बीकानेर. साल 2020 पूरी तरह से कोरोना की चपेट में रहा. 2021 कोरोना वैक्सीन के साथ कई उम्मीदें लेकर आया हैं. कोरोना काल में सेहत को लेकर लोग काफी चिंतित दिखे. कोरोना से बचाव को लेकर जारी एडवाइजरी के बीच डॉक्टरों ने इम्यूनिटी पावर बढ़ाने पर भी जोर दिया. यही वजह है कि लोगों में सदियों पुरानी पद्वति आयुर्वेद पर विश्वास वापस लौटा है. चाहे बात फिर आयुर्वेदिक काढ़ा की हो या फिर गिलोय, अश्वगंधा या फिर च्यवनप्राश, इन सबको लेकर लोगों में एक सकारात्मक नजरिया देखने को मिला है.
आयुर्वेद दवाइयों की खपत बढ़ी...
कोरोना काल में आयुर्वेदिक दवाइयों की बेहताशा खपत और उत्पादन भी हुआ. सर्दी जुखाम और बुखार के दौरान लोग आयुर्वेदिक दवाइयों के भरोसे नजर आए. आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. सुधांशु व्यास कहते हैं कि निश्चित रूप से कोरोना के इस काल में लोग फिर से आयुर्वेद की तरफ लौटे हैं. बीकानेर में तकरीबन 100 साल से भी बिना लाभ-हानि के संचालित हो रही मोहता आयुर्वेद रसायनशाला, जहां तकरीबन 500 से ज्यादा तरह की आयुर्वेदिक दवाइयों का निर्माण किया जाता है. इस रसायनशाला के महाप्रबंधक प्रमोद भट्ट कहते हैं कि कोरोना काल में रसायन शाला में यूनिटी पावर बढ़ाने के लिए दवाइयों का उत्पादन ज्यादा हुआ और इसकी खपत भी ज्यादा हुई.
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आयुर्वेदिक में काढ़ा, अश्वगंधा जैसी औषधियां...
डॉ. राजेंद्र शर्मा कहते हैं कि कोरोना काल में लोग ज्यादा चिंतित हुए और भरोसा भी आयुर्वेद पर रहा. यही कारण है कि लोग हल्की सर्दी-जुखाम बुखार में भी आयुर्वेदिक दवाइयों पर ज्यादा भरोसा दिखाते हुए नजर आए. आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. नेहा ने बताया कि कोरोना से बचाव के लिए इम्यूनिटी पावर बढ़ाने की बात कही गई. आयुर्वेदिक में काढ़ा, अश्वगंधा जैसी औषधियां हैं, जिनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इसलिए लोगों का आयुर्वेद में विश्वास बढ़ा. आयुर्वेदिक चिकित्सक एम भारद्वाज कहते हैं कि आयुर्वेद के प्रति बढ़े विश्वास का एक उदाहरण है कि इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए लोगों ने च्यवनप्राश का भी खूब उपयोग किया. जितना च्यवनप्राश सर्दी में खपत नहीं होता, उससे ज्यादा कोरोना संकट में गर्मी के दिनों में इसकी खपत हो गई.