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ऐसा गांव, जहां नहीं जलाते पेड़ या लकड़ियां, चांदी से बनी होली की करते हैं पूजा

भीलवाड़ा में एक ऐसा गांव है जहां ग्रामीणों ने पर्यावरण को बचाने के संकल्प लेते हुए पेड़ों की कटाई ना कर चांदी और सोने की होली बनाकर पर्यावरण को बचाने की अनुठी मिशाल पेश की हैं.

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Published : Mar 21, 2019, 4:38 AM IST

ग्रामीणों ने पेश की अनुठी मिशाल


भीलवाड़ा. होलिका दहन के लिए आमतौर पर लकड़ियां, पेड़ की टहनियां या कंडे जलाए जाते है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताते हैं, जो न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मिसाल पेश कर रहा है बल्कि एक नई पहल का संदेश भी दे रहा है. इस गांव में होलिका दहन पर चांदी से बनी होली की पूजा कर यह त्यौहार मनाया जाता है.

ग्रामीणों ने पेश की अनुठी मिशाल

गाजे-बाजे के साथ लेकर पहुंचते हैं होलिका दहन स्थल
लोगों के चंदे से बनवाई गई चांदी की होली को होली के दिन गांव के चारभुजा मंदिर से ठाट-बाट व गाजे-बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जाया जाता है. जहां होली की पूजा कर वापस मंदिर में लेकर पहुंचते हैं.
पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आने की पहल
गांव के पंडित गोपाल लाल शर्मा बताते हैं कि पेड़ नहीं काटने से जहां पर्यावरण का संरक्षण होता है. वहीं आग लगने और आपसी झगड़ों की संभावना भी खत्म हो जाती है. युवा शंकरलाल ने कहा कि हमारे गांव की इस परंपरा का ना केवल हम समर्थन करते हैं, बल्कि लोगों से अपील करते हैं कि वे भी इस परंपरा को आगे बढ़ाएं.


भीलवाड़ा. होलिका दहन के लिए आमतौर पर लकड़ियां, पेड़ की टहनियां या कंडे जलाए जाते है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताते हैं, जो न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मिसाल पेश कर रहा है बल्कि एक नई पहल का संदेश भी दे रहा है. इस गांव में होलिका दहन पर चांदी से बनी होली की पूजा कर यह त्यौहार मनाया जाता है.

ग्रामीणों ने पेश की अनुठी मिशाल

गाजे-बाजे के साथ लेकर पहुंचते हैं होलिका दहन स्थल
लोगों के चंदे से बनवाई गई चांदी की होली को होली के दिन गांव के चारभुजा मंदिर से ठाट-बाट व गाजे-बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जाया जाता है. जहां होली की पूजा कर वापस मंदिर में लेकर पहुंचते हैं.
पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आने की पहल
गांव के पंडित गोपाल लाल शर्मा बताते हैं कि पेड़ नहीं काटने से जहां पर्यावरण का संरक्षण होता है. वहीं आग लगने और आपसी झगड़ों की संभावना भी खत्म हो जाती है. युवा शंकरलाल ने कहा कि हमारे गांव की इस परंपरा का ना केवल हम समर्थन करते हैं, बल्कि लोगों से अपील करते हैं कि वे भी इस परंपरा को आगे बढ़ाएं.
Intro:राजस्थान में होली दहन परंपरा को जारी रखने के लिए हर साल राजस्थान में लाखों हरे भरे पेड़ की कटाई कर होली दहन पर्व मनाया जा रहा है व। ही एक ऐसा गांव जहां के ग्रामीणों ने पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेते हुए पेड़ों की कटाई ना कर चांदी और सोने की होली बनाकर उसकी पूजा अर्चना कर प्रकृति और पर्यावरण को बचाने की अनूठी मिसाल पेश की ।
भीलवाड़ा जिले की बड़ी हरणी गांव में होली की परंपरा बदलकर एक नया रुप ही दे दिया है अब इस गांव में लोग लकड़िया व गुंडों की होली ना जलाकर चांदी की होली की पूजा करते हैं


Body:एक ओर जहां पूरे देश होली का दहन किया जाता है वही एक गांव बड़ी हरनी ऐसा भी है। जहां पर्यावरण को बचाने के लिए चांदी की होली की पूजा की जाती है । यहां ग्रामीण पिछले 50 साल से अधिक सालों से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाने के लिए चांदी की होली बनाकर उसकी पूजा की जाती है । उसके बाद उसे गांव के मंदिर में ले जाकर वहां भजन कीर्तन किए जाते हैं । गांव के पंडित गोपाल लाल शर्मा ने कहा कि वृक्ष नहीं काटने से जहां पर्यावरण संरक्षण होता है । वही आग लगाने और आपसी झगड़ों की संभावना भी खत्म हो जाती है । लोगों के चंदे से मनाई गई चांदी की होली को होली के दिन चारभुजा मंदिर से ठाट- बाट गाजे-बाजे के साथ होलिका दहन स्थल पर ले जा कर पूजा कर वापस मंदिर ला कर रख देते हैं । गांव के युवा शंकर लाल ने कहां की हमारे गांव की इस परंपरा को ना केवल हम समर्थन करते हैं । बल्कि लोगों से अपील करते हैं कि वह इस परंपरा को आगे बढ़ाएं इस होली से कोई हादसा भी नहीं होता है और पर्यावरण भी संतुलित रहता है।

बाइट- गोपाल लाल शर्मा, चारभुजा मंदिर पुजारी
शंकर लाल जाट , गांव निवासी


Conclusion:
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