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Holashtak 2023 Katha: 27 फरवरी से शुरु होंगे होलाष्टक, शिव के क्रोध से जुड़ी है कथा

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Published : Feb 25, 2023, 9:52 AM IST

Know All About Holashtak, साल 2023 में 6 मार्च को होलिका दहन होगा। 27 फरवरी से होलाष्टक प्रारंभ हो जाएंगे और अगले 8 दिनों तक की अवधि होलाष्टक कहलाती है. क्या है इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथा? क्यों नहीं होते इस दौरान शुभ काम? आइए जानते हैं.

Holashtak 2023
Holashtak 2023

बीकानेर. होलाष्टक के दौरान सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य पूरी तरह से वर्जित बताए गए हैं लेकिन भगवान की भक्ति, पूजा-आराधना, मंत्र साधना करने की कोई मनाही नहीं है. होली के 8 दिन पहले पड़ने वाली समयावधि को ही होली अष्टक यानी होलिका दहन से 8 दिन पहले पड़ने वाला पर्व मनाया जाता है. होली के त्यौहार के साथ कई तरह की पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है. सनातन धर्म में होलाष्टक में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.

क्या है होलाष्टक!
पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस राज हिरणकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को सभी प्रकार की यातनाएं दे विष्णु भक्ति से दूर करने का प्रयास किया. लेकिन भगवान विष्णु के अनंत भक्त भक्त प्रहलाद ने अपने आराध्य की भक्ति नहीं छोड़ी. तब राक्षसराज ने अपनी बहन होलिका के सहारे प्रहलाद को यातना देने का प्रयास किया और इस दौरान अष्टमी तिथि के दिन उसे बंदी गृह में यात्राएं देना शुरू किया. अष्टमी से पूर्णिमा के दौरान बंदीगृह में प्रह्लाद को यातनाएं दी जाती रहीं.

शिव के क्रोध से जुड़ी कथा
एक ओर पौराणिक कथा है. ऐसा माना जाता है कि फाल्‍गुन मास की अष्‍टमी को ध्यान में लीन भगवान शिव की तपस्या को भंग करने का कामदेव ने प्रयास किया. इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया. कहते हैं इसी कारण इस दौरान प्रकृति में शोक का माहौल बन जाता है और वातावरण सकारात्मक नहीं रह पाता है.

पढ़ें-Aaj Ka Rashifal: एक क्लिक में जानें कौन सी दिशा, रंग और अंक है आपके लिए आज खास

क्यों नहीं होता शुभकार्य?
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा को होलाष्टक होता है. सनातन धर्म में सोलह संस्कार विधि होती है और इनमें शुभ कार्य होलाष्टक में वर्जित हैं जिनमें नामकरण, मुंडन, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस वक्त भगवान के प्रिय भक्तों पर राक्षसी प्रवृत्तियां हावी हो जाती हैं, जैसे भक्त प्रह्लाद के साथ हुआ. जिसके होने के चलते भक्तों को खूब कष्ट होता है इसलिए इस समय को शुभ नहीं माना जाता है और शुभ कर्म की मनाही होती है.

पाठ-पूजा, अर्चना निषेध नहीं
होलाष्टक के दौरान किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है लेकिन भगवान की भक्ति पूजा आराधना में किसी प्रकार की कोई मनाही नहीं है. इस दौरान खासतौर से साधना करने का भी महत्व है और होलिका दहन के वक्त जिस जगह पर होलिका दहन हो रहा है उसके आसपास मंत्र जाप करने से भी फल मिलता है. अपने इष्ट देव की आराधना करने से इस वक्त माहौल में आई नकारात्मकता दूर होती है और इसका शुभ फल मिलता है.

बीकानेर. होलाष्टक के दौरान सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य पूरी तरह से वर्जित बताए गए हैं लेकिन भगवान की भक्ति, पूजा-आराधना, मंत्र साधना करने की कोई मनाही नहीं है. होली के 8 दिन पहले पड़ने वाली समयावधि को ही होली अष्टक यानी होलिका दहन से 8 दिन पहले पड़ने वाला पर्व मनाया जाता है. होली के त्यौहार के साथ कई तरह की पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है. सनातन धर्म में होलाष्टक में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.

क्या है होलाष्टक!
पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस राज हिरणकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को सभी प्रकार की यातनाएं दे विष्णु भक्ति से दूर करने का प्रयास किया. लेकिन भगवान विष्णु के अनंत भक्त भक्त प्रहलाद ने अपने आराध्य की भक्ति नहीं छोड़ी. तब राक्षसराज ने अपनी बहन होलिका के सहारे प्रहलाद को यातना देने का प्रयास किया और इस दौरान अष्टमी तिथि के दिन उसे बंदी गृह में यात्राएं देना शुरू किया. अष्टमी से पूर्णिमा के दौरान बंदीगृह में प्रह्लाद को यातनाएं दी जाती रहीं.

शिव के क्रोध से जुड़ी कथा
एक ओर पौराणिक कथा है. ऐसा माना जाता है कि फाल्‍गुन मास की अष्‍टमी को ध्यान में लीन भगवान शिव की तपस्या को भंग करने का कामदेव ने प्रयास किया. इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया. कहते हैं इसी कारण इस दौरान प्रकृति में शोक का माहौल बन जाता है और वातावरण सकारात्मक नहीं रह पाता है.

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क्यों नहीं होता शुभकार्य?
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा को होलाष्टक होता है. सनातन धर्म में सोलह संस्कार विधि होती है और इनमें शुभ कार्य होलाष्टक में वर्जित हैं जिनमें नामकरण, मुंडन, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस वक्त भगवान के प्रिय भक्तों पर राक्षसी प्रवृत्तियां हावी हो जाती हैं, जैसे भक्त प्रह्लाद के साथ हुआ. जिसके होने के चलते भक्तों को खूब कष्ट होता है इसलिए इस समय को शुभ नहीं माना जाता है और शुभ कर्म की मनाही होती है.

पाठ-पूजा, अर्चना निषेध नहीं
होलाष्टक के दौरान किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है लेकिन भगवान की भक्ति पूजा आराधना में किसी प्रकार की कोई मनाही नहीं है. इस दौरान खासतौर से साधना करने का भी महत्व है और होलिका दहन के वक्त जिस जगह पर होलिका दहन हो रहा है उसके आसपास मंत्र जाप करने से भी फल मिलता है. अपने इष्ट देव की आराधना करने से इस वक्त माहौल में आई नकारात्मकता दूर होती है और इसका शुभ फल मिलता है.

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