भीलवाड़ा. बहनों को रक्षाबंधन त्योहार का हमेशा रहता है कि इस दिन वह अपने भाई को राखी बांधेगी और उनसे अच्छे अच्छे उपहार लेंगी. लेकिन इस बार भाई बहन के पवित्र त्योहार रक्षाबंधन पर भी कोरोना और लॉकडाउन का असर पड़ गया है. कोरोना की वजह से इस बार न के बराबर ही राखियों की बिक्री हो रही है.
ईटीवी भारत की टीम ने वस्त्र नगरी के नाम से विख्यात भीलवाड़ा शहर का इस दौरान जायजा लिया तो देखा कि यहां राखी विक्रेताओं के चेहरे पर मायूसी छाई है. व्यापारियों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस बार ना के बराबर बिक्री हो रही है, वहीं ग्राहकों ने भी चाइनीज राखियों का बहिष्कार कर दिया है.
घर पर राखी बनाने वाली मनाली ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि इस बार हमने चाइनीज सामान नहीं खरीद रहे हैं.
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मनाली ने कहा कि हमने चाइनीज राखियों का बहिष्कार कर दिया है और घर पर ही राखियां बना रहे हैं. साथ ही बहनों को गिफ्ट देने के लिए कप भी घर में ही बनाए गए, जिस पर प्रिंट किया जा रहा है. मनाली के अनुसार हम आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं और लोकल को वोकल बना रहे हैं.
साथ ही कोरोना को देखते हुए घर की वस्तुओं का भी उपयोग कर रहे हैं. इस बार घर पर ही गेहूं के बीज, फल और फूलों के बीज डालकर राखी बनाई है. जिससे उस राखी को फेंकने के बाद गंदगी नहीं फैलेगी और उस बीज से पौधे अंकुरित होंगे जिससे पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा.
वहीं, दुकान पर राखी खरीदने आई युवती प्रेरणा टेलर ने कहा कि भाई बहन के त्योहार रक्षाबंधन पर इस बार हमने चाइनीज राखियों का बहिष्कार कर दिया है. मार्केट में भी यह राखियां नहीं मिल रही हैं, साथ ही हम सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए राखियां खरीद रहे हैं.
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राखी विक्रेता जय कुमार अग्रवाल ने कहा कि राखी का त्यौहार अच्छा चल रहा है. खरीदारी कम है, इस बार भारत में निर्मित राखियां ही बिक रही है. जो ग्राहकों को भी पसंद आ रही है. हमने चाइनीज राखियां नहीं खरीदने और बेचने का प्रण लिया है. विक्रेताओं ने कहा कि हम हमेशा भारत में निर्मित ही राखियां बेचेंगे.
खुदरा विक्रेता रणछोड़ और राजकुमार ने कहा कि हम गांव में राखियां बेचने का काम करते हैं. इस बार खरीदारी की रफ्तार काफी धीमी है. पहले महंगी राखियां बिकती थी, लेकिन इस बार बारिश और कोरोना के प्रभाव के कारण राखियों की बिक्री बहुत कम हो रही है. वहीं, भीलवाड़ा के होलसेल विक्रेता रमेश ने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस बार 60 प्रतिशत ही व्यापार रह गया है. इस बार बच्चों की राखियां बिक रही हैं.
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कोरोना की वजह से रॉ मैटेरियल नहीं मिलने के कारण राखियों का निर्माण कम हो पाया है. इसलिए अच्छी वैरायटी की राखीयों का निर्माण नहीं हो पाया है. विक्रेताओं का कहना है कि इस बार राम मंदिर और अन्य राजनेताओं पर भी राखियां बनाने की तैयारी थी, लेकिन इस बार हो नहीं पाया. हमने चाइनीज राखियों का बहिष्कार कर दिया है. वहीं, अब सारे ग्राहक भी भारत निर्मित राखियां ही खरीद रहे हैं.