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World Sparrow Day : कंक्रीट के जंगलों में गुम हो रहीं नन्ही चिरैया, 80 फीसदी आई गिरावट...राजस्थान में स्थिति बेहतर

कहते हैं गौरैया न केवल पर्यावरण की सुरक्षा करती है बल्कि उसकी मधुर चहचहाहट दिन की अच्छी शुरुआत का एहसास दिलाता है. जानकारों की माने तो डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को चिड़ियों की अठखेलियां और उनकी जीजीविशा को देखना चाहिए. इससे दिमाग पर पॉजिटिव प्रभाव भी पड़ता है.

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Published : Mar 20, 2023, 12:20 PM IST

Updated : Mar 20, 2023, 4:39 PM IST

कंक्रीट के जंगलों में गुम हो रहीं नन्ही चिरैया...

भरतपुर. तेजी से बढ़ते शहरीकरण, ऊंची-ऊंची इमारतें, प्रदूषण और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन गौरैया की जान पर भारी पड़ रहा है. बीते दशक में देश के कई हिस्सों में तो गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है. एक शोध में सामने आया है कि देश के तटवर्ती राज्यों में तो गौरैया की संख्या में 70 से 80% तक की गिरावट आयी है. लेकिन राजस्थान के हालात इस मामले में काफी बेहतर हैं. बीते करीब दो तीन साल में भरतपुर और राजस्थान के अन्य जिलों में फिर से गौरैया की चहचहाहट बढ़ने लगी है. विश्व गौरैया दिवस पर जानकार बता रहे हैं कि देश में गौरैया की संख्या किस वजह से और किन किन क्षेत्रों में कम हो रही है.

अध्ययन में दर्ज हुई गिरावट
लुधियाना की सीटी यूनिवर्सिटी एक शोधपत्र और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 2020 से पहले देश के अलग अलग राज्यों में गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट आई. आईसीएआर के अध्ययन से पता चला कि आंध्र प्रदेश में गौरैया की संख्या में 80% तक की कमी आई है. जबकि राजस्थान, गुजरात और केरल में गौरैया की संख्या में तकरीबन 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इतना ही नहीं रिसर्च में पता चला है कि देश के तटवर्ती राज्यों में गौरैया की संख्या काफी तेजी से गिरी. इन राज्यों में 70 से 80 तक की गिरावट देखने को मिली है. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी (बीएनएचएस) ने वर्ष 2005 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर हैदराबाद के रंगा रेड्डी जोन में एक सर्वे कराया, जिसमें गौरैया की संख्या में बेहद कमी दर्ज की गई.

पढ़ें World Sparrow Day: ना घर में आंगन रहा ना गौरैयों की चहचहाहट, इस चिड़िया के संरक्षण में दिन-रात लगे हैं संजय

भरतपुर समेत राज्य में वृद्धि
पर्यावरणविद डॉ सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि 90 के दशक के बाद से लगातार गौरैया की संख्या में कमी आई है. लेकिन बीते दो तीन वर्षों में यानी कोरोना काल और उसके बाद भरतपुर समेत अन्य जिलों में गौरैया की संख्या बढ़ी है. डॉ मेहरा ने बताया कि वर्ष 2007 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के गांवों में गौरैया के बमुश्किल 20 से 25 के झुंड नजर आते थे. लेकिन अब यहां इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली है. कई कई जगह 50 से 100 के झुंड नजर में आ जाते हैं.

पढ़ें World Oral Health Day : इस थीम पर मनाया जा रहा है विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस, जानिए इसका इतिहास व महत्व

इस कारण से घटी गौरैया
डॉ मेहरा ने बताया कि तेजी से शहरीकरण होने की वजह से गौरैया के आवासीय परिस्थितियों पर संकट आ गया. उनको घोंसला बनाने के लिए अनुकूल स्थान मिलना बंद हो गया. साथ ही गौरैया की खाद्य श्रृंखला भी टूट गई. इसका सीधा सीधा असर ये हुआ कि गौरैया बड़ी संख्या मे पलायन कर गए या काल कवलित हो गए. इन्हीं वजहों से उसकी संख्या में तेजी से कमी आई.

घातक है रेडिएशन
डॉ मेहरा ने बताया कि यूरोपियन स्टडीज में पता चला है कि मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन गौरैया के लिए घातक साबित हो रहा है. हालांकि अभी तक मोबाइल टावर के रेडिएशन का गौरैया पर क्या प्रभाव पड़ता है इस पर कोई विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है. लेकिन निश्चित ही ये शोध का विषय है.

जागरूकता से बढ़ रही संख्या
डॉ. मेहरा ने बताया कि गौरैया संरक्षण को लेकर लोगों में धीरे धीरे जागरूकता आ रही है. लोग आर्टिफिशियल घोंसले तैयार कर घरों में लगा रहे हैं, जिनमें गौरैया प्रवास व प्रजनन कर रही हैं. भरतपुर शहर के गेस्ट हाउस संचालक देवेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने गेस्ट हाउस और घर पर लकड़ी के बने हुए करीब 11 आर्टिफिशियल नेस्ट लगा रखे हैं. उन्होंने 4 साल पहले ये नेस्ट लगाए थे, जिनमें अब गौरैया प्रजनन करती हैं. ऐसे कितने ही लोग अब गौरैया को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं.

देवेंद्र सिंह ने बताया कि वो अपने परिचितों को भी अपने घरों, होटलों और गेस्ट हाउस में बने बनाए घोंसला लगाने के लिए जागरूक कर रहे हैं. काफी लोग अब नेस्ट लगाने भी लगे हैं। इसी का परिणाम है कि भरतपुर और राजस्थान के अन्य जिलों में गौरैया की संख्या में वृद्धि देखने को मिली है. डॉ सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि भारत में अभी तक गौरैया की कोई गणना नहीं हुई और ना ही उसकी संख्या के कोई आंकड़े ही सामने आए हैं. लेकिन इस ओर काम करने की सख्त जरूरत है.

कंक्रीट के जंगलों में गुम हो रहीं नन्ही चिरैया...

भरतपुर. तेजी से बढ़ते शहरीकरण, ऊंची-ऊंची इमारतें, प्रदूषण और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन गौरैया की जान पर भारी पड़ रहा है. बीते दशक में देश के कई हिस्सों में तो गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है. एक शोध में सामने आया है कि देश के तटवर्ती राज्यों में तो गौरैया की संख्या में 70 से 80% तक की गिरावट आयी है. लेकिन राजस्थान के हालात इस मामले में काफी बेहतर हैं. बीते करीब दो तीन साल में भरतपुर और राजस्थान के अन्य जिलों में फिर से गौरैया की चहचहाहट बढ़ने लगी है. विश्व गौरैया दिवस पर जानकार बता रहे हैं कि देश में गौरैया की संख्या किस वजह से और किन किन क्षेत्रों में कम हो रही है.

अध्ययन में दर्ज हुई गिरावट
लुधियाना की सीटी यूनिवर्सिटी एक शोधपत्र और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 2020 से पहले देश के अलग अलग राज्यों में गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट आई. आईसीएआर के अध्ययन से पता चला कि आंध्र प्रदेश में गौरैया की संख्या में 80% तक की कमी आई है. जबकि राजस्थान, गुजरात और केरल में गौरैया की संख्या में तकरीबन 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इतना ही नहीं रिसर्च में पता चला है कि देश के तटवर्ती राज्यों में गौरैया की संख्या काफी तेजी से गिरी. इन राज्यों में 70 से 80 तक की गिरावट देखने को मिली है. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी (बीएनएचएस) ने वर्ष 2005 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर हैदराबाद के रंगा रेड्डी जोन में एक सर्वे कराया, जिसमें गौरैया की संख्या में बेहद कमी दर्ज की गई.

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भरतपुर समेत राज्य में वृद्धि
पर्यावरणविद डॉ सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि 90 के दशक के बाद से लगातार गौरैया की संख्या में कमी आई है. लेकिन बीते दो तीन वर्षों में यानी कोरोना काल और उसके बाद भरतपुर समेत अन्य जिलों में गौरैया की संख्या बढ़ी है. डॉ मेहरा ने बताया कि वर्ष 2007 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के गांवों में गौरैया के बमुश्किल 20 से 25 के झुंड नजर आते थे. लेकिन अब यहां इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली है. कई कई जगह 50 से 100 के झुंड नजर में आ जाते हैं.

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इस कारण से घटी गौरैया
डॉ मेहरा ने बताया कि तेजी से शहरीकरण होने की वजह से गौरैया के आवासीय परिस्थितियों पर संकट आ गया. उनको घोंसला बनाने के लिए अनुकूल स्थान मिलना बंद हो गया. साथ ही गौरैया की खाद्य श्रृंखला भी टूट गई. इसका सीधा सीधा असर ये हुआ कि गौरैया बड़ी संख्या मे पलायन कर गए या काल कवलित हो गए. इन्हीं वजहों से उसकी संख्या में तेजी से कमी आई.

घातक है रेडिएशन
डॉ मेहरा ने बताया कि यूरोपियन स्टडीज में पता चला है कि मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन गौरैया के लिए घातक साबित हो रहा है. हालांकि अभी तक मोबाइल टावर के रेडिएशन का गौरैया पर क्या प्रभाव पड़ता है इस पर कोई विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है. लेकिन निश्चित ही ये शोध का विषय है.

जागरूकता से बढ़ रही संख्या
डॉ. मेहरा ने बताया कि गौरैया संरक्षण को लेकर लोगों में धीरे धीरे जागरूकता आ रही है. लोग आर्टिफिशियल घोंसले तैयार कर घरों में लगा रहे हैं, जिनमें गौरैया प्रवास व प्रजनन कर रही हैं. भरतपुर शहर के गेस्ट हाउस संचालक देवेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने गेस्ट हाउस और घर पर लकड़ी के बने हुए करीब 11 आर्टिफिशियल नेस्ट लगा रखे हैं. उन्होंने 4 साल पहले ये नेस्ट लगाए थे, जिनमें अब गौरैया प्रजनन करती हैं. ऐसे कितने ही लोग अब गौरैया को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं.

देवेंद्र सिंह ने बताया कि वो अपने परिचितों को भी अपने घरों, होटलों और गेस्ट हाउस में बने बनाए घोंसला लगाने के लिए जागरूक कर रहे हैं. काफी लोग अब नेस्ट लगाने भी लगे हैं। इसी का परिणाम है कि भरतपुर और राजस्थान के अन्य जिलों में गौरैया की संख्या में वृद्धि देखने को मिली है. डॉ सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि भारत में अभी तक गौरैया की कोई गणना नहीं हुई और ना ही उसकी संख्या के कोई आंकड़े ही सामने आए हैं. लेकिन इस ओर काम करने की सख्त जरूरत है.

Last Updated : Mar 20, 2023, 4:39 PM IST
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