आप में अलग और खास होता है, क्योंकि यह मिट्टी के खोल से बनकर तैयार होते हैं. जिसकी रोशनी देखते बनती है. यही कारण है कि इन अनारों की मांग केवल बूंदी ही नहीं, बल्कि राजस्थान समेत आसपास के राज्यों में भी सालों से बनी हुई है. वहीं, बूंदी के अनार आधे से लेकर एक मिनट तक आसमान को रोशन करने के साथ ही साइज के अनुसार ऊंचाई को कवर करते हैं.

मेहनत के मुताबिक नहीं मिलता मेहनताना: बूंदी में अनार बनाने का उद्योग बरसों पुराना (firecracker industry in Bundi) है. यहां राज परिवार के समय से ही तोपों के लिए बारूद और गोला बनाने का काम हुआ करता था. तभी से कई शोरगर परिवार यहां टोंक और अन्य जगहों से आकर बस गए थे और तभी से बूंदी में पटाखों का निर्माण बदस्तूर जारी है. हालांकि, इस उद्योग में लगे अब ज्यादातर लोग इससे दूरी बना रहे हैं, क्योंकि काम में मार्जिन कम होने के साथ ही फॉर्मेलिटी अधिक है. मौजूदा आलम यह है कि अब केवल दो परिवार ही इस काम में लगा है. जिनका कहना है कि बूंदी की परंपरा और शान को बरकरार रखने के लिए वो इसे नहीं छोड़ रहे हैं.

बूंदी के बने अनारों की मांग

इसे भी पढ़ें - स्पेशल रिपोर्ट: आतिशबाजी के दीवानों के लिए बूंदी में बने इस मिट्टी के 'अनार' का बढ़ रहा क्रेज

कई जिलों में इसका क्रेज, जितनी डिमांड उतना नहीं कर पाते हैं सप्लाईः इनका क्रेज इतना है कि बूंदी से अनार खरीदने उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, जयपुर, अजमेर, सवाई माधोपुर, टोंक, बारां, कोटा व झालावाड़ सहित इंदौर व उज्जैन से कई लोग आते हैं. जमील भाई का कहना है कि बारिश के सीजन के बाद ही वे इन्हें बनाना शुरू करते हैं. बारिश के दिनों में बनाना असंभव होता है. जितना माल दिवाली के 15 दिन पहले तक तैयार होता है, वह पूरा 10 दिनों में बिक जाता है. शेष के 5 दिनों में माल लगभग खत्म हो जाता है. उसके बाद भी बनने का क्रम जारी होता है. जितने दिन भर में बनते हैं, उतने अगले दिन बिक जाते हैं. उन्हें सूखने में भी एक से डेढ़ दिन लगता है.

Heavy demand for Bundi crackers
बूंदी के बने अनारों की मांग

सरकार की मदद मिले तो बन सकता है बड़ा उद्योगः बूंदी के शोरगर खलील का कहना है कि इस उद्योग से हमारा गुजारा नहीं चल रहा है. यह एक अच्छा उद्योग जरूर है, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते यह उद्योग सफल नहीं हो पा रहा है. अगर सरकार हमें अच्छी जगह पर जमीन उपलब्ध करा दें, तो हम इसको बड़े स्तर पर कर सकते हैं और यह काफी फायदेमंद भी रह सकता है. क्योंकि उसमें काम काफी ज्यादा होता है, सभी काम मजदूरों पर निर्भर है. बूंदी की शान अनार है और हमारे पुरखों का यह काम था, इसलिए कर रहे हैं. सरकार इस धंधे को प्रोत्साहन देकर बड़ा उद्योग बना सकती है. क्योंकि पटाखों का करोड़ों का कारोबार देश भर में है.

पढ़ेंः Special : राजधानी जयपुर में ग्रीन आतिशबाजी की आड़ में बिक रहा पुराना स्टॉक..ईटीवी भारत ने की पड़ताल

टोंक से आते हैं मिट्टी के खाली खोलः बूंदी के अनार के लिए टोंक से मिट्टी के खाली खोल को अलग-अलग साइज में खरीद कर लाया जाता है. जिसके बाद इनको भरने के लिए बारूद तैयार किया जाता है. जिसमें केमिकल शौरा, कोयला, सल्फर, बीड, लोहे व एल्युमिनियम का बुरादा, मैग्नीशियम, खाने का सोडा, रंग व चूना डाला जाता है. इसको पहले कूटा जाता है, फिर घट्टी या मशीन में डालकर पीसकर बारीक किया जाता है. बाद में इसे मिट्टी के खाली खोलों में भरकर पैक किया जाता है. शोरगरों का कहना है कि यह कच्चा माल 40 फ़ीसदी महंगा हो गया है. अनार, घनगरज, ढईया और सबसे बड़ा ज्वालामुखी होता है.

Heavy demand for Bundi crackers
बूंदी में तैयार अनार.

बूंदी से खरीद कई व्यापारी अपना लेबल लगाकर बेच रहेः अनार के 15 से लेकर 400 रुपए तक दाम होते हैं. पहले 3 रुपए से लेकर 100 तक में सभी तरह के अनार मिल जाते थे. इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई पटाखा व्यापारी बूंदी से खरीद कर लेकर जाते हैं और अपना लेबल लगाकर बेच रहे हैं. हालांकि बूंदी के इन अनार पर कोई ब्रांड भी नहीं है. अधिकांश लोग इन्हें खरीदने बूंदी भी नहीं आते हैं. ऐसे में यहां से ज्यादा दाम पर इन अनार को व्यापारी बेच रहे हैं. जितनी इनकी डिमांड है, वह मार्केट में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. क्योंकि ये लिमिटेड ही बन पाते हैं. पहले यह अनार काफी सस्ता था और कच्चा माल भी सस्ते में उपलब्ध था. शोरगर जमील का कहना है कि पहले जहां पर मिट्टी का खाली खोल कुछ पैसों में आ जाया करता था. इसके बाद में ये एक और दो रुपए के हो गए. जबकि वर्तमान में छोटा वाला 4 रुपए और बड़ा वाला अनार 20 से 25 रुपए में मिल रहा है. हालांकि इन्हें लाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा हमें ही करना पड़ता है. लाने ले जाने में भी 5 प्रतिशत माल टूट जाता है.

पढ़ेंः पटाखा व्यापारियों के विरोध के बाद प्रशासन बैकफुट पर, अस्थाई दुकानें संचालित करने पर दी सहमति

सीजन के बाद दूसरे काम करने को मजबूरः खलील का कहना है कि वह इस धंधे से केवल अपना घर परिवार ही चला पा रहे हैं. मार्जिन बिल्कुल भी नहीं है. इस व्यापार के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि माल को तैयार रखना पड़ता है. लाखों का माल तैयार करने के लिए पहले पैसा लगाना पड़ता है और फिर दिवाली के आसपास ही इसकी बिक्री होती है. इससे आमदनी होती है, लेकिन पहले माल तैयार रखने के लिए लाखों की रुपए की आवश्यकता होती है. यह उनके पास उपलब्ध नहीं है. ऐसे में मजदूरों को रोज भुगतान भी करना पड़ता है. मजदूरी भी लाखों में हो जाती है. उन्होंने बताया कि इस वजह से परिवार के लोग ही इस धंधे में जुटे हुए हैं. खलील ने बताया कि उनके भाई और अन्य लोगों ने यह धंधा ही छोड़ दिया है. हमारे सामने भी सीजन के बाद दूसरे काम करने की मजबूरी है.

लाइसेंस प्रथा के चलते अफसरशाही हावीः शोरगरों का कहना है कि इस धंधे में अफसरशाही काफी हावी है. क्योंकि इसके लिए लाइसेंस की व्यवस्था है. साथ ही विस्फोटक सामग्री होने के चलते अग्निशमन यंत्रों और अन्य व्यवस्थाएं भी जुटानी पड़ती हैं. यह कारखाना शहर से दूर एकांत में होना चाहिए, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं करने के लिए भी लाखों रुपए का खर्चा करना पड़ता है. इसी कारण अफसरशाही इस धंधे पर हावी हैं, जाने अनजाने में उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है.

Last Updated : Oct 19, 2022, 9:52 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.