बूंदी. पुराने शहर में लोग खौफ के साए तले जी रहे हैं. वजह मकानों में आ रही अचानक दरारे और जर्जर मकान. कब छत का छज्जा गिर जाए मकान ढह जाए परिवार इसमें आशंकित है. मकानों में दरारे साल भर पहले शुरू हुई. ऐसा भूगर्भीय हलचल से जमीन धंसने के कारण हो रहा है या फिर सीवरेज और अमृत योजना में पानी की लाइनें बिछाते वक्त सड़कों पर मशीनों की खुदाई से. फिलहाल कारणों का पता नहीं चल पा रहा है. मकानों में दरारे आना लोगों के लिए अब चिंता का विषय बन गया है.
प्रशासन को अब टीम बनाकर सर्वे कराना होगा. वरना नुकसान जान माल पर जाकर रुकेगा. पुराने शहर का हर घर बूंदी की विरासत है, जिसमें उस दौर की भवन निर्माण कला विरासत, कंगूरे वाली जड़ों की परंपरा पुराने मकानों में ही मिलती है.
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पहाड़ी में बसा है बूंदी शहर...
छोटी काशी पहाड़ की तलहटी पर बसे इन मकानों में जहां करीब 40 हजार लोग रहते हैं. ज्यादातर लोग हवेलियों और पुराने मकानों में ही रहते हैं जो जर्जर हो चुके हैं. यह मकान 100 से 300 साल पुराने हैं. पुराना शहर जर्जर हो चुका है. प्रशासन के पास रिहायश के लिहाज से खतरनाक भवनों की आधी-अधूरी जानकारी है. इनके खतरे को लेकर किसी स्तर पर गंभीरता नहीं है. मोटे तौर पर छोटी काशी में 3 हजार मकान जर्जर हैं.
ऐसा नहीं है कि इस बार अतिवृष्टि से ऐसा हुआ है, मानसून शुरू होने से पहले ही मकानों में दरारें आने लग गई थी. बरसात के बाद सिलसिला और बड़ा बहुत से मकान धराशाई होने की हालत में है कईयों को खुद मालिको ने गिराया या लाखों रुपए खर्च कर दोबारा निर्माण करा रहे हैं या अपना घर छोड़कर किराए के मकान पर चले गए हैं. कुछ इसे भूगर्भीय हलचल का नतीजा बता रहे हैं, तो कुछ इसे जलदाय विभाग की ओर से पुराने शहर में डाली गई पाइप लाइनों में रिसाव का कारण बता रहे हैं. कोई सीवरेज लाइन बिछाने के वक्त वाइब्रेटर मशीन से खोदी गई सड़कों से कंपन होने से दरारें आने की आशंका भी इसे लेकर जता रहा है. कारण जो भी हो फिलहाल पता नहीं लग पा रहा है.
मौत के साये में यह इलाका...
पुराने शहर के भटक भेरू पाड़ा, तीन देवरिया गली, नाहर का चोहट्टा, पानी की गली, उपरला बाजार, सोत्या पाड़ा की गली, कुदलो की गली, बालाजी की गली, बड़ की गली, गणेश गली तंबोली की गली, काला महलो की गली, धभाइयों का चौक, मल्लशाह का मंदिर, कागजी के देवरा, पुरानी कोतवाली सहित परकोटे के भीतर के 70 से 80 फ़ीसदी मकानों में दरारें आ गई है और पिछले बरसात के बाद से ही यह दरारें पड़ने लगी है.
इन इलाकों में खतरा...
हादसों में यह इलाके भी नही होंगे शहर के बालचंद पाड़ा, बोहरा मोहल्ला , बुलबुल का चबूतरा, चारभुजा मंदिर के पास सोत्या पाड़ा ,आचार्य गली ,महावत पाड़ा, मोरडी पाड़ा, बाईपास रोड, पुरानी कोतवाली की गली, कल्याण मंदिर के पास तिवारी पड़ा, ब्रह्मपुरी,पोद्दार की हताई , छोटा महाराज की हवेली , मोतीमहल रावला , कागजी देवरा , कहरा मोहल्ला , बटक भेरू गली यह सब मकान खतरे में हैं.
ईटीवी भारत की पड़ताल में यह सामने आया कि अधिकतर मकान इस इलाके में चुने वह मिट्टी की ईट के बने हुए हैं. राजाओं के जमाने से बने इन मकानों को पुरानी कलाकृतियां और पुराने पत्थरों से बनाया हुआ है इनकी मजबूत या कि आज इन मकानों को और हवेलियों को बचा रही है.
ईटीवी भारत के माध्यम से की अपील...
ईटीवी भारत के माध्यम से सरकार और प्रशासन से इलाके के लोग मांग कर रहे हैं कि वह आपदा प्रबंधक की टीम को इस इलाके में भिजवाए और डर के साए में जी रहे लोगों से बात करें. यहां के वह हालात देखें और सरकार से आर्थिक सहायता इन्हें मिले ताकि युद्ध स्तर पर जर्जर भवनों का और हवेलियों का कार्य हो सके और समय रहते प्रशासन चेत जाए वरना लोगों ने प्रशासन को साफ साफ इशारा किया कि वह दिन दूर नहीं जब इतनी तादाद में जर्जर हो रहे मकान में से कोई मकान क्षतिग्रस्त हो जाए और बड़ी अनहोनी हो जाए.
इन इलाकों में पर्यटकों की भरमार...
इस पुराने शहर में सबसे ज्यादा टूरिस्ट भी आते हैं और यह क्षेत्र पूरा पर्यटन से जुड़ा हुआ है यहां पर देश-विदेश के पर्यटक इन हवेलियों में आते हैं और हवेलियों के झरोखों से बूंदी की विरासत को देखते हैं. लेकिन, उन्हें जर्जर हो रही इन हवेलियों को देखकर भी काफी ठगा सा महसूस होना पड़ रहा है साथ में उनकी जान को भी यह खतरा माना जा सकता है. क्योंकि, वह दिनभर सड़क पर बूंदी के घूमते है और कोई हवेली गिरी तो उन्हें भी खतरा.