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राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023: चुनाव परिणाम से तय होगा कल्ला, भाटी सहित कई नेताओं का भविष्य

25 नवंबर को हुए मतदान के बाद अब सबकी नजरें 3 दिसंबर को मतगणना पर है. इतना तय है कि किसी के भाग्य में जीत आएगी और किसी के भाग्य में हार. इन चुनाव में हार-जीत की कई राजनेताओं के राजनीतिक भविष्य को तय करेगी.

Political future of leaders in BIkaner to decide after 3rd December
3 दिसंबर को मतगणना
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 30, 2023, 6:16 PM IST

बीकानेर. राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में मतदान के बाद प्रदेश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. दोनों ही पार्टी अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन अपने मापदंडों पर करते हुए जीत की बात कहती नजर आ रही हैं. बीकानेर में कांग्रेस और भाजपा के कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य 3 दिसंबर को आने वाले परिणामों से जुड़ा है.

बीडी कल्ला: बीडी कल्ला को कांग्रेस ने 10वीं बार टिकट दिया है. इस बार कल्ला ने अपने प्रचार में अंतिम चुनाव की बात भी कह दी है. ऐसे में इतना तय हो गया है कि अगली बार कल्ला कांग्रेस से बीकानेर में चेहरा नहीं होंगे. बावजूद उसके चुनाव परिणाम आने वाले राजनीतिक भविष्य को जरूर तय करेंगे. कल्ला के जीतने और कांग्रेस की सरकार आने पर एक बार फिर बीडी कल्ला मंत्री बन सकते हैं, तो वहीं जीतने के बाद सरकार नहीं आने पर भी नेता प्रतिपक्ष की रेस में शामिल रहेंगे. लेकिन यदि चुनाव हारे, तो बीकानेर में कल्ला के परिवार का राजनीतिक वर्चस्व कमजोर होगा और वाले 5 सालों में और कई चुनौतियां भी राजनीतिक रूप से देखने को मिल सकती है. हालांकि कल्ला के पुत्र राजनीति में नहीं है. लेकिन अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करना कल्ला के लिए भी मुश्किल हो सकता है.

पढ़ें: बीडी कल्ला बोले यह मेरा आखिरी चुनाव है जनता पर है भरोसा, सभी पेंडिग काम करूंगा पूरा

देवीसिंह भाटी: कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी हालांकि इस बार प्रत्याशी नहीं हैं, लेकिन इस बार उनके पौत्र अंशुमान उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में यह चुनाव सीधे तौर पर देवीसिंह भाटी से जुड़ा हुआ है. हालांकि रुझानों में अंशुमान मतदान के बाद यहां मजबूत स्थिति में हैं. 1980 से लेकर 2013 तक लगातार देवीसिंह भाटी 7 बार कोलायत से लगातार विधायक रहे और कोलायत उनके गढ़ के रूप में रहा. 2013 में भाटी चुनाव हार गए और 2018 में उनकी पुत्रवधू पूनम कंवर चुनाव हार गई. इस बार अंशुमान के चुनाव परिणाम का सीधा असर भाटी परिवार के राजनीतिक भविष्य को तय करेगा.

वीरेंद्र बेनीवाल: कांग्रेस सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे वीरेंद्र बेनीवाल को लगातार दो बात चुनाव हारने के चलते इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया. बेनीवाल टिकट वितरण से नाराज होकर मैदान में बागी के रूप में नजर आए. ऐसे में यदि बेनीवाल यहां मजबूत स्थिति में नजर नहीं आए, तो उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े होंगे.

पढ़ें: कल्ला और जेठानंद आमने-सामने, इस बार बचेगा कांग्रेस का 'किला' या भाजपा करेगी ध्वस्त ?

मंगलाराम गोदारा: कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रहे और जाट नेता मंगलाराम गोदारा को लगातार दो बार हारने के बावजूद भी पार्टी ने तीसरी बार श्रीडूंगरगढ़ से टिकट दिया है. ऐसे में इस बार मंगलाराम के लिए चुनाव परिणाम आने वाली राजनीति को तय करेगा.

ताराचंद सारस्वत: भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष रह चुके और लगातार दूसरी बार टिकट हासिल करने वाले ताराचंद सारस्वत पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे. लेकिन इस बार पार्टी ने उन पर भरोसा किया और बार का चुनाव परिणाम यदि उनके पक्ष में नहीं आया तो श्रीडूंगरगढ़ से भाजपा से भविष्य में किसी गैर जाट को टिकट मिलना भी मुश्किल हो सकता है. लेकिन यदि इस मुकाबले में ताराचंद कमाल कर गए, तो उनके लिए यह एक लम्बी राजनीतिक छलांग हो सकती है.

पढ़ें: एक राजा जो एमएलए-एमपी बने, लेकिन सदन में नहीं कर सके प्रवेश, जानें इसके पीछे की वजह

सुशीला डूडी: पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के अस्वस्थ होने के चलते इस बार नोखा से कांग्रेस ने उनकी पत्नी सुशीला डूडी को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि राजनीतिक रूप से सुशीला डूडी नया चेहरा हैं. लेकिन रामेश्वर डूडी पिछला चुनाव हार चुके हैं और डूडी परिवार के अलावा अभी तक कांग्रेस में किसी और का वर्चस्व नहीं रहा. यदि चुनाव परिणाम विपरीत आते हैं तो यहां भविष्य में डूडी परिवार के लिए राजनीतिक रूप से कई चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं. रुझानों में सुशीला डूडी सबसे मजबूत बताई जा रही हैं. ऐसे में यदि सुशीला डूडी चुनाव जीती, तो यह तय है कि एक बार फिर नोखा की राजनीति डूडी परिवार में ही रहेगी.

बीकानेर. राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में मतदान के बाद प्रदेश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. दोनों ही पार्टी अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन अपने मापदंडों पर करते हुए जीत की बात कहती नजर आ रही हैं. बीकानेर में कांग्रेस और भाजपा के कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य 3 दिसंबर को आने वाले परिणामों से जुड़ा है.

बीडी कल्ला: बीडी कल्ला को कांग्रेस ने 10वीं बार टिकट दिया है. इस बार कल्ला ने अपने प्रचार में अंतिम चुनाव की बात भी कह दी है. ऐसे में इतना तय हो गया है कि अगली बार कल्ला कांग्रेस से बीकानेर में चेहरा नहीं होंगे. बावजूद उसके चुनाव परिणाम आने वाले राजनीतिक भविष्य को जरूर तय करेंगे. कल्ला के जीतने और कांग्रेस की सरकार आने पर एक बार फिर बीडी कल्ला मंत्री बन सकते हैं, तो वहीं जीतने के बाद सरकार नहीं आने पर भी नेता प्रतिपक्ष की रेस में शामिल रहेंगे. लेकिन यदि चुनाव हारे, तो बीकानेर में कल्ला के परिवार का राजनीतिक वर्चस्व कमजोर होगा और वाले 5 सालों में और कई चुनौतियां भी राजनीतिक रूप से देखने को मिल सकती है. हालांकि कल्ला के पुत्र राजनीति में नहीं है. लेकिन अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करना कल्ला के लिए भी मुश्किल हो सकता है.

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देवीसिंह भाटी: कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी हालांकि इस बार प्रत्याशी नहीं हैं, लेकिन इस बार उनके पौत्र अंशुमान उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में यह चुनाव सीधे तौर पर देवीसिंह भाटी से जुड़ा हुआ है. हालांकि रुझानों में अंशुमान मतदान के बाद यहां मजबूत स्थिति में हैं. 1980 से लेकर 2013 तक लगातार देवीसिंह भाटी 7 बार कोलायत से लगातार विधायक रहे और कोलायत उनके गढ़ के रूप में रहा. 2013 में भाटी चुनाव हार गए और 2018 में उनकी पुत्रवधू पूनम कंवर चुनाव हार गई. इस बार अंशुमान के चुनाव परिणाम का सीधा असर भाटी परिवार के राजनीतिक भविष्य को तय करेगा.

वीरेंद्र बेनीवाल: कांग्रेस सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे वीरेंद्र बेनीवाल को लगातार दो बात चुनाव हारने के चलते इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया. बेनीवाल टिकट वितरण से नाराज होकर मैदान में बागी के रूप में नजर आए. ऐसे में यदि बेनीवाल यहां मजबूत स्थिति में नजर नहीं आए, तो उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े होंगे.

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मंगलाराम गोदारा: कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रहे और जाट नेता मंगलाराम गोदारा को लगातार दो बार हारने के बावजूद भी पार्टी ने तीसरी बार श्रीडूंगरगढ़ से टिकट दिया है. ऐसे में इस बार मंगलाराम के लिए चुनाव परिणाम आने वाली राजनीति को तय करेगा.

ताराचंद सारस्वत: भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष रह चुके और लगातार दूसरी बार टिकट हासिल करने वाले ताराचंद सारस्वत पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे. लेकिन इस बार पार्टी ने उन पर भरोसा किया और बार का चुनाव परिणाम यदि उनके पक्ष में नहीं आया तो श्रीडूंगरगढ़ से भाजपा से भविष्य में किसी गैर जाट को टिकट मिलना भी मुश्किल हो सकता है. लेकिन यदि इस मुकाबले में ताराचंद कमाल कर गए, तो उनके लिए यह एक लम्बी राजनीतिक छलांग हो सकती है.

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सुशीला डूडी: पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के अस्वस्थ होने के चलते इस बार नोखा से कांग्रेस ने उनकी पत्नी सुशीला डूडी को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि राजनीतिक रूप से सुशीला डूडी नया चेहरा हैं. लेकिन रामेश्वर डूडी पिछला चुनाव हार चुके हैं और डूडी परिवार के अलावा अभी तक कांग्रेस में किसी और का वर्चस्व नहीं रहा. यदि चुनाव परिणाम विपरीत आते हैं तो यहां भविष्य में डूडी परिवार के लिए राजनीतिक रूप से कई चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं. रुझानों में सुशीला डूडी सबसे मजबूत बताई जा रही हैं. ऐसे में यदि सुशीला डूडी चुनाव जीती, तो यह तय है कि एक बार फिर नोखा की राजनीति डूडी परिवार में ही रहेगी.

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