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SPECIAL: लॉकडाउन की वजह से वापस लौट रही भारतीय संस्कृति, साहित्यकार अपने बच्चों दे रहे शास्त्रीय संगीत की शिक्षा - lockdown in rajasthan

लॉकडाउन में बैठे-बैठे बूंदी के ये साहित्यकार अपने बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखा रहे हैं. साहित्यकार का कहना है कि धीरे-धीरे हमारी प्राचीन संस्कृति खोती जा रही है. ऐसे में इस लॉकडाउन का सही उपयोग करके मैं अपने बच्चों को प्रशक्षित कर रहा हूं.

bundi latest news, बूंदी शास्त्रीय संगीत की खबर, लॉकडाउन में घर बैठे क्या करें, what to do during lockdown, lockdown in rajasthan
ये साहित्यकार बच्चों को सिखा रहे हैं शास्त्रीय संगीत
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Published : May 4, 2020, 7:27 PM IST

केशवरायपाटन (बूंदी). लॉकडाउन के वैसे तो कई बुरे प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहा है. लेकिन इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव भी समाज में देखने को मिल रहे है. बूंदी में लॉकडाउन में बैठे-बैठे बच्चे बोर न हो, इसलिए ये साहित्यकार अपने बच्चों को हारमोनियम और तबला सिखा रहे हैं. इससे साफ है कि लोग भारतीय संस्कृति की ओर वापस लौट रहे हैं.

बेटे और बेटी को दे रहे शास्त्रीय संगीत की शिक्षा

दरअसल, उपखण्ड क्षेत्र के अंतिम छोर पर बसे रोटेदा गांव में कवि लेखक देवकीनंदन शर्मा की पुत्री कोमल शर्मा और पुत्र राघवेंद्र आजकल अपने पिता साहित्यकार देवकीनंदन के साथ कई नई चीजें सीख रहै हैं. जैसे संगीत पर गीत-गजल सुनाना, ढोलक बजाना.

ये साहित्यकार बच्चों को सिखा रहे हैं शास्त्रीय संगीत

भारतीय कल्चर पर फोकस

साहित्यकार शर्मा बताते हैं कि लॉकडाउन जिस दिन से लागू हुआ. उन्होंने बच्चों को कहा कि बाहर एक बीमारी घूम रही है. तो अब आपको घर में रहना होगा. वरना पुलिस पकड़कर ले जाएगी. फिर आप मुझसे मिल नहीं पाओगे. वह बताते हैं कि बच्चों को समझाना मुश्किल नहीं था. वह जल्द ही समझ गए और वह उनको तरह-तरह के कामों में उलझाए रखने की कोशिश करते रहते हैं. मैं यहीं चाहता हूं कि मेरे बच्चे भी हमारे भारतीय कल्चर को समझें और उसे आगे बढ़ाएं.

यह भी पढ़ें- स्पेशल: Lockdown में जयपुर का 4 हजार करोड़ का व्यापार प्रभावित, छोटे व्यापारियों पर गहराया संकट

मां भी बच्चों के साथ हैं चंगा-पो

शर्मा की बेटी कोमल को गीत-गजल लिखना और बेटे राघवेंद्र को ढोलक वादन करना पसंद है. तो वह उस काम को रुचि से करते हैं. बच्चों का मन बहलाने के लिए देवकीनंदन की पत्नी भी उनके साथ चंगा पो, सोलह सार जैसे खेल घर में खेलती हैं.

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साहित्यकार देवकीनंदन शर्मा अपनी पुत्री कोमल शर्मा और पुत्र राघवेंद्र के साथ

वो बताती हैं कि घर का काम-धाम निपटने के बाद समय अधिक बचता है. लॉकडाउन के चलते बच्चे भी स्कूल-कॉलेज नहीं जा पा रहे है. तो उनका समय व्यतीत करने के लिए यह अनोखी शिक्षा उन्हें दी जा रही है. आज के इस दौर में लोग संगीत से दूर जा रहे हैं. प्राचीन परम्पराओं को संजोए रखने के लिए इस युवा पीढ़ी को संगीत आना बेहद जरूरी है.

केशवरायपाटन (बूंदी). लॉकडाउन के वैसे तो कई बुरे प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहा है. लेकिन इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव भी समाज में देखने को मिल रहे है. बूंदी में लॉकडाउन में बैठे-बैठे बच्चे बोर न हो, इसलिए ये साहित्यकार अपने बच्चों को हारमोनियम और तबला सिखा रहे हैं. इससे साफ है कि लोग भारतीय संस्कृति की ओर वापस लौट रहे हैं.

बेटे और बेटी को दे रहे शास्त्रीय संगीत की शिक्षा

दरअसल, उपखण्ड क्षेत्र के अंतिम छोर पर बसे रोटेदा गांव में कवि लेखक देवकीनंदन शर्मा की पुत्री कोमल शर्मा और पुत्र राघवेंद्र आजकल अपने पिता साहित्यकार देवकीनंदन के साथ कई नई चीजें सीख रहै हैं. जैसे संगीत पर गीत-गजल सुनाना, ढोलक बजाना.

ये साहित्यकार बच्चों को सिखा रहे हैं शास्त्रीय संगीत

भारतीय कल्चर पर फोकस

साहित्यकार शर्मा बताते हैं कि लॉकडाउन जिस दिन से लागू हुआ. उन्होंने बच्चों को कहा कि बाहर एक बीमारी घूम रही है. तो अब आपको घर में रहना होगा. वरना पुलिस पकड़कर ले जाएगी. फिर आप मुझसे मिल नहीं पाओगे. वह बताते हैं कि बच्चों को समझाना मुश्किल नहीं था. वह जल्द ही समझ गए और वह उनको तरह-तरह के कामों में उलझाए रखने की कोशिश करते रहते हैं. मैं यहीं चाहता हूं कि मेरे बच्चे भी हमारे भारतीय कल्चर को समझें और उसे आगे बढ़ाएं.

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मां भी बच्चों के साथ हैं चंगा-पो

शर्मा की बेटी कोमल को गीत-गजल लिखना और बेटे राघवेंद्र को ढोलक वादन करना पसंद है. तो वह उस काम को रुचि से करते हैं. बच्चों का मन बहलाने के लिए देवकीनंदन की पत्नी भी उनके साथ चंगा पो, सोलह सार जैसे खेल घर में खेलती हैं.

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साहित्यकार देवकीनंदन शर्मा अपनी पुत्री कोमल शर्मा और पुत्र राघवेंद्र के साथ

वो बताती हैं कि घर का काम-धाम निपटने के बाद समय अधिक बचता है. लॉकडाउन के चलते बच्चे भी स्कूल-कॉलेज नहीं जा पा रहे है. तो उनका समय व्यतीत करने के लिए यह अनोखी शिक्षा उन्हें दी जा रही है. आज के इस दौर में लोग संगीत से दूर जा रहे हैं. प्राचीन परम्पराओं को संजोए रखने के लिए इस युवा पीढ़ी को संगीत आना बेहद जरूरी है.

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