बीकानेर. देशभर में लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का आधार मोदी फैक्टर ही रहा. देश की सभी सीटों पर प्रत्याशी की बजाय मोदी के चुनाव लड़ने की बात भाजपा करती रही तो प्रत्याशी भी पीएम मोदी के नाम पर ही वोट मांगते नजर आए. बीकानेर से भाजपा की लगातार चौथी जीत होने के साथ ही भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल ने खुद की जीत की हैट्रिक भी बना ली. अर्जुन मेघवाल के लिए यह चुनाव राजनीतिक अग्नि परीक्षा जैसा ही था. अर्जुन के प्रचार के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बीकानेर आए, वहीं कांग्रेस के मदन मेघवाल के लिए प्रचार की कमान खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संभाली थी और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के साथ जिले की सभी सीटों पर सभाएं की थी.
इन सबके बीच यह चुनाव भले ही अर्जुन और मदन मेघवाल के बीच था, लेकिन जितनी राजनीतिक परीक्षा अर्जुन की थी उतनी ही परीक्षा जिले के दो बड़े नेताओं की भी इस चुनाव में देखने को मिली. इसमें एक नाम है देवी सिंह भाटी और दूसरा नाम था रामेश्वर डूडी का. अपने ही मौसेरे भाई के सामने चुनाव लड़ने वाले अर्जुन को भी पता था कि इस बार उनके चुनावी राह में कई चुनौतियां हैं और हुआ भी वैसा ही. कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी ने पहले ही अर्जुन को टिकट मिलने की संभावना के चलते भाजपा को छोड़ दिया था और पूरे क्षेत्र में लगातार उनका विरोध करते रहे, लेकिन चुनाव के परिणामों में भाटी के गढ़ श्रीकोलायत में अर्जुनराम 1794 वोटों से आगे रहे.
भाटी के साथ ही पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के लिए भी यह चुनाव इस लिहाज से महत्वपूर्ण था क्योंकि, पिछले 5 साल राजस्थान की जाट राजनीति में प्रमुख चेहरा बनकर उभरे डूडी इस बार विधानसभा के चुनाव नोखा से हार गए थे, लेकिन जिले में जाट मतदाताओं में पकड़ के चलते डूडी अपनी पसंद के रूप में मदन गोपाल मेघवाल को टिकट दिलाने में सफल हो गए. क्योंकि मदन के सामने खाजूवाला विधायक गोविंद मेघवाल की पुत्री सरिता चौहान टिकट मांग रही थी और डूडी और गोविंद के बीच सियासी गर्माहट किसी से छुपी हुई नहीं है.
ऐसे में माना जा रहा था कि अपनी पूरी ताकत लगाकर डूडी कांग्रेस प्रत्याशी मदन की नैया को पार करवाएंगे, लेकिन खुद के विधानसभा में 9000 वोटों से पिछड़ने के मुकाबले लोकसभा चुनाव में तीन गुना वोटों से पिछड़ गई. ऐसे में कहीं ना कहीं यह चुनाव जीतने के साथ ही जहां अर्जुन ने अपनी राजनीतिक पारी को आगे ले जाने का काम किया तो वहीं जिले में भाटी और डूडी के लिए आगे के राजनीतिक सफर को चुनौती भरा भी कर दिया है.