बीकानेर. कभी दिल्ली में जूतों के शोरूम में सेल्समैन की नौकरी करने वाले संदीप हमेशा से एक एक्टर बनना चाहते थे. बड़े स्क्रीन पर अपना नाम स्क्रॉल होते देखना चाहते थे. यही वजह थी कि शादी के बाद पत्नी और पिता से पैसे लेकर मुंबई रवाना हो गए एक्टिंग का सपना संजोए! सपने को हासिल करना आसान भी नहीं था. पूरा करने के लिए सालों तक संघर्ष किया. 2 साल तक मायानगरी में डटे हाथ कुछ नहीं लगा तो घर लौट आए. लगा सपना अधूरा रह जाएगा. दिल के किसी कोने में एक टीस बाकी थी. तक़दीर फिर उन्हें सपनों की नगरी में ले आई और इस बार मुंबई से खाली हाथ नहीं लौटे.
कैसा रहा सफर?- बीकानेर के संदीप भोजक की कहानी किसी बड़े परदे पर दिखने वाली फिल्म से कम नहीं है. बस फर्क ये है कि संदीप इसकी पटकथा खुद लिख रहे हैं. मुंबई सिने जगत के सितारे के तौर पर खुद को स्थापित कर लिया है. संदीप कहते हैं कि रेतीले धोरों के शहर बीकानेर से माया नगरी तक का यह सफर आसान नहीं रहा लेकिन बीते कुछ सालों ने बहुत कुछ सीखा दिया. बीकानेर में नाटकों में काम करने से पहले संदीप स्कूल में नाटकों का स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखकर देते थे. अपने साथी किरदारों को नाटक में किस भूमिका में क्या करना है इसका निर्णय करते थे.
दिल्ली में बेचते थे जूते- संदीप बताते हैं कि उन्होंने जूतों की दुकान पर बतौर सेल्समैन सेवाएं दी. चाचा की दुकान पर खूब मेहनत की. फिर 2010 में शादी के बाद बीकानेर में खुद का जूतों का शोरूम शुरू किया. सब कुछ चल रहा था लेकिन लगा सपना दम तोड़ रहा है. एक दिन अचानक फैसला किया कि उनकी मंजिल तो मुंबई है. बस वहीं से सारा काम एक दिन में समेट कर मुंबई पहुंच गए.
पढ़ें- Special : दोनों हाथ गंवाने वाले पंकज के लिए तैराकी बना जुनून, अब देश के लिए मेडल जीतने की चाहत
पता नहीं कहां जाना है- संदीप कहते हैं कि जिस दिन मुंबई के लिए रवाना हुए जानते नहीं थे कि जाना कहां हैं. हिम्मत की और बचपन में थिएटर में साथ काम करने वाले एक दोस्त को मुंबई पहुंच कर फोन किया. वो उसे अपने साथ ले गया लेकिन कुछ दिन बाद वहां से दूसरी जगह पर शिफ्ट होना पड़ा. इस दौरान कई स्टूडियो, फिल्म प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटे लेकिन सफलता नहीं मिली. दोस्तों ने सलाह दी कि गुजर बसर के लिए फिल्म लाइन के दूसरे काम कर लो लेकिन संदीप का मन नहीं माना. सोचा वही काम करना है जो करने आया हूं.
शिवजी की पूजा का प्रतिफल- धार्मिक प्रवृत्ति के संदीप हर रोज हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और भगवान शिव भक्त भी हैं. कहते हैं कि बिना भगवान की पूजा किए मैं घर से नहीं निकलता हालांकि फिल्मों की शूटिंग के शेड्यूल में बदलाव होता है लेकिन भगवान की पूजा हर दिन करता हूं. एक किस्सा सुनाते हैं. कहते हैं- 2017 में मैं मुंबई से वापस बीकानेर निराश होकर आ गया और करीब डेढ़ साल तक बीकानेर रहा. इस दौरान केवल जिम जाने के अलावा कोई काम नहीं था और इस चक्कर में घरवाले भी पूरी तरह से निराश हो गए. मैं भी अंदरखाने इस बात को लेकर टूट रहा था कि अब जिंदगी में आगे क्या होगा? न तो मेरे पास काम था और ना ही आर्थिक हालात इतने अच्छे थे लेकिन एक दिन पैतृक गांव पड़िहारा में अपने पिता पर्यटन व्यवसायी विनोद भोजक के साथ पारिवारिक शादी में गया. वहां एक मंदिर के पंडित जी ने मुझे नासिक में जाकर भगवान त्रंबकेश्वर में पूजा का सुझाव दिया. मैं तत्काल वहां गया और दस दिन बाद मेरे अकाउंट में पैसे भी थे और काम भी. संदीप को लगता है ये सब भोलेनाथ के चमत्कार की वजह से संभव हुआ.