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स्पेशल: यहां करीब 40 हजार लोग डर के साए में जी रहे, पग-पग मौत की दीवार

बरसात के मौसम में हुई तबाही के बाद अब तस्वीरें सामने आने लगी हैं. यहां शहर के करीब 40 हजार लोग डर के साए में जी रहे हैं. 3 हजार से अधिक मकान जर्जर हैं. वहीं अगर अब भी प्रशासन नहीं चेता तो यहां कोई बड़ा हादसा हो सकता है.

Bundi shabby house, बूंदी जर्जर मकान
बूंदी में जर्जर हो रहे हैं विरासती मकान...
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Published : Dec 7, 2019, 1:03 PM IST

बूंदी. पुराने शहर में लोग खौफ के साए तले जी रहे हैं. वजह मकानों में आ रही अचानक दरारे और जर्जर मकान. कब छत का छज्जा गिर जाए मकान ढह जाए परिवार इसमें आशंकित है. मकानों में दरारे साल भर पहले शुरू हुई. ऐसा भूगर्भीय हलचल से जमीन धंसने के कारण हो रहा है या फिर सीवरेज और अमृत योजना में पानी की लाइनें बिछाते वक्त सड़कों पर मशीनों की खुदाई से. फिलहाल कारणों का पता नहीं चल पा रहा है. मकानों में दरारे आना लोगों के लिए अब चिंता का विषय बन गया है.

बूंदी में जर्जर हो रहे हैं विरासती मकान...

प्रशासन को अब टीम बनाकर सर्वे कराना होगा. वरना नुकसान जान माल पर जाकर रुकेगा. पुराने शहर का हर घर बूंदी की विरासत है, जिसमें उस दौर की भवन निर्माण कला विरासत, कंगूरे वाली जड़ों की परंपरा पुराने मकानों में ही मिलती है.

पढ़ें- सर्दी के तेवर के साथ जयपुर नगर निगम ने शहर में शुरू किए अस्थाई रैन बसेरे

पहाड़ी में बसा है बूंदी शहर...

छोटी काशी पहाड़ की तलहटी पर बसे इन मकानों में जहां करीब 40 हजार लोग रहते हैं. ज्यादातर लोग हवेलियों और पुराने मकानों में ही रहते हैं जो जर्जर हो चुके हैं. यह मकान 100 से 300 साल पुराने हैं. पुराना शहर जर्जर हो चुका है. प्रशासन के पास रिहायश के लिहाज से खतरनाक भवनों की आधी-अधूरी जानकारी है. इनके खतरे को लेकर किसी स्तर पर गंभीरता नहीं है. मोटे तौर पर छोटी काशी में 3 हजार मकान जर्जर हैं.

ऐसा नहीं है कि इस बार अतिवृष्टि से ऐसा हुआ है, मानसून शुरू होने से पहले ही मकानों में दरारें आने लग गई थी. बरसात के बाद सिलसिला और बड़ा बहुत से मकान धराशाई होने की हालत में है कईयों को खुद मालिको ने गिराया या लाखों रुपए खर्च कर दोबारा निर्माण करा रहे हैं या अपना घर छोड़कर किराए के मकान पर चले गए हैं. कुछ इसे भूगर्भीय हलचल का नतीजा बता रहे हैं, तो कुछ इसे जलदाय विभाग की ओर से पुराने शहर में डाली गई पाइप लाइनों में रिसाव का कारण बता रहे हैं. कोई सीवरेज लाइन बिछाने के वक्त वाइब्रेटर मशीन से खोदी गई सड़कों से कंपन होने से दरारें आने की आशंका भी इसे लेकर जता रहा है. कारण जो भी हो फिलहाल पता नहीं लग पा रहा है.

पढ़ें- घूंघट प्रथा ससुराल पक्ष की देन है, अपनी बेटी जैसे बहू को भी स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार दें : मंत्री भूपेश

मौत के साये में यह इलाका...

पुराने शहर के भटक भेरू पाड़ा, तीन देवरिया गली, नाहर का चोहट्टा, पानी की गली, उपरला बाजार, सोत्या पाड़ा की गली, कुदलो की गली, बालाजी की गली, बड़ की गली, गणेश गली तंबोली की गली, काला महलो की गली, धभाइयों का चौक, मल्लशाह का मंदिर, कागजी के देवरा, पुरानी कोतवाली सहित परकोटे के भीतर के 70 से 80 फ़ीसदी मकानों में दरारें आ गई है और पिछले बरसात के बाद से ही यह दरारें पड़ने लगी है.

इन इलाकों में खतरा...

हादसों में यह इलाके भी नही होंगे शहर के बालचंद पाड़ा, बोहरा मोहल्ला , बुलबुल का चबूतरा, चारभुजा मंदिर के पास सोत्या पाड़ा ,आचार्य गली ,महावत पाड़ा, मोरडी पाड़ा, बाईपास रोड, पुरानी कोतवाली की गली, कल्याण मंदिर के पास तिवारी पड़ा, ब्रह्मपुरी,पोद्दार की हताई , छोटा महाराज की हवेली , मोतीमहल रावला , कागजी देवरा , कहरा मोहल्ला , बटक भेरू गली यह सब मकान खतरे में हैं.

ईटीवी भारत की पड़ताल में यह सामने आया कि अधिकतर मकान इस इलाके में चुने वह मिट्टी की ईट के बने हुए हैं. राजाओं के जमाने से बने इन मकानों को पुरानी कलाकृतियां और पुराने पत्थरों से बनाया हुआ है इनकी मजबूत या कि आज इन मकानों को और हवेलियों को बचा रही है.

ईटीवी भारत के माध्यम से की अपील...

ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार और प्रशासन से इलाके के लोग मांग कर रहे हैं कि वह आपदा प्रबंधक की टीम को इस इलाके में भिजवाए और डर के साए में जी रहे लोगों से बात करें. यहां के वह हालात देखें और सरकार से आर्थिक सहायता इन्हें मिले ताकि युद्ध स्तर पर जर्जर भवनों का और हवेलियों का कार्य हो सके और समय रहते प्रशासन चेत जाए वरना लोगों ने प्रशासन को साफ साफ इशारा किया कि वह दिन दूर नहीं जब इतनी तादाद में जर्जर हो रहे मकान में से कोई मकान क्षतिग्रस्त हो जाए और बड़ी अनहोनी हो जाए.

इन इलाकों में पर्यटकों की भरमार...

इस पुराने शहर में सबसे ज्यादा टूरिस्ट भी आते हैं और यह क्षेत्र पूरा पर्यटन से जुड़ा हुआ है यहां पर देश-विदेश के पर्यटक इन हवेलियों में आते हैं और हवेलियों के झरोखों से बूंदी की विरासत को देखते हैं. लेकिन, उन्हें जर्जर हो रही इन हवेलियों को देखकर भी काफी ठगा सा महसूस होना पड़ रहा है साथ में उनकी जान को भी यह खतरा माना जा सकता है. क्योंकि, वह दिनभर सड़क पर बूंदी के घूमते है और कोई हवेली गिरी तो उन्हें भी खतरा.

बूंदी. पुराने शहर में लोग खौफ के साए तले जी रहे हैं. वजह मकानों में आ रही अचानक दरारे और जर्जर मकान. कब छत का छज्जा गिर जाए मकान ढह जाए परिवार इसमें आशंकित है. मकानों में दरारे साल भर पहले शुरू हुई. ऐसा भूगर्भीय हलचल से जमीन धंसने के कारण हो रहा है या फिर सीवरेज और अमृत योजना में पानी की लाइनें बिछाते वक्त सड़कों पर मशीनों की खुदाई से. फिलहाल कारणों का पता नहीं चल पा रहा है. मकानों में दरारे आना लोगों के लिए अब चिंता का विषय बन गया है.

बूंदी में जर्जर हो रहे हैं विरासती मकान...

प्रशासन को अब टीम बनाकर सर्वे कराना होगा. वरना नुकसान जान माल पर जाकर रुकेगा. पुराने शहर का हर घर बूंदी की विरासत है, जिसमें उस दौर की भवन निर्माण कला विरासत, कंगूरे वाली जड़ों की परंपरा पुराने मकानों में ही मिलती है.

पढ़ें- सर्दी के तेवर के साथ जयपुर नगर निगम ने शहर में शुरू किए अस्थाई रैन बसेरे

पहाड़ी में बसा है बूंदी शहर...

छोटी काशी पहाड़ की तलहटी पर बसे इन मकानों में जहां करीब 40 हजार लोग रहते हैं. ज्यादातर लोग हवेलियों और पुराने मकानों में ही रहते हैं जो जर्जर हो चुके हैं. यह मकान 100 से 300 साल पुराने हैं. पुराना शहर जर्जर हो चुका है. प्रशासन के पास रिहायश के लिहाज से खतरनाक भवनों की आधी-अधूरी जानकारी है. इनके खतरे को लेकर किसी स्तर पर गंभीरता नहीं है. मोटे तौर पर छोटी काशी में 3 हजार मकान जर्जर हैं.

ऐसा नहीं है कि इस बार अतिवृष्टि से ऐसा हुआ है, मानसून शुरू होने से पहले ही मकानों में दरारें आने लग गई थी. बरसात के बाद सिलसिला और बड़ा बहुत से मकान धराशाई होने की हालत में है कईयों को खुद मालिको ने गिराया या लाखों रुपए खर्च कर दोबारा निर्माण करा रहे हैं या अपना घर छोड़कर किराए के मकान पर चले गए हैं. कुछ इसे भूगर्भीय हलचल का नतीजा बता रहे हैं, तो कुछ इसे जलदाय विभाग की ओर से पुराने शहर में डाली गई पाइप लाइनों में रिसाव का कारण बता रहे हैं. कोई सीवरेज लाइन बिछाने के वक्त वाइब्रेटर मशीन से खोदी गई सड़कों से कंपन होने से दरारें आने की आशंका भी इसे लेकर जता रहा है. कारण जो भी हो फिलहाल पता नहीं लग पा रहा है.

पढ़ें- घूंघट प्रथा ससुराल पक्ष की देन है, अपनी बेटी जैसे बहू को भी स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार दें : मंत्री भूपेश

मौत के साये में यह इलाका...

पुराने शहर के भटक भेरू पाड़ा, तीन देवरिया गली, नाहर का चोहट्टा, पानी की गली, उपरला बाजार, सोत्या पाड़ा की गली, कुदलो की गली, बालाजी की गली, बड़ की गली, गणेश गली तंबोली की गली, काला महलो की गली, धभाइयों का चौक, मल्लशाह का मंदिर, कागजी के देवरा, पुरानी कोतवाली सहित परकोटे के भीतर के 70 से 80 फ़ीसदी मकानों में दरारें आ गई है और पिछले बरसात के बाद से ही यह दरारें पड़ने लगी है.

इन इलाकों में खतरा...

हादसों में यह इलाके भी नही होंगे शहर के बालचंद पाड़ा, बोहरा मोहल्ला , बुलबुल का चबूतरा, चारभुजा मंदिर के पास सोत्या पाड़ा ,आचार्य गली ,महावत पाड़ा, मोरडी पाड़ा, बाईपास रोड, पुरानी कोतवाली की गली, कल्याण मंदिर के पास तिवारी पड़ा, ब्रह्मपुरी,पोद्दार की हताई , छोटा महाराज की हवेली , मोतीमहल रावला , कागजी देवरा , कहरा मोहल्ला , बटक भेरू गली यह सब मकान खतरे में हैं.

ईटीवी भारत की पड़ताल में यह सामने आया कि अधिकतर मकान इस इलाके में चुने वह मिट्टी की ईट के बने हुए हैं. राजाओं के जमाने से बने इन मकानों को पुरानी कलाकृतियां और पुराने पत्थरों से बनाया हुआ है इनकी मजबूत या कि आज इन मकानों को और हवेलियों को बचा रही है.

ईटीवी भारत के माध्यम से की अपील...

ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार और प्रशासन से इलाके के लोग मांग कर रहे हैं कि वह आपदा प्रबंधक की टीम को इस इलाके में भिजवाए और डर के साए में जी रहे लोगों से बात करें. यहां के वह हालात देखें और सरकार से आर्थिक सहायता इन्हें मिले ताकि युद्ध स्तर पर जर्जर भवनों का और हवेलियों का कार्य हो सके और समय रहते प्रशासन चेत जाए वरना लोगों ने प्रशासन को साफ साफ इशारा किया कि वह दिन दूर नहीं जब इतनी तादाद में जर्जर हो रहे मकान में से कोई मकान क्षतिग्रस्त हो जाए और बड़ी अनहोनी हो जाए.

इन इलाकों में पर्यटकों की भरमार...

इस पुराने शहर में सबसे ज्यादा टूरिस्ट भी आते हैं और यह क्षेत्र पूरा पर्यटन से जुड़ा हुआ है यहां पर देश-विदेश के पर्यटक इन हवेलियों में आते हैं और हवेलियों के झरोखों से बूंदी की विरासत को देखते हैं. लेकिन, उन्हें जर्जर हो रही इन हवेलियों को देखकर भी काफी ठगा सा महसूस होना पड़ रहा है साथ में उनकी जान को भी यह खतरा माना जा सकता है. क्योंकि, वह दिनभर सड़क पर बूंदी के घूमते है और कोई हवेली गिरी तो उन्हें भी खतरा.

Intro:बूंदी में बरसात के मौसम में हुई तबाही के बाद अब तस्वीरें सामने आने लगी है यहां पर शहर के करीब 40 हजार लोग डर के साए में जी रहे हैं । हम इसलिए ऐसा कह रहे हैं क्योंकि 3 हजार से अधिक मकान जर्जर है और उनकी जर्जर हालत देखकर यही लगता है कि किसी दिन प्रशासन नहीं चेता तो बड़ा हादसा हो जाएगा। यहां के लोगों ने मांग की है कि बारिश के बाद जिन जिन घरों में जर्जर हालत हो चुकी है या वह जमीदोज हो चुके हैं उनका प्रशासन सर्वे करवाएं और उनकी मरम्मत करवाकर इस बड़ी दुर्घटना को रोके ।


Body:बूंदी :- पुराने शहर में लोग खौफ के साए के तले जी रहे हैं वजह मकानों में आ रही अचानक दरारे एवं जर्जर मकान । कब छत छज्जा गिर जाए मकान ढह जाए परिवार इसमें आशंकित है । मकानों में दरारे साल भर पहले शुरू हुई ऐसा भुगीय हलचल से जमीन धंसने से हो रहा है बिजली कड़कने या फिर सीवरेज व अमृत योजना में पानी की लाइनें बिछाते वक्त सड़कों पर रास्तों की मशीनों से खुदाई से कंपन या वक्त की मार से मकानों में दरारे आना चिंता का विषय बन गया है । कारण पता नहीं चले हैं । प्रशासन को टीम बनाकर सर्वे कराना होगा वरना नुकसान जानमाल तक रुकेगा । पुराने शहर का हर घर बूंदी की विरासत है जिसमें उस दौर की भवन निर्माण कला विरासत, कंगूरे वाली जड़ों की परंपरा पुराने मकानों में ही मिलती है। यहां यह सब देखने को मिलेगी ।

पहाड़ी में बसा है बूंदी शहर

छोटी काशी पहाड़ की तलहटी पर बसी है जहां करीब 40 हजार लोग रहते हैं ज्यादातर हवेलिया पुराने मकानों में ही रहते हैं जो जर्जर हो चुके हैं। यह मकान 100 से 300 साल पुराने हैं पुराना शहर जर्जर हो चुका है प्रशासन के पास रिहायश के लिहाज से खतरनाक भवनों की आधी अधूरी जानकारी है । इनके खतरे को लेकर किसी स्तर पर गंभीरता नहीं है । मोटे तौर पर छोटी काशी में 3 हजार मकान जर्जर है ऐसा नहीं है कि इस बार अतिवृष्टि से ऐसा हुआ है मानसून शुरू होने से पहले ही मकानों में दरारें आने लग गई थी । बरसात के बाद सिलसिला और बड़ा बहुत से मकान धराशाई होने की हालत में है कईयों को खुद मालिको ने गिराया या लाखों रुपए खर्च कर पुन निर्माण करा रहे हैं या अपना घर छोड़कर किराए के मकान पर चले गए हैं । कुछ ऐसे भुगभीय हलचल का नतीजा बता रहे हैं जो कुछ इसे जलदाय विभाग की ओर से पुराने शहर में डाली गई पाइप लाइनों में रिसाव का कारण बता रहे हैं तो कोई से सीवरेज लाइन बिछाने के वक्त वाइब्रेटर मशीन से खोदी गई सड़कों से कंपन होने से दरारें आने की आशंका बता रहे हैं । कारण जो भी हो पता नहीं लग पा रहा है ।

मौत के साये में यह इलाके

पुराने शहर के भटक भेरू पाड़ा , तीन देवरिया गली ,नाहर का चोहट्टा , पानी की गली ,उपरला बाजार , सोत्या पाड़ा की गली , कुदलो की गली , बालाजी की गली , बड़ की गली , गणेश गली तंबोली की गली, काला महलो की गली , धभाइयों का चौक , मल्लशाह का मंदिर , कागजी के देवरा , पुरानी कोतवाली सहित परकोटे के भीतर के 70 से 80 फ़ीसदी मकानों में दरारें आ गई है और पिछले बरसात के बाद से ही यह दरारें पड़ने लगी है ।

इन इलाकों में खतरा हो सकता है

हादसों में यह इलाके भी नही होंगे शहर के बालचंद पाड़ा, बोहरा मोहल्ला , बुलबुल का चबूतरा, चारभुजा मंदिर के पास सोत्या पाड़ा ,आचार्य गली ,महावत पाड़ा, मोरडी पाड़ा, बाईपास रोड, पुरानी कोतवाली की गली, कल्याण मंदिर के पास तिवारी पड़ा, ब्रह्मपुरी,पोद्दार की हताई , छोटा महाराज की हवेली , मोतीमहल रावला , कागजी देवरा , कहरा मोहल्ला , बटक भेरू गली यह सब मकान खतरे में हैं


Conclusion:लोग सोते साये में उठते साये में , हादसे के इंतजार

इन इलाकों में जब भी लोग ऊपर से नीचे या कोई निकलता है तो वह हमेशा डर के साए में उठता है और सोता है। जर्जर भी इस कदर है कि कभी भी मकान क्षतिग्रस्त हो सकता है और बड़ा हादसा हो सकता है । अचानक से हुई बरसात के बाद यह स्थिति पुराने शहर में करीब 3 हजार परिवारों के 40 हजार से अधिक लोग रोज डर के साए में सो रहे हैं। ईटीवी भारत की पड़ताल में यह सामने आया कि अधिकतर मकान इस इलाके में चुने वह मिट्टी की ईट के बने हुए हैं । राजाओं के जमाने से बने इन मकानों को पुरानी कलाकृतियां और पुराने पत्थरों से बनाया हुआ है इनकी मजबूत या कि आज इन मकानों को और हवेलियों को बचा रही है ।

ईटीवी भारत से माध्यम से सरकार से मदद

ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार और प्रशासन से इलाके के लोग मांग कर रहे हैं कि वह आपदा प्रबंधक की टीम को इस इलाके में भिजवाए और डर के साए में जी रहे लोगों से बात करें । यहां के वह हालात देखें और सरकार से आर्थिक सहायता इन्हें मिले ताकि युद्ध स्तर पर जर्जर भवनों का और हवेलियों का कार्य हो सके और समय रहते प्रशासन चेत जाए वरना लोगों ने प्रशासन को साफ साफ इशारा किया कि वह दिन दूर नहीं जब इतनी तादाद में जर्जर हो रहे मकान में से कोई मकान क्षतिग्रस्त हो जाए और बड़ी अनहोनी हो जाए ।

इन इलाकों में पर्यटकों की भरमार

यही नहीं इस पुराने शहर में सबसे ज्यादा टूरिस्ट भी आते हैं और यह क्षेत्र पूरा पर्यटन से जुड़ा हुआ है यहां पर देश-विदेश के पर्यटक इन हवेलियों में आते हैं और हवेलियों के झरोखों से बूंदी की विरासत को देखते हैं । लेकिन उन्हें जर्जर हो रही इन हवेलियों को देखकर भी काफी ठगा सा महसूस होना पड़ रहा है साथ में उनकी जान को भी यह खतरा माना जा सकता है । क्योंकि वह दिनभर सड़क पर बूंदी के घूमते है और कोई हवेली गिरी तो उन्हें भी खतरा ।

बूंदी में राज्य सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और स्थानीय प्रशासन को ध्यान देना चाहिए कि वह इन हजारों परिवार के लोगों से मिले और उनकी पीड़ा जाने तथा बूंदी प्रशासन सरकार को एक प्रस्ताव बनाकर भेजें कि बूंदी में इस तरीके से घर हैं और वह जर्जर हालत में हैं साथ में डर के साए में वह जी रहे हैं एक रिपोर्ट तैयार हो और सरकार को प्रस्तुत की जाए ताकि राज्य सरकार आपदा प्रबंधक राशि के तहत बूंदी कि इन परिवारों को राशि दे ताकि समय रहते यह परिवार उन राशि का उपयोग कर जर्जर हो रहे मकान हवेलियों को सुरक्षित करवा सके। वरना वह दिन दूर नहीं कि बड़ा हादसा बूंदी में देखने को मिलेगा। बरसात में वह तस्वीर भी सामने आई थी जब जिले के एक दर्जन से अधिक मकान इस इलाके में धराशाई हो गए। कुछ लोग घायल भी हुए लेकिन जनहानि नहीं हुई लेकिन प्रशासन को इन घटनाओं के बाद चेतना होगा और एक मुहिम चलाकर इन इलाकों को देखना होगा ।
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