बीकानेर. हिंदू धर्म शास्त्रों में शनिवार का भी विशेष महत्व है. यह दिन शनिदेव को समर्पित है. शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं और इनकी माता का नाम छाया है. इस दिन विधि विधान से शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. शनि को धर्म शास्त्र और ज्योतिष में न्यायप्रिय कहा जाता है. शनि के प्रभावों से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है.
सामने खड़े होकर आंखों में न देखें : मान्यता है कि शनिदेव की पूजा पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी होती है इसका कारण है कि शनिदेव को पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है. इसलिए पूजा भी इसी दिशा में की जाती है. इसलिए शनि भगवान के मंदिर पूर्व दिशा की और बने होते हैं. शनिदेव की पूजा करते समय उनकी प्रतिमा के सामने खड़े होकर पूजा के समय शनिदेव की आंखों में नहीं देखना चाहिए.
शनिमंत्र का जप : हिंदू पुराणों में मान्यता है कि शनिदेव की कृपा के लिए और शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने के लिए नियमित और संभव न हो तो शनिवार को शनिमंत्र का जाप जरूर करना चाहिए. शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन शनिदेव को तिल, गुड़ या खिचड़ी का भोग लगाना काफी अच्छा माना जाता है. उनके मंत्र का जाप करना चाहिए. इसके साथ ही द्वादश ज्योर्तिलिंग के नाम स्मरण करने और हनुमान जी की पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं. मान्यता है कि शनिवार को हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करने से शनि की वक्र दृष्टि से राहत मिलती है.
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ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||
द्वादश ज्योर्तिलिंग नाम
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।