बीकानेर. हर साल देश में 15,000 से ज्यादा बच्चे थैलेसीमिया से ग्रसित होते हैं. दरअसल इसका कारण सामाजिक स्तर पर जागरूकता नहीं होता है. थैलेसीमिया खून को लेकर होने वाली आनुवंशिक बीमारी है जो माता-पिता के कारण संतान को हो जाती है अगर कोई पुरुष और महिला थैलेसीमिया रोग के मायने रोगी है तो उनकी होने वाली संतान थैलेसीमिया से पूरी तरह ग्रसित ही होगी और यही कारण है कि देश में हर साल थैलेसीमिया रोग से ग्रसित बच्चे बढ़ रहे हैं. बीकानेर के आचार्य तुलसी कैंसर रीजनल रिसर्च सेंटर और आचार्य महाप्रज्ञ बोनमेरो सेंटर के रक्त रोग एवं कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पंकज टांटिया कहते है इस रोग के बेहतर इलाज को लेकर प्रयास हो रहे हैं लेकिन सामाजिक जागरूकता की कमी है जिसके चलते रोग बढ़ रहा है.
डॉ पंकज कहते हैं कि यह रोग दो स्टेज पर होता है पहला माइनर और दूसरा मेजर. लेकिन इस पर नियंत्रण पाने का सबसे बढ़िया तरीका है कि उसकी जागरूकता को लेकर लोग खुद आगे आए और बच्चों की शादी के वक्त जन्म कुंडली मिलाने के साथ ही मिलाएं. वे कहते है कि अगर पति पत्नी दोनों में से एक थैलेसीमिया माइनर है तो कोई दिक्कत की बात नहीं है लेकिन अगर दोनों ही इसकी मायनर बीमारी से ग्रसित है तो बच्चा थैलेसीमिया से ग्रसित होकर ही पैदा होगा जो कि सही नहीं है. डॉं पंकज कहते हैं कि हमारे आसपास में हमें आसानी से थैलीसीमिया माइनर के रोगी मिल जाएंगे.
डॉ पंकज कहते हैं कि थैलीसीमिया से ग्रसित बच्चा 10 साल से कम होता है और उसका सिबलिंग मिलान हो जाता है तो उसके बोनमेरो में जरूरी रक्त कोशिकाएं ट्रांसफ्यूजन के बाद वो पूरी तरह से ठीक हो सकता है. बीकानेर में भी इस वक्त 130 ऐसे रोगी है जिनका पीबीएम अस्पताल में इलाज चल रहा है. चिकित्सक कहते हैं इस रोग से निदान के लिए हमें सामाजिक जागरूकता करनी होगी और हर हाल में लोगों को समझना होगा कि केवल जन्मकुंडली नहीं बल्कि शादी करने से पहले ब्लड कुंडली भी मिलान करनी चाहिए.