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कमठाना मजदूरों का ईटीवी भारत पर छलका दर्द..नहीं मिल रहा है काम - गरीबों की दिवाली

भीलवाड़ा में अलग-अलग चौक चौराहों पर हर सुबह कमठाना मजदूर तगारी-फावड़ों के साथ इकट्ठे होते हैं. एक अनुमान है कि करीब पांच-छह हजार दिहाड़ी मजदूर काम की तलाश में इन चौराहों पर आते हैं. लेकिन कोरोना काल की आर्थिक मंदी और बजरी खनन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक ने इन मजदूरों खाली हाथ घर लौटने पर मजबूर कर दिया है. देखिये ये खास रिपोर्ट...

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कमठाना मजदूरों का ईटीवी भारत पर छलका दर्द
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Published : Nov 18, 2020, 10:51 PM IST

भीलवाड़ा. विश्वव्यापी कोरोना महामारी से उपजी आर्थिक मंदी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बजरी पर रोक के कारण भीलवाड़ा जिले में पक्के निर्माण के काम न के बराबर हो रहे हैं. ऐसे में कमठाना मजदूरों यानी दिहाड़ी काम करने वाले मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है. ईटीवी भारत ने जब इन मजदूरों से उनका हाल पूछा, तो दर्द छलक पड़ा.

कमठाना मजदूरों का ईटीवी भारत पर छलका दर्द

भीलवाड़ा शहर में बडला चौराहा, सूचना केंद्र चौराहा ,रोडवेज बस स्टैंड और मजदूर चौराहा पर कमठाना मजदूर रोजाना काम की तलाश में आते हैं. यहां इकट्ठा होकर दो जून की रोटी का इंतजाम करने का इंतजार करते हैं. मजदूरी मिल जाती है तो उस दिन हाथ में कुछ पैसा आ जाता है. वरना ये मजदूर दोपहर तक इंतजार कर वापस अपने घर लौट जाते हैं.

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कमठाना मजदूरों का ईटीवी भारत पर छलका दर्द

भीलवाड़ा शहर के प्रमुख चौराहे पर सुबह 8 बजे से 10 बजे तक ग्रामीण क्षेत्र से काफी संख्या में मजदूर आते हैं. ये मजदूर रोजगार की उम्मीद के साथ आते हैं और जब रोजगार नहीं मिलता है तो बेबस होकर लौट भी जाते हैं. एक अनुमान के अनुसार इन चौराहों पर रोजाना पांच-छह हजार श्रमिक रोजगार की तलाश में आते हैं. मजदूरों की बेसब्री इतनी कि कोई भी वाहन रुकता है तो उसको भागकर मजदूरी के लिए पूछते हैं. मजदूरी नहीं मिलती तो मायूस हो जाते हैं. ईटीवी भारत की टीम जब शहर के मजदूर चौराहा पहुंची तो मजदूरों का दर्द छलक पड़ा.

पढ़ें- बस में बिना टिकट यात्रा करने से रोका तो दबंग यात्री ने की मारपीट, साथियों को बुलाकर कराई फायरिंग, मची दहशत

काम की तलाश में आए भैरू सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि वह भीलवाड़ा जिले के लूलास गांव से मजदूरी के लिए आया है. कोरोना के कारण मजदूरी नहीं मिल रही है वह बड़ी उम्मीद के साथ खाने का टिफिन लेकर आता है, लेकिन अक्सर भरा टिफिन लेकर घर लौट जाता है. वहीं पक्के निर्माण में कार्य करने वाले बंसी लाल का कहना है कि वह चुनाई का काम करता है, बजरी बन्द होने से रोजगार नहीं मिल रहा है. भीलवाड़ा जिले के जसवंतपुरा से आए नारायण लाल ने कहा कि वह 40 किलोमीटर दूर से प्रतिदिन भीलवाड़ा शहर में रोजगार की तलाश में आता है. लेकिन रोजगार नहीं मिलता. जिले के बनेड़ा से शांति देवी और उनके पति रोजगार की तलाश में प्रतिदिन इस मजदूर चौराहे पर आते हैं. दोनों पति-पत्नी बच्चों को घर छोड़कर रोजगार की तलाश में आते हैं. काम नहीं मिलता तो मायूस लौट जाते हैं.

श्रमिक विजय और शंकर बंजारा का कहना था कि जब से कोरोना चला तब से पक्के निर्माण कार्य बंद है. उम्मीद के साथ रोजगार की तलाश में मजदूर आते हैं. रोजगार नहीं मिलना, बहुत बड़ी चिंता है. पैसा नहीं होने के कारण दिवाली पर खरीदारी भी नहीं कर सके.

भीलवाड़ा. विश्वव्यापी कोरोना महामारी से उपजी आर्थिक मंदी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बजरी पर रोक के कारण भीलवाड़ा जिले में पक्के निर्माण के काम न के बराबर हो रहे हैं. ऐसे में कमठाना मजदूरों यानी दिहाड़ी काम करने वाले मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है. ईटीवी भारत ने जब इन मजदूरों से उनका हाल पूछा, तो दर्द छलक पड़ा.

कमठाना मजदूरों का ईटीवी भारत पर छलका दर्द

भीलवाड़ा शहर में बडला चौराहा, सूचना केंद्र चौराहा ,रोडवेज बस स्टैंड और मजदूर चौराहा पर कमठाना मजदूर रोजाना काम की तलाश में आते हैं. यहां इकट्ठा होकर दो जून की रोटी का इंतजाम करने का इंतजार करते हैं. मजदूरी मिल जाती है तो उस दिन हाथ में कुछ पैसा आ जाता है. वरना ये मजदूर दोपहर तक इंतजार कर वापस अपने घर लौट जाते हैं.

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कमठाना मजदूरों का ईटीवी भारत पर छलका दर्द

भीलवाड़ा शहर के प्रमुख चौराहे पर सुबह 8 बजे से 10 बजे तक ग्रामीण क्षेत्र से काफी संख्या में मजदूर आते हैं. ये मजदूर रोजगार की उम्मीद के साथ आते हैं और जब रोजगार नहीं मिलता है तो बेबस होकर लौट भी जाते हैं. एक अनुमान के अनुसार इन चौराहों पर रोजाना पांच-छह हजार श्रमिक रोजगार की तलाश में आते हैं. मजदूरों की बेसब्री इतनी कि कोई भी वाहन रुकता है तो उसको भागकर मजदूरी के लिए पूछते हैं. मजदूरी नहीं मिलती तो मायूस हो जाते हैं. ईटीवी भारत की टीम जब शहर के मजदूर चौराहा पहुंची तो मजदूरों का दर्द छलक पड़ा.

पढ़ें- बस में बिना टिकट यात्रा करने से रोका तो दबंग यात्री ने की मारपीट, साथियों को बुलाकर कराई फायरिंग, मची दहशत

काम की तलाश में आए भैरू सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि वह भीलवाड़ा जिले के लूलास गांव से मजदूरी के लिए आया है. कोरोना के कारण मजदूरी नहीं मिल रही है वह बड़ी उम्मीद के साथ खाने का टिफिन लेकर आता है, लेकिन अक्सर भरा टिफिन लेकर घर लौट जाता है. वहीं पक्के निर्माण में कार्य करने वाले बंसी लाल का कहना है कि वह चुनाई का काम करता है, बजरी बन्द होने से रोजगार नहीं मिल रहा है. भीलवाड़ा जिले के जसवंतपुरा से आए नारायण लाल ने कहा कि वह 40 किलोमीटर दूर से प्रतिदिन भीलवाड़ा शहर में रोजगार की तलाश में आता है. लेकिन रोजगार नहीं मिलता. जिले के बनेड़ा से शांति देवी और उनके पति रोजगार की तलाश में प्रतिदिन इस मजदूर चौराहे पर आते हैं. दोनों पति-पत्नी बच्चों को घर छोड़कर रोजगार की तलाश में आते हैं. काम नहीं मिलता तो मायूस लौट जाते हैं.

श्रमिक विजय और शंकर बंजारा का कहना था कि जब से कोरोना चला तब से पक्के निर्माण कार्य बंद है. उम्मीद के साथ रोजगार की तलाश में मजदूर आते हैं. रोजगार नहीं मिलना, बहुत बड़ी चिंता है. पैसा नहीं होने के कारण दिवाली पर खरीदारी भी नहीं कर सके.

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