बीकानेर. चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन को बास्योड़ा के नाम से भी जानते हैं. मां शीतला को माता पार्वती और मां दुर्गा का अवतार माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि माता शीतला की विधि विधान से पूजा-अर्चना और शीतला अष्टमी के दिन पूरे विधि विधान से मां को प्रसन्न करने से चर्म रोग, संक्रामक रोग और चेचक के रोग से बचाव होता है.
इस दिन क्या करें : शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला की पूजा आराधना करनी चाहिए. इस दिन मां शीतला की सवारी गदर्भ यानी गधे की भी पूजा करनी चाहिए. इस दिन मां शीतला की पूजा आराधना के साथ ही घर में पीने की पानी की नई मटकी या घड़ा भी लाना चाहिए.
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दिन की शुरुआत कैसे ? : आम दिनचर्या में जिस तरह से सुबह उठने के साथ ही चाय कॉफी पीने की आदत है. ऐसे में इस दिन सुबह उठने के बाद इनका परहेज करना चाहिए. शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को दही राबड़ी चावल हलवा का भोग लगाएं. माता शीतला को कुमकुम, हल्दी और रोली का तिलक जरूर लगाएं. माता को भोग लगाने के बाद सुबह स्वयं भी वही प्रसाद ग्रहण करें. शीतला अष्टमी के पूरे दिन गरम पेय पदार्थ व भोजन ग्रहण कतई भी नहीं करना चाहिए.
इन कार्यों को न करें : शीतला अष्टमी के दिन चूल्हा जलाएं. इस दिन एक दिन पहले बनाया गया भोजन ही खाना चाहिए. माता शीतला को ताजा बना भोजन का बिल्कुल भी भोग न लगाएं, बल्कि शीतला सप्तमी के दिन बनाए गए पकवान का ही भोग लगाएं और खुद भी वहीं खाएं व घर के अन्य सदस्यों को भी वही पकवान खाने के लिए दें. शीतला अष्टमी के दिन घर में झाड़ू भी न लगाएं. शीतला अष्टमी के दिन नए वस्त्र व गाढ़े रंग के कपड़े पहनने से परहेज करें. इस दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें अर्थात मांस-मदिरा का सेवन कतई भी न करें. इस दिन बाल व दाढ़ी न कटवाएं, साथ ही वस्त्रों की सिलाई भी न करें. इस दिन पशु-पक्षियों को विशेष ध्यान रखें और खासतौर से गधे को परेशान न करें, क्योंकि वो माता शीतला की सवारी है.