बूंदी. प्रदेश के मुखिया अशोक गहलोत कई बार सार्वजनिक मंच से राजस्थान में चल रही घूंघट प्रथा को खत्म करने का जिक्र कर चुके है. लेकिन, अभी भी महिलाएं घूंघट में रहती दिखाई दे रही है. हालांकि खुद महिलाएं भी इस छोड़ने की बात करती दिखाई देती है. लेकिन, ग्रामीण परिवेश होने के चलते इस परंपरा बताने से भी नहीं हिचकती. ऐसा ही नजारा बूंदी में उस वक्त देखने को मिला. जब पंचायती राज चुनाव के तहत सोमवार को तीसरे चरण के नामांकन के दौरान तालेड़ा पंचायत में नामांकन दाखिल हो रहे थे. हालांकि यहां महिला उम्मीदवारों का कहना है कि जीतने के बाद अपना घूंघट हटा कर समाज में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ काम करेंगी.
नामांकन भरने घूंघट में आई महिला प्रत्याशी
राजस्थान के पंचायती राज चुनाव चल रहे हैं और तीन चरणों में राजस्थान में पंचायती राज चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में बूंदी में भी दूसरे चरण के चुनाव 22 जनवरी को हिंडौली - नैनवां पंचायत समितियों के 75 ग्राम पंचायतों में चुनाव होने जा रहे हैं. वहीं तीसरे चरण में बूंदी की तालेड़ा पंचायत के चुनाव होंगे. जिसको लेकर सोमवार 20 जनवरी को नामांकन प्रक्रिया करवाई जा रही थी.
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घूंघट में भरा पर्चा, हस्ताक्षर भी घूंघट में किए
इस नामांकन प्रक्रिया के दौरान अधिकतर जगहों पर महिलाएं सीट होने के चलते महिलाओं का दबदबा है और महिलाएं अपने महिलाएं मित्रों के साथ झुंड के रूप में नामांकन दाखिल करने पहुंच रही है. सबसे बड़ी खास बात यह है कि गांव के बुजुर्ग इन महिलाओं के साथ खड़े होकर नामांकन दाखिल करवा रहे हैं और घूंघट में महिलाएं नामांकन दाखिल कर रही है. घूंघट में ही बात करना और घूंघट में ही पर्चा भरना, घूंघट से नामांकन प्रक्रिया के दौरान हस्ताक्षर करना और बड़े बुजुर्गों का सम्मान में घूंघट रखना जैसी तस्वीरें सामने आई.
बता दें कि बूंदी की तालेड़ा पंचायत समितियों के 63 ग्राम पंचायतों की 40 ग्राम पंचायत ऐसी है. जहां पर महिलाएं सरपंच चुनी जानी है और यह आरक्षित सीटें हैं. इतनी बड़ी तादाद में महिलाओं की सीटें हैं तो महिलाओं का दबदबा देखने जाना जायज है.
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जीते तो हटा देंगे घूंघट
वहीं जब ईटीवी भारत ने महिला प्रत्याशियों से बात कि तो उहोंने बताया कि गांव के विकास को लेकर हम ध्यान देंगे, मूलभूत सुविधाओं को लेकर हम ग्रामीण इलाकों को लेकर चलेंगे. वहीं घूंघट प्रथा को लेकर इन महिला प्रत्याशियों ने कहा कि हम बड़े बुजुर्गों के सम्मान में यह घूंघट लगाते हैं और घूंघट सही अपना नामांकन दाखिल करने के लिए आए हैं और घूंघट में ही अपना प्रचार और मतदान करेंगे. जब घूंघट उठाने की बात आई तो महिला प्रत्याशियों ने कहा कि हम हमारा प्रचार और नामांकन भरने घूंघट से जरूर आएं, लेकिन अगर हम सरपंच बन जाते हैं तो इस घूंघट को त्याग देंगे और समाज में एक नया चेहरा बनकर हाथ से हाथ मिला कर काम करेंगे.
महिला सरपंच को लेकर ग्रामीणों ने कही बड़ी बात
उधर, पंचायत के ग्रामीणों का महिलाओं को लेकर यह कहना है कि महिलाएं ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए काफी अच्छी होती है और महिलाओं की किसी से दुश्मनी और किसी से बैर नहीं होता. जिसके चलते महिलाएं सबको समान रूप से देखकर कार्य करती है और गांव का विकास करवाती है. यहीं कारण रहा कि अधिकतर जगहों पर महिलाएं जब-जब सरपंच बनीं तो शांति पूर्वक कार्यकाल रहा और अच्छे विकास कार्य हुए.
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घूंघट हमारे समाज में पिछड़ेपन का प्रतीक
वहीं घूंघट प्रथा का विरोध कर समाज में कार्य कर रही चंदा शर्मा का कहना है कि आधुनिक समय में इस प्रकार की चुनौतियों और परंपराएं कहीं ना कहीं हमारे समाज में पिछड़ेपन का प्रतीक है और इस कुप्रथा को हटाने के लिए सभी अपने अपने परिवार से इसकी शुरुआत कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि महिलाएं समाज में आज हाथ से हाथ बढ़ाकर कार्य कर रही हैं. महिलाएं कहीं पर भी पीछे नहीं है और जब जब भी महिलाओं को समाज में उनको जगह मिली है. महिलाओं ने समाज के सिर को ऊंचा ही किया है. आपको बता दें कि पहले चरण में चुनाव हुए थे तो केशोरायपाटन इलाके से 25 महिलाएं सरपंच व 24 महिलाएं उपसरपंच बनी थी.