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बीकानेर : जूनागढ़ से निकली गणगौर की सवारी...Video - gangaur

गणगौर का पर्व पूरे देश की तरह बीकानेर में भी धूमधाम से मनाया गया. गणगौर की सवारी को देखने के लिए शहरभर से लोग आए.

बीकानेर में निकाली गई गणगौर की सवारी
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Published : Apr 10, 2019, 12:44 PM IST

बीकानेर. प्राचीन जूनागढ़ से गणगौर की सवारी निकाली गई. गणगौर सवारी चौतीना कुआं पहुंची जहां पानी पिलाने की रस्म पूरी की गई. इस सवारी को देखने के लिए शहरभर से लोग आए. जिसके बाद सवारी फिर से जूनागढ़ में पहुंची. शाही गणगौर को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे.इस दौरान जूनागढ़ में राज परिवार के सदस्यों की ओर से अन्य गणगौर की खोल भरने की रस्म भी की गई.

बीकानेर में निकाली गई गणगौर की सवारी

बीकानेर की अंदरूनी शहर के ढ़ढो के चौक में प्राचीन चांदमल ढ़ढा की ख्यातनाम गणगौर का मेला देर रात तक चला. दरअसल पूरे देश में चांदमल ढ़ढा की गवर अपने आप में प्रसिद्ध है.इस गणगौर की खास बात यह है कि साल में एक बार भरने वाले इस मेले के दौरान गणगौर को करोड़ों रुपए के जेवरात पहनाए जाते हैं प्राचीन काल से इस गणगौर को यह जेवरात पहनाए जाते हैं और इस गणगौर को राज परिवार की ओर से भी विशेष मान्यता हासिल है.

बीकानेर. प्राचीन जूनागढ़ से गणगौर की सवारी निकाली गई. गणगौर सवारी चौतीना कुआं पहुंची जहां पानी पिलाने की रस्म पूरी की गई. इस सवारी को देखने के लिए शहरभर से लोग आए. जिसके बाद सवारी फिर से जूनागढ़ में पहुंची. शाही गणगौर को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे.इस दौरान जूनागढ़ में राज परिवार के सदस्यों की ओर से अन्य गणगौर की खोल भरने की रस्म भी की गई.

बीकानेर में निकाली गई गणगौर की सवारी

बीकानेर की अंदरूनी शहर के ढ़ढो के चौक में प्राचीन चांदमल ढ़ढा की ख्यातनाम गणगौर का मेला देर रात तक चला. दरअसल पूरे देश में चांदमल ढ़ढा की गवर अपने आप में प्रसिद्ध है.इस गणगौर की खास बात यह है कि साल में एक बार भरने वाले इस मेले के दौरान गणगौर को करोड़ों रुपए के जेवरात पहनाए जाते हैं प्राचीन काल से इस गणगौर को यह जेवरात पहनाए जाते हैं और इस गणगौर को राज परिवार की ओर से भी विशेष मान्यता हासिल है.

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चांदमल ढ़ढा के नाम से प्रसिद्ध इस गवर का इतिहास बहुत पुराना है. 

चांदमल ढ़ढा परिवार के वंशज और इजराइल निवासी शांतिचंद्र कहते हैं कि प्राचीन काल में राजा के समय गणगौर को विशेष सम्मान दिया गया और दरअसल चांदमल ढ़ढा के परिवार के लोग फलौदी से बीकानेर बसे थे और एक बार राजपरिवार की ओर से इनको गणगौर देखने का निमंत्रण मिला.

लेकिन इनके परिवार की महिला ने प्रण लिया कि पुत्र प्राप्त होने पर ही गणगौर के दर्शन करूंगी. सेठ उदयमल की पत्नी के इस प्रण के बाद एक साल तक गणगौर में विश्वास और आस्था से उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसका नाम चांदमल रखा गया. तभी से हर साल गणगौर निकालने की परंपरा शुरू हुई और इसका नाम चांदमल ढ़ढा गणगौर रखा गया. 

गणगौर की खास बात यह है कि अन्य गणगौर से अलग इस गणगौर के पांव होते हैं सामान्यतः अन्य गणगौर के पांव नहीं होते हैं. लगभग सवा सौ साल से निकाली जा रही इस गणगौर के मेले में खास बात यह है कि समय के साथ धीरे-धीरे इस गणगौर का गहना बढ़ता ही जा रहा है और हर साल हजारों की संख्या में देर रात तक लोग इस मेले का आनंद लेते हैं और गणगौर के दर्शन करते हैं. 

इस गणगौर को मंशापूर्ण गणगौर भी कहा जाता है मान्यता है कि यहां इस गणगौर के दर्शन के साथ जो मन्नत मांगी जाती है वह पूरी होती है. हर साल इसको निकाला जाता है और इस पूरे आयोजन को ढ़ढा परिवार के लोग स्थानीय लोगों के साथ मिलकर संचालित करते हैं. 


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